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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १ ननु क्षणिकत्वस्य प्रत्यक्षेणाऽनिश्चयात् कथं तत्तादात्म्यं स्वभावहेतोः प्रत्यक्षप्रमाणतः सिद्धम् ? अथ 'कृतका विनाशं प्रति अनपेक्षत्वात् तद्भावनियता यतो भावाः' इत्यनुमानसिद्धं तत्तादात्म्यम् - नैतत्, यतो निर्हेतुकत्वेऽपि विनाशस्य यदैव घटादयो नाशमनुभवन्तः प्रतीयन्ते तदैव तेषामसौ निर्हेतुकः स्यात् नान्यदेति कथं क्षणविशरारुता भावानाम् ? अथ एकक्षणभावित्वेन भावस्योत्पत्तेः प्रागपि विनाशसंगतिः । ननु 5 यथैकक्षणस्थायित्वेनोत्पत्तिः स्वहेतुभ्यः, तथाऽनेकक्षणस्थायित्वेनापि साऽविरुद्धा । दृश्यन्ते हि विचित्रशक्तयः स्पष्ट है । अत एव प्रतिज्ञार्थ (यानी साध्य) की एकदेशता का हेतु में प्रसञ्जन शक्य न होने से कोई दोष नहीं है। प्रश्न :- सत्त्व हेतु में साध्य क्षणिकता के अन्वय, आदिशब्द से व्यतिरेक का निश्चय किस प्रमाण से करेंगे ? 10 15 २० उत्तर :- ( तादात्म्यादि) प्रतिबन्ध ( साध्य का हेतु के साथ सम्बन्ध) का निश्चायक जो प्रमाण होगा उसी से अन्वयादि का भी निश्चय फलित होगा । यहाँ सत्त्व हेतु में क्षणिकत्व साध्यका तादात्म्य रूप प्रतिबन्ध, स्वभावहेतु (सत्त्व) के साधक प्रमाण से ही गृहीत होता है । [ सत्त्वस्वभावहेतु में क्षणिकत्व के तादात्म्यप्रतिबन्धनिश्चय पर प्रश्न ] अब बौद्ध के सामने पूर्वपक्षी दीर्घ प्रश्न खडा कर रहा हैं - ननु... से लेकर अत्र केचित् (२२-८) तक.. प्रश्न :- जब क्षणिकत्व का प्रत्यक्ष से निश्चय नहीं होता तब स्वभावहेतु ( सत्त्व) में प्रत्यक्षप्रमाण से उस का तादात्म्य प्रतिबन्ध भी कैसे सिद्ध होगा ? उत्तर में यदि कहा जाय कि कृतक भाव विनाश के लिये हेतु आदि की अपेक्षा नहीं रखते इसी लिये क्षणिकस्वभाव से व्याप्त होने चाहिये तो इस अनुमान से क्षणिक का तादात्म्य सिद्ध होगा । यह समुचित नहीं है क्योंकि विनाश भले हेतुनिरपेक्ष हो, फिर भी घटादि भाव जिस पल में नाशकवलित 20 दिखते हैं उसी पल में ही उन का निर्हेतुक नाश होता है उस के पहले नहीं ऐसा मान सकते हैं फिर भावों की क्षणिकता कैसे स्वीकारना ? यदि यहाँ कहेंगे 'कि भाव की उत्पत्ति एकक्षणजीवित्व गर्भित स्वरूप से ही होती है । अत एव जिस पल में उन का नाश दीखता है उस के पहले भी दूसरी क्षण में नाश मानना संगत है ।' तो ऐसा भी मान सकते हैं कि अपने हेतुओं से भावों की उत्पत्ति एकक्षणजीवित्व की तरह अनेकक्षणजीवित्वगर्भितस्वरूप से भी होती है, इस में कोई विरोध नहीं । भिन्न भिन्न भावों की 25 उत्पादक सामग्री तरह तरह की शक्ति धारण करती दिखती है तो तथाविध सामग्री से अनेकक्षणजीवित्व भी हो सकता है। यदि आप तर्क करें कि ' कहाँ भी किसी भी काल में ( न कि दूसरे पल में ही ) भाव का विनाश हो सकता है' तो यह भी मानना पडेगा कि तत्कालीन विनाश को तत्कालस्वरूप द्रव्य की अपेक्षा रहती है, फलतः भावों के विनाश में अन्य निरपेक्षता की हानि प्रसक्त होगी ' तो यह तर्क गलत है क्योंकि किसी भी पल में विनाश हो, वहाँ अवर्जनीय संनिधि के कारण कोई भी काल उपस्थित 30 रहे, लेकिन विनाश में उस की अपेक्षा न माने तो कोई हानि नहीं है । अगर आप ऐसा स्वीकार नहीं -- - - For Personal and Private Use Only - 1 . यद्भावं प्रति यन्नैव हेत्वन्तरमपेक्षते । तत् तत्र नियतं ज्ञेयं स्वहेतुभ्यस्तथोदयात् ।। निर्निबन्धा हि सामग्री स्वकार्योत्पादने यथा । विनाशं प्रति सर्वेऽपि निरपेक्षाश्च जन्मिनः । । (तत्त्वसंग्रहे का० ३५४ - ३५५ ) । तथा प्रामाण्यचर्चायामेषा व्याप्तिः प्रथम खंडे ४११ मध्ये दृश्या । Jain Educationa International www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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