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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ सर्वस्य तत्राऽप्रतिभासमानस्य ‘यदेवं न भवति तत् क्रमभावि न भवति' इति सर्वस्ये(?स्यान्य)तरप्रकारतया व्यवस्थितेः सिद्ध एव तद्व्यतिरिक्तप्रकारान्तराभावः, अन्यथा तदन्यतया तस्य व्याप्त्यभावेऽस्वविषयव्यवच्छेदात् तद्रूपतापरिच्छेद एव तस्य न स्यात्। परिच्छेदो हि तदसाधारणरूपानुकरणमेव, तच्च नास्तीति, तत् (?) सद्भावे वा कथं न अतद्रूपव्यवच्छेदः ? 5 यतो नाकारान्तराऽसंसृष्टरूपानुकरण(न्यत्) तदन्यव्यवच्छेदनं नाम । ततः सर्वस्य तदतद्रूपतया व्यवस्थिते: प्रकारान्तराभावः कथं न सिद्धिमध्यास्ते ? एवमितरप्रकारप्रतिपत्तावपि ज्ञेयम् । क्रमश्च तदन्याऽसाहित्यमुक्तः स चैकक्षणभाविनाप्यध्यक्षेण वस्तुस्वरूपं गृह्णता तदव्यतिरिक्तो गृहीत एवेत्यप्युक्तम्। यदपि उपलब्धिलक्षणप्राप्तत्वे प्रकारान्तरस्य देशादिनिषेध एव स्याद् नात्यन्ताभावः, अनुपलब्धिलक्षणप्राप्तत्वे विप्रकर्षिणां नाऽभावनिश्चयः, इति कुतोऽध्यक्षतः प्रकारान्तराभावसिद्धिः ? इत्युक्तम्, (२२/१) [क्रम-योगपद्य से अन्य प्रकार की असिद्धि ] इस लिये यही मानना होगा कि क्रमशः कार्यकारीभाव के सामर्थ्य से उदित होने वाला निर्विकल्प प्रत्यक्ष, उसी भावस्वरूप का ही अनुवर्त्तन = प्रतिपादन करता हुआ, अन्यभावप्रतिभासविभिन्न रूप से ही स्वसंवेदन के द्वारा संविदित करता हुआ दर्शन (= निर्विकल्पानुभव) के अनुरूप क्रम-योगपद्य के विकल्पों को उत्पन्न करता है। उस से यह विभाजन ज्ञात होता है कि 'भाव का कार्य क्रमिक है अक्रमिक नहीं 15 है।' इस प्रकार वस्तुमात्र क्रम-योगपद्य में से किसी भी एक प्रकार को धारण करती है यह निश्चित होने से अन्य (तृतीय) प्रकार का अभाव सिद्धिप्रासाद का आरोहण क्यों नहीं कर सकता ? अन्यप्रकार का अभाव असिद्ध मानेंगे तो उस के साथ सत्त्व की व्याप्ति न रहने पर उस से भिन्नरूप से अपने अतद्रपतात विषय का व्यवच्छेद यानी भिन्नतया अवगाहन न होगा, तो अपने स्वतन्त्र स्वरूप का भान ही नहीं होगा। [ असाधारणरूप परिच्छेद में अतद्रूपपरिच्छेद का अन्तर्भाव ] 20 वस्तु के असाधारणस्वरूप का अनुसरण करे वही परिच्छेद (= भान) कहा जाता है। यदि ऐसा परिच्छेद है, तो उस में अतद्रूप का व्यवच्छेद भी शामिल ही है। अस्वविषयव्यवच्छेद यानी तदन्यव्यवच्छेदन आखिर क्या है - अन्याकार से अनाश्लिष्ट वस्तुस्वरूप का अनुकरण यानी आकलन । यह सुनिश्चित है कि वस्तुमात्र का तद्रप अथवा अतद्वप किसी एक प्रकार होता है. तीसरा कोई प्रकार होता है या नहीं होता इस प्रश्न को फिर अवकाश ही कहाँ है ? तीसरा प्रकार नहीं होता - यह तथ्य जैसे सिद्ध हुआ तो उसी ढंग 25 से इतर प्रकारों की संभावना के लिये भी समझ लेना। (यानी दो से अतिरिक्त कोई भी प्रकार वस्तु में नहीं घटता । अक्रम प्रकार कैसे नहीं घटता – यह तो कहा जा चुका है - शेष रहा क्रम प्रकार) क्रम का मतलब है कि कालकृत साहित्य (यानी समकालीनता) का न होना। जब अध्यक्ष से वस्तुस्वरूप का ग्रहण होता है तो उस से भिन्न न होने से क्षणिक प्रत्यक्ष के द्वारा उक्तक्रम का भी ग्रहण हो ही जाता है - यह कहा जा चुका है। [प्रत्यक्ष से प्रकारान्तराभावसिद्धि कैसे ? प्रश्न का उत्तर 1 यह जो पहले विकल्पयुग्म कहा है (२२-१२) – “प्रकारान्तर के लिये दो विकल्प हैं - या तो वह उपलब्धिलक्षण प्राप्त (यानी प्रत्यक्षयोग्य) है या तो उपलब्धिलक्षण अप्राप्त है। प्रथम विकल्प में तो उस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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