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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ सिद्धराश्रयासिद्धो हेतुभविष्यति घटज्ञानस्य ततः सिद्धेः । असदेतत् स्वयमसिद्धेन ज्ञानेन गृहीतस्याप्यगृहीतरूपत्वाद् अन्यथा सर्वज्ञज्ञानगृहीतस्य रथ्यापुरुषज्ञानगृहीतत्वं भवेत् इति तस्यापि सर्वज्ञताप्रसक्तिः। न च स्वज्ञानगृहीतं तद्गृहीतमिति नायं दोषः, स्वसंविदितज्ञानाभावे ‘स्वज्ञानम्' इत्यस्यैवाऽसिद्धेः। स्वस्मिन्
समवेतं स्वज्ञानमभिधीयते इति नायं दोष इति चेत् ? न, तस्याभावात् भावेऽप्यविशिष्टत्वाच्च। न 5 च स्वोत्पादितं 'स्वम्' इति वक्तव्यम्; तदुत्पादस्य परदर्शने तदाधेयत्वेन प्रसिद्धत्वात्, समवायाभावे च
तस्याप्यसिद्धत्वान्नित्यस्य चेश्वरज्ञानस्येश्वरज्ञानत्वासिद्धेः। ज्ञातता आदि दूसरे किसी निमित्त को घटज्ञान का ग्राहक (अनुमापक) मानेंगे तो उस घटज्ञान की प्रत्यक्षता (प्रत्यक्षग्राह्यता) का विरोध होगा, क्योंकि प्रत्यक्ष तो इन्द्रियार्थसंनिकर्षजन्य होता है न कि
ज्ञाततादिजन्य। तात्पर्य, ज्ञानग्राहक ज्ञान प्रत्यक्षात्मक नहीं होगा। 10 पूर्वपक्षी :- भले ही वह प्रत्यक्षात्मक न हो, लेकिन उस से एक बार घटादिज्ञानरूप धर्मी तो
सिद्ध हो गया न ! तब हमने जो पहले ज्ञेयत्व हेतुक स्वतो अग्राह्यता या परतोग्राह्यता का अनुमान प्रस्तुत किया है उस में हेतु को आश्रयासिद्धि का दोष नहीं होगा, क्योंकि अप्रत्यक्षज्ञान से घटादिज्ञानरूप धर्मी सिद्ध हो चुका है।
उत्तरपक्षी :- आप का कथन गलत है। घटज्ञानग्राहक ज्ञान स्वयं अप्रत्यक्ष होने से असिद्ध है, 15 जैसे असिद्धवन्ध्यापुत्रगृहीत दण्ड भी असिद्ध यानी अगृहीत ही होता है वैसे ही असिद्ध ज्ञान से गृहीत
घटज्ञान भी अगृहीत ही रह जाता है। ऐसा नहीं मानने पर सर्वज्ञ का ज्ञान, जो कि आप के लिये असिद्ध है, उस से गृहीत अतीन्द्रिय तत्त्व, आम आदमी के ज्ञान से भी ‘गृहीत' बन जायेगा, नतीजतन आम जनता भी सर्वज्ञ बन जायेगी। हालाँकि आम आदमी का वह ज्ञान भले ही सिद्ध नहीं है, लेकिन सर्वज्ञज्ञान से आम आदमी को भी सभी वस्तु का ग्रहण मानने में क्या दोष है ?
* आम आदमी में सर्वज्ञताप्रसक्ति का समर्थन * पर्वपक्षी :- जो अपने ज्ञान से गृहीत हो उसी को हम 'गहीत' कह सकते हैं. आम आदमी के लिये सर्वज्ञ का ज्ञान स्वकीय ज्ञान नहीं है, परकीय है, परकीय ज्ञान से कुछ भी अपने को गृहीत नहीं हो सकता।
उत्तरपक्षी :- जो ज्ञान असंविदित है वह स्वकीय है या परकीय-कह ही नहीं सकते। 25 पूर्वपक्षी :- ज्ञान जिस आत्मा में समवेत होगा वह उसी आत्मा के लिये 'स्वज्ञान' कहा जा ___ सकता है। अतः आमजनता में सर्वज्ञता की प्रसक्ति का दोष नहीं रहेगा।
उत्तरपक्षी :- गलत बात है। समवाय है कहाँ ? है तो एक होने से सभी के लिये समानरूप से सम्बन्धकारक है। अतः एक ज्ञान सभी का ज्ञान बन कर रहेगा।
पूर्वपक्षी :- जिस आत्मा से ज्ञान उत्पन्न हुआ, वह ज्ञान उस आत्मा का स्वज्ञान कहा जा सकता 30 है, अब क्या दोष है ?
उत्तरपक्षी :- समवाय के बिना आप के मत में 'अमुक ज्ञान अमुक आत्मा से उत्पन्न हुआ' ऐसा बोल ही नहीं सकते, क्योंकि आप के मत में जिस आत्मा में समवाय सम्बन्ध से ज्ञान आश्रित
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