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________________ खण्ड ४, गाथा - १ ११३ फलमुत्पन्नमनुत्पन्नं वा बाध्यते उत्पन्नस्य विद्यमानत्वेन बाध्यत्वाऽसम्भवात् । अनुत्पन्नस्यापि स्वयमेवाऽसत्त्वात् । न च स्वप्नदृष्टे घटादिके उदकाहरणाद्यर्थक्रिया न भवति, तस्या अपि तत्र दर्शनात् । - “ असतः सत्त्वेन प्रतिभासनमस्य” ( ) - इति ज्ञापनात् स तेन बाध्यत" इति चेत् ? न, प्रतिभासमानस्य तज्ज्ञापनाऽसम्भवात् जाग्रद्दृष्टघटादावपि तत्प्रसङ्गात् । न च ' नेदम्' इति तत्र ज्ञानाभावाद् न तत्प्रसङ्गः, 'नेदम्' इति ज्ञानस्य सत्यपि क्वचित् झटित्यपसृते 5 भावात्, असत्यपि चान्यगतचित्तस्याभावात् । तथाहि - शीघ्रं गच्छतो मरीचिकाजलज्ञाने 'नेदम्' इति प्रत्ययो नोत्पद्यत एव। 'नेदम्' इति प्रत्ययविषयस्यापि च कथं त्या 'बाधकाभावात्' इति चेत् ? ननु कि ज्ञान या उसके विषय के के निषेध से अश्वनिषेध का अतिप्रसङ्ग हो जायेगा । यदि कहें फल चाहे उत्पन्न हो या अनुत्पन्न, उस का बाध हो सकता है जो फल उत्पन्न हो गया उस को कौन रोकेगा ? जो अनुत्पन्न है बाध करने जायेगा ? तो यह भी संभव नहीं क्योंकि वह असत् है, असत् को कौन 10 Jain Educationa International — (बौद्ध का पूर्वपक्ष चालु है ) ऐसा भी नहीं है कि स्वप्नदृष्ट घटादि से जलाहरणादि अर्थक्रिया नहीं होती, स्वप्न में दृष्ट घट से स्वप्न में जलाहरणादि अर्थक्रिया होती ही है । यदि कहें कि 'बाधक इस तरह बाध करेगा कि वह विदित करेगा कि यह जो स्वप्नदृष्ट घट है वह असत् हो कर भी सत्त्वरूप से भासित होता है ।' तो यह भी गलत है क्योंकि जो भासित होता है उस 15 का इस ढंग से बाध असंभव है क्योंकि वह स्फुरायमाण है । जबरन बाध मानेंगे तो कोई जागृतिदृष्ट घटादि को भी उस तरह बाध कर बैठेगा कि यह असत् है किन्तु सत्- रूप से दीखता है अनिष्ट प्रसक्त होगा । यह - - - — * 'वह नहीं' इस बाधबुद्धि की अनुपपत्ति- बौद्धाशंका चालु ** बौद्ध कहता है कि यदि जैन कहें कि जागृति में दृष्ट घटादि के बारे में 'यह घट नहीं' 20 ऐसी बाधबुद्धि होती नहीं है इस लिये उस का बाध नहीं होगा । तो यह बराबर नहीं है क्योंकि कभी सत्य घटादि का दृष्टानंतर त्वरित अपनयन हो जाने पर 'वह नहीं है' ऐसी बाधबुद्धि हो सकती है; दूसरी ओर असत्य घट देखने के बाद भी चित्त अन्यत्र आसक्त होने पर 'वह नहीं है' ऐसी बाधबुद्धि नहीं होती, फलतः सत्य घट का बाध और असत्य घट का अबाध प्रसक्त होगा। उदा. मरुमरीचिका में किसी को जलबुद्धि होने पर भी त्वरा से गाँव पहुँचने की जिद्द में 'वह जल नहीं 25 है' ऐसी बाधबुद्धि उदित नहीं होती ( मरीचिजल विस्मृत हो जाता है) फिर भी वह असत्य होता है । दूसरी बात यह है कि 'वह नहीं है' इस बाधबुद्धि को सत्य कैसे मान लिया ? (जिस के बल से आप भ्रमविषय का बाध मानते हो ।) यदि उसका कोई बाधक ज्ञान न होने से उसे सत्य मान लेते हैं तो हमने यह बता दिया है कि त्वरा से घट का अपनयन और अन्यत्र आसक्त चित्त दशा में व्यभिचार होने से 'वह नहीं है' ऐसी बुद्धि बाधक ही नहीं है। मतलब यह है कि घट को त्वरा 30 से हटा देने पर 'वह नहीं है' ऐसा बाधकज्ञान सत्यज्ञान के बाद भी होता है और मरुमरीचिका में असत्य ज्ञान होने पर भी बाधबुद्धि नहीं होती, यह कह दिया है । For Personal and Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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