SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड-४, गाथा-१ न च समारोपव्यवच्छेदोऽनुमानेन सौगतमते विधातुं शक्यः, तद्व्यवच्छेदस्य विनाशरूपत्वात् तस्य च निर्हेतुकत्वाभ्युपगमात् । न च प्रवृत्तसमारोपस्य स्वत एव निवृत्ते विनस्तु तेन व्यवच्छेदः क्रियते इति वक्तव्यम् यतस्तस्यापि सतो व्यवच्छेदो भूतवन्न तेन विधातुं शक्या, असतोऽपि खरविषाणवन्नासौ शक्यक्रियः । अथ भाविनोऽपि समारोपस्य न तेन व्यवच्छेदो विधीयते अपि तु तदुत्पत्तिप्रतिबन्धः । ननु समर्थे कारणे तदुत्पत्तेरवश्यंभावित्वान्न ततस्तत्प्रतिबन्धः, अनुत्पत्तौ वा न तत् तत्कारणम् नाप्यसौ तज्जन्यो भवेत्। 5 अथ तेन तत्कारणस्य सामर्थ्यविधातः क्रियते। सोऽप्ययुक्तः, सतः सामर्थ्यस्योपहन्तुमशक्यत्वात्, अस्य चार्थस्य - 'तस्य शक्तिरशक्तिर्वा या स्वभावेन संस्थिता। नित्यत्वादचिकित्स्यस्य कस्तां क्षपयितुं क्षमः।। (प्र.वा.२-२२) - इति भवतैव प्रतिपादनात। असमर्थे त कारणे कारणाभावादेव नोत्पत्स्यत ** बौद्धमत में समारोपव्यवच्छेद अशक्य * वस्तुतः बौद्धमत में अनुमान से समारोप का विच्छेद अशक्य है, क्योंकि बौद्धमत में विनाशरूप 10 व्यवच्छेद निर्हेतुक ही होता है। निरन्वयविनाशवादि बौद्ध मत की मान्यता है कि नाश का कोई हेतु ही नहीं होता। यदि कहा जाय - 'जिस समारोप का उत्थान हो चुका है वह तो अपने आप ही दूसरे क्षण में निवृत्त हो जायेगा, किन्तु जो भावि समारोप है उस की निवृत्ति अनुमान से क्यों नहीं हो सकती ?' – तो यह अशक्य है। कारण, भावि समारोप सत् है या असत् ? पहले पक्ष में, अतीत समारोप के व्यवच्छेद की अशक्यता की तरह भावि सत् समारोप का व्यवच्छेद भी शक्य 15 नहीं होगा। यदि असत् है तब खरविषाण की निवृत्तिक्रिया जैसे अशक्य है वैसे भावि असत् समारोप की निवृत्तिक्रिया कैसे शक्य रहेगी ? बौद्धवादी कहेगा कि - अनुमान भावि समारोप का ध्वंस नहीं कर सकता किन्तु उस की उत्पत्ति को रोक सकता है। - अरे भाई ! समारोप को निपजानेवाले कारण यदि समर्थ बलवत् रहेंगे तो समारोप की उत्पत्ति को कैसे रोक पायेंगे ? वह तो उत्पन्न हो कर ही रहेगा। उत्पत्ति को रोकने का मतलब है उत्पत्ति का अभाव, अभाव तो पहले से ही चला 20 आ रहा है, उस का कारण अनुमान कैसे बन गया ? उत्पत्ति-(प्राग्)अभाव यह अनुमान का जन्य . हो सकता है ? असंभव है। * समारोप व्यवच्छेद की अनुपपत्ति तदवस्थ * बौद्ध कहता है - अनुमान समारोपव्यवच्छेद करता है इस विधान का मतलब यह है कि वह समारोप के उत्पादक कारण के सामर्थ्य को तोड देता है। - यह कथन भी अयुक्त है। यदि कारण 25 का सामर्थ्य मौजूद है तो उस को कौन तोड सकता है ? इसी मतलब का प्रतिपादन आप के धर्मकीर्तिने अपने प्रमाणवार्तिक ग्रन्थ (२-२२) में करते हुए कहा है - _ 'उस पदार्थ की शक्ति (सामर्थ्य) या अशक्ति जो कि सहजतया उस में मौजूद है उस का विलय करने के लिये कौन समर्थ है ? जब कि (सामान्य) पदार्थ नित्य होने से चिकित्सा (नये परिष्कार) के लिये असाध्य है।' ..तस्य = सामान्यस्य शक्तिरशक्तिर्वा स्वविषयज्ञानजननादौ या स्वभावेन संस्थिता तां शक्तिमशक्तिं वा नित्यत्वाद् अचिकित्स्यस्य = अनपनेयप्राचीनस्वभावस्य कोऽन्यः क्षपयितुं क्षमः ? (इति मनोरथनन्दी टीका) (कर्ष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003804
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy