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खण्ड-३, गाथा-५
१९ व्याप्यस्याप्यभावात् चक्षुरादि-ध्वनीनां सन्(त्)शब्दस्य च प्रवृत्तिनिमित्तभेदादर्थभेदतः परमार्थतो भेदाभावेऽपि न धर्मिण एव हेतुता, पारमार्थिकरूपस्याऽवाच्यत्वात्। विकल्पावभासिनमेवार्थं ध्वनयः प्रतिपादयन्ति 'क्षणिक'शब्दस्यापि (अ)क्षणिकसमारोपव्यवच्छेदविषयतया न 'सत्'शब्दार्थतोऽभिन्नार्थतेति तद्वारेणापि न प्रतिज्ञार्थेकदेशता(म्?)। अन्वयादिनिश्चयस्तु प्रतिबन्धनिश्चायकप्रमाणनिबन्धनः। स च तादात्म्यलक्षण: प्रतिबन्धः स्वभावहेतोः प्रमाणनिबन्धनः । होने पर दूसरे की भी (संस्कारस्कन्ध की) सिद्धि हो गयी। चक्षु आदि पाँच इन्द्रियों की अनुमान से सिद्धि कर लेने पर उस के कार्य के रूप में विज्ञानस्कन्ध की सिद्धि इस लिये शक्य है कि विज्ञान कादाचित्क होता है, अत एव इन्द्रिय उपरांत अन्य करण (मन) की सापेक्षता से विज्ञान की निष्पत्ति होती है। इन सभी में सत्त्व हेतु से क्षणिकता की सिद्धि की जा सकती है।
[सत्त्व हेतु से परोक्ष भावों में क्षणिकत्वानुमान की चर्चा ] __प्रत्यक्ष या स्वसंवेदन से जिन प्रमेयों की सिद्धि शक्य नहीं है - जैसे दूर क्षेत्र में रहे हुए, या स्वभाव से ही परोक्ष (अतीन्द्रिय) हो – ऐसे सभी पदार्थों जो कि भिन्न भिन्न दर्शनों में मान लिये गये हैं उन में प्रसङ्ग (और विपर्यय अर्थात् अन्वय और व्यतिरेक) के बल से सत्ता के आधार पर क्षणिकता की सिद्धि की जा सकती है। सत्ता व्याप्य है क्षणिकता की। अतः प्रसंगापादन से उन प्रमेयों में मान्य सत्ता रूप व्याप्य से नियतसंनिहित होनेवाली अर्थात् व्यापक क्षणिकता की सिद्धि होती है। तथा जहाँ व्यापक 15 का अभाव होता है वहा व्याप्य भी नहीं होता (इस विपर्यय के द्वारा नित्य माने गये आकाशादि से सत्त्व की निवृत्ति होती है।)
प्रश्न :- 'चक्षु' आदि वर्णानुपूर्वीरूप शब्दों में क्षणिकता की सिद्धि कैसे होगी ? यदि वहाँ हेतु प्रयोग में 'सत' शब्द का (सत्त्वात इस तरह) प्रयोग करेंगे तो आखिर शब्दों की क्षणिकता की सिद्धि के लिये शब्द को ही हेतु करने से, यानी परमार्थत दोनों में भेद न होने से पक्ष और हेतु के ऐक्य का दोष 20 प्रसक्त होगा।
उत्तर :- चक्षु आदि एवं सत् - ये सभी शब्द शब्दत्वेन एक होने पर भी उन में चक्षण - रसनादि प्रवृत्तिनिमित्त भिन्न भिन्न हैं, इस तरह उन शब्दों में अर्थभेद स्पष्ट है, अर्थभेदप्रयुक्त भेद शब्दों में रह जाने से अब धर्मी (चक्षु आदि शब्द) और 'सत्' शब्द में धर्मी-हेतु के ऐक्य का दोष प्रसक्त नहीं है।
प्रश्न :- क्षणिकशब्द जो साध्यवाचक है और 'सत्' शब्द हेतु का वाचक है, आखिर वाचक शब्द 25 ही साध्य और हेतु है, यहाँ भिन्नता न होने से साध्य-हेतु के ऐक्य का दोष क्यों नहीं होगा ?
[शब्द परमार्थतः अर्थवाचक नहीं होता ] उत्तर :- पहले यह ध्यान में रख लो कि शब्द कभी भी पारमार्थिकरूप से अर्थ का बोधक नहीं हो सकता क्योंकि शब्द का अर्थ के साथ तादात्म्य या तदुत्पत्ति कोई सम्बन्ध नहीं है। शब्द तो केवल कल्पित अर्थ का ही बोधक होता है। इस स्थिति में 'क्षणिक' शब्द अक्षणिक समारोप की व्यावृत्ति को 30 एवं 'सत्' शब्द असत् समारोप व्यावृत्ति को विषय करता है। यहाँ दोनों व्यावृत्ति भिन्न होने से व्यावृत्तिभेद द्वारा साध्यशब्द से हेतुशब्द की भिन्नार्थता (यानी 'सत्' शब्दार्थता से 'क्षणिक' शब्दार्थता में भिन्नार्थता
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