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________________ ११४ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ बाधकं 'नेदम्' इति ज्ञानं तस्य चाभावोऽसत्यपि विषये भवतीत्युक्तम् । किञ्च, तद्विषयम् अन्यविषयं वा बाधकमभ्युपगम्यते ? न तावत् तद्विषयम् विरोधात्- नहि यद् यद्विषयं तदेव तस्यासत्प्रतिभासनं ज्ञापयतीत्युपपन्नम्। नाप्यन्यविषयम् तेनाऽप्रतिभासमानस्यान्यस्य तज्ज्ञापनाऽयोगात् अन्यथा घटज्ञानं पटस्य तद् ज्ञापयेदिति। अत्र प्रतिविधीयते- न हि बाधकेन ज्ञानेन स्वरूपं ज्ञानस्य विषयः फलं वा बाध्यते किन्तु ज्ञानस्याऽसद्विषयत्वम् अर्थस्य वाऽसत्प्रतिभासनं तेन ज्ञाप्यते यथा शुक्तिकाज्ञानेन रजतविज्ञानस्य रजताकारस्य वा। एतच्च बाध्य-बाधकभावमनिच्छताप्यवश्यमभ्युपगन्तव्यम् प्रतिभासाद्वैते स्कन्धसन्तानादिविकल्पानां स्वयमेव निर्विषयत्वोपवर्णनात् तदुपवर्णनाभावे बाह्यभावानामेकानेकरूपतया सामान्य-सामाना धिकरण्य-विशेषण-विशेष्यभावादेः पारमार्थिकस्य भावात् प्रतिभासाऽद्वैतस्याभाव एव स्यात् । किञ्च, बाध्य10 बाधकभावप्रतिषेधविधायियुक्त्युपन्यासेन वादिना किं क्रियते इति वक्तव्यम् । 'न किञ्चिद्' इति चेत् ? तदुपन्यासवैयर्थ्यम्। अथ तूष्णींभावो निग्रहः स्यादिति तदुपन्यासः, तर्हि तदुपन्यासेऽप्यसाधनाङ्गवचनं (बौद्ध पूर्व पक्ष चालु है -) यह भी बताईये कि उसी अर्थ विषयक ज्ञान बाधक होगा या भिन्नविषयक ? उसी अर्थ विषयक ज्ञान को बाधक मानेंगे तो विरोध होगा। किसी एक विषय का ज्ञान अपने ही विषय को असत् प्रतिभासित करे - इस में युक्तिविरोध है। भिन्नविषयक ज्ञान भी 15 बाध नहीं कर सकता। जिस ज्ञान में जो अन्य विषय भासित ही नहीं होता. वह ज्ञान उस की सत्यता या असत्यता भी जाहीर नहीं कर सकता, अन्यथा घटज्ञान अपने अविषयभूत पट को भी असत्य ठहरा देगा। (बौद्धपूर्वपक्ष पूर्ण) * बाधबुद्धि का स्पष्टीकरण - जैन उत्तरपक्ष * बौद्धकथन का प्रतिकार :- बाधक ज्ञान से किसी ज्ञान के स्वरूप अथवा उस के फल का बाध 20 नहीं होता इतना कह देने से कृतार्थता नहीं होती। यह समझना चाहिये कि बाधक ज्ञान पूर्वोत्पन्न भ्रमज्ञान का असद्विषयत्व अथवा उस विषय के असत् प्रतिभास को घोषित करता है। उदा० 'यह रजत है' इस भ्रमज्ञान के बाद होने वाला 'यह तो शुक्ति है' ऐसा बाधकज्ञान पूर्व रजतज्ञान को असद्विषयक या उस में भासमान रजाताकार को असत्प्रतिभासरूप से घोषित करता है। इस प्रकार के बाध्य-बाधक भाव को आप को अनिच्छया भी स्वीकारना ही पडेगा। आपने ही निरूपण किया 25 है कि विज्ञानाद्वैत मत में रूपस्कन्धादिप्रवाहदर्शि विकल्प सब निर्विषय (असद्विषयक) होते हैं, यह निरूपण अमान्य करेंगे तो बाह्यार्थ कभी एकरूप कभी अनेकरूप होने के कारण, कभी सामान्यरूप से तो कभी सामानाधिकरणरूप से, तो कभी विशेषण-विशेष्यभाव आदि रूप से हमारे मत में प्रतिभासित होने के कारण आप के मत में भी पारमार्थिकता प्रसक्त होने से विज्ञानाद्वैतवाद का अन्तिम संस्कार ही हो जायेगा। * बाध्य-बाधकभाव निषेध करने पर बौद्धनिग्रह * अगर पूछा जाय कि बाध्य-बाधकभाव की निषेधक युक्तियों के प्रतिपादन से आप क्या सिद्ध करना चाहते हैं ? आप क्या उत्तर देंगे ? 'कुछ भी नहीं' ऐसा जवाब देंगे तो प्रतिपादनकष्ट की 30 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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