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खण्ड-४, गाथा-१
१२९ द्वितयमाभाति न तद्व्यतिरिक्तं कालदिगादिकमिति कथमप्रतिभासमानं तद्विशेषणं भवति ? सर्वत्र तद्भावप्रसक्तेः । तेन 'देशादिभिर्विशिष्टस्य सर्वस्यार्थस्य संवेदनम्' इति निरस्तम् विशेषणभूतस्य कस्यचिदप्रतिभासनात् । यत्रापि स्थिराधेयदर्शनादधस्तादाधारमनुमिन्वति तत्रापि नानुमानावसेयमधिकरणमिन्द्रियविज्ञानविषयविशेषणम् नापि तदवसायोऽक्षबुद्धेः स्वरूपमिति न विशेषणविशिष्टप्रतिपत्तिरक्षबुद्धिः।
किञ्च समानकालयोर्वा भावयोर्विशेषण-विशेष्यभावं bभिन्नकालयोर्वाऽक्षबुद्धिरवभासयति ? bन 5 तावद् भिन्नकालयोः, तयोर्युगपत् तत्राऽप्रतिभासनात् । यदा हि विशेषणं स्वादिकं पूर्वमवभाति न तदा स्वाम्यादिकं विशेष्यम् यदापि चोत्तरकालं तदवभाति न तदा स्वादिकम् असन्निधानाद् इति न तद्विशिष्टतयाऽसे विशिष्ट अर्थ (घटादि) का अवबोध वह कैसे करेगा ? जो अनाक्रान्त भूतल है वह यद्यपि इन्द्रिय संनिकृष्ट हो कर प्रत्यक्ष में भासित जरूर होता है लेकिन वह तो घटादि का आधार न होने से घटादि का विशेषण नहीं है। फलितार्थ यही हुआ कि प्रत्यक्ष में शुद्ध भूतल या शुद्ध घटादि ही या 10 कोई भी अन्य शुद्ध वस्तु ही भासित होती है, अत एव प्रत्यक्ष में विशेषण-विशेष्यभाव गृहीत नहीं होता। इस तरह ही देशकाल विशिष्ट वस्तु ग्रहण नहीं हो सकती। कैसे यह देखिये - प्रत्यक्षदर्शन में अपने अपने स्वरूप में मस्त ऐसे रूप और आलोक ये दो प्रतीत होते हैं, उन दो से अतिरिक्त काल या दिशा (जो कि अरूपी तत्त्व हैं) नहीं प्रतीत होते । जो प्रतीत नहीं होता वह विशेषण भी नहीं हो सकता। इस नियम को न माने तो गधा घोडे का, घोडा हाथी का... सब सभी का विशेषण 15 बन बैठेगा। अत एव, नैयोयिकोंने जो कहा था कि “नियतदेशादिविशिष्ट ही अर्थ का संवेदन होता है - व्यवहार में उपयोगि होता है" ... इत्यादि निरस्त हो जाता है, क्योंकि कोई भी वस्तु विशेषण के रूप में प्रतीत नहीं हो सकती।
[ अनुमानोपलब्ध अर्थ प्रत्यक्षार्थ का विशेषण नहीं बनता ] यदि कहा जाय – “घटाक्रान्त भूतलदेश यद्यपि प्रत्यक्ष में प्रतीत नहीं होता किन्तु स्थिरवृत्ति 20 घट के दर्शन से उस के नीचे उस के आधार के रूप में भूतल का अनुमान होता है और वह घटादि के आधारतया विशेषण बन सकता है” – तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि अनुमानगोचर अधिकरण देश इन्द्रियगोचर न होने से इन्द्रियजन्यप्रत्यक्षविषय घटादि के विशेषण रूप में भासित नहीं हो सकता।
आक्रान्त भूतल का अवबोध भी इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष का अंशभूत नहीं है। अत एव प्रत्यक्षबोध विशेषणविशिष्ट अर्थबुद्धिस्वरूप नहीं हो सकता – यह फलित हुआ।
[भिन्नकालीन अर्थों में विशेषण-विशेष्यभाव नहीं ] दूसरी बात, प्रत्यक्षबुद्धि विशेषण-विशेष्यभाव समकालीन अर्थों के बीच प्रकाशित करेगी या bभिन्नकालीन ?
bभिन्नकालीन अर्थों के बीच विशेषण-विशेष्यभाव प्रदर्शित नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रत्यक्ष में वे दोनों एक साथ प्रतिबिम्बित नहीं हो सकते। प्रत्यक्ष में किसी एक क्षण में जब 'स्व' आदि 30 विशेषण वस्तु प्रतिबिम्बित होगी तब उसी क्षण में 'स्वामि' आदि विशेष्य वस्तु प्रतिबिम्बित नहीं होगी क्योंकि वे दोनों भिन्नकालीन है। उत्तरक्षण में जब 'स्वामि' आदि भासित होंगे तब पूर्वक्षणीय 'स्व'
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