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________________ खण्ड - ३, गाथा - ५ सामग्र्यः । न च यदि क्वचित् कदाचित् विनाशोद्भवे (वः ) तदा तत्कालद्रव्यापेक्षत्वाद् अन्यानपेक्षत्वहानि: इति वक्तव्यम्, विनाशहेत्वनपेक्षत्वेनानपेक्षत्वात्, अन्यथा द्वितीयेऽपि क्षणे विनाशो न स्यात् तत्कालाद्यपेक्षत्वात्। न च क्रम-यौगपद्याभ्यां सामर्थ्यलक्षणं सत्त्वं व्याप्तम् क्रमाऽक्रमनिवृत्तौ च नित्यात् सत्त्वं निवर्त्तमानं क्षणिकेष्वेवावतिष्ठते इति सत्त्वयुक्तस्य कृतकत्वस्य गमकत्वम् । यतः क्षणिकत्वे सति क्रमाक्रमप्रतिपत्तेरसंभव एव । तथाहि - येन ज्ञानक्षणेन तत्पूर्वकं वस्तु प्रतिपन्नं न तेनोत्तरकालभावि, येन चोत्तरकालसंगतं न तेन 5 पूर्वकालालीढमिति कथं क्रमप्रतीति: ? योपि पूर्ववस्तु-प्रीत्य (प्रतीत्य) नन्तरमपरस्य ग्राहकः स क्रमग्राही भवेत् । तथा च क्षणिकत्वमस्य स्यात्, बौद्धस्य च काल एव नास्तीति कथं तस्य क्रमग्रहः ? भिन्नकालवस्त्वग्रहा ( ?हे) कालाभावे चानेकवस्तुरूप एव क्रम ( : ) । तथा, नित्यस्यापि क्रमकर्तृत्वं न विरुध्यते । यथा च नित्यस्य क्रमकर्तृत्वादनेकरूपत्वात्( ? त्वं) तथा क्षणिकस्यापि स्यात् । अथ क्षणवद् द्वितीये क्षणे नित्यस्याप्यभावो भवेत् कार्याभावात् । अयुक्तमेतत्, कालाभावात् भवन्मतेन । 10 भवतु वा ग्रहस्तथापि कथं क्रमाक्रमाभ्यां सत्त्वस्य व्याप्तिः, क्रम-यौगपद्यव्यतिरिक्तप्रकारान्तरेणाप्यर्थक्रियासंभवात् । करेंगे तो फिर जब दूसरे ही क्षण में भाव का विनाश स्वीकारने पर, द्वितीयक्षणकाल की अपेक्षा आप को भी स्वीकारनी पडेगी, फलतः क्षणिकवाद में भी विनाश में कालद्रव्यसापेक्षता होने से अन्यनिरपेक्षत्व की नाश में हानि प्रसक्त होगी । द्वितीयक्षणसापेक्षता नहीं मानेंगे तो द्वितीयक्षण में भाव का नाश नहीं हो सकेगा । 15 [ क्षणिक भाव के साथ क्रमादि का मेल अघटित ] ( मुख्य प्रश्न चालु है - ) यदि कहा जाय 'अर्थक्रियासामर्थ्यरूप सत्त्व का क्रमशः युगपद् वा कार्यकारित्व अन्यतर) व्यापक । नित्य वस्तु में यह अन्यतरस्वरूप व्यापक घटता नहीं है, अतः सत्त्वरूप व्याप्य नित्य में नहीं हो सकता। तो फिर क्षणिक भावों में ही वह रहेगा । अत एव कृतकत्व भी सत्त्व के साथ रह कर अनित्यता का ( क्षणिकता का) ज्ञापक बन सकता है ।' इस के निषेध में हम कहते हैं कि 20 ऐसा नहीं घट सकता, क्योंकि क्षणिक वस्तु के साथ क्रम- अक्रम प्रतीति का मेल ही बैठ नहीं सकता । कैसे यह देखिये जिस ज्ञान क्षण से पूर्वकालीन वस्तु का ग्रहण किया है उस से उत्तर क्षण की वस्तु का ग्रहण अशक्य है उत्तरकालीन वस्तुग्राहक ज्ञान क्षण से पूर्वकालीन वस्तु का ग्रहण अशक्य है अतः पूर्वापरभावस्वरूप क्रम का ग्रहण ही क्षणिकपक्ष में असंभव है। जो पूर्वक्षणवर्त्तीवस्तुग्राहक हो कर उत्तरक्षण का ग्राहक होगा वही क्रमग्राही बन सकेगा, तब ( स्वयं अनेकक्षणवर्त्ती हो कर ) वस्तु की क्षणिकता को 25 प्रसिद्ध कर सकता है, किन्तु बौद्धमत में क्रमग्रहण का इस लिये भी असंभव है कि उस के मत में काल जैसा पदार्थ ही नहीं । ( तत्त्वसंग्रह पंजिका श्लो० ११४-१५ में काल पदार्थ के अस्वीकार की सूचना स्पष्ट की गयी है ।) - Jain Educationa International — २१ [ क्रमाक्रम के विना भी अर्थक्रिया की सम्भावना ] यदि कहें 'नित्य भाव के लिये दूसरे क्षण में कोई भी कार्य शेष न रहने से द्वितीयक्षण में उस 30 का अभाव हो जाना चाहिये जैसे कि क्षण का ।' तो यह भी गलत है क्योंकि आप कोई पदार्थ ही नहीं है। मान लो कि आप के मतानुसार कालसंज्ञक मत में किसी तरह क्रम अक्रम ग्रह कर लिया, फिर भी For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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