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________________ १८ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १ २९) इत्येतदपि सत्त्वलक्षणमयुक्तम् । अथ कथंचिद् उत्पाद - व्ययौ कथंचिद् ध्रौव्यम् इत्यभ्युपगमः । नैतत्, यतो यथोत्पाद-व्ययौ न तथा ध्रौव्यम्, यथा च ध्रौव्यं न तथोत्पादव्ययौ इति कथमेकं वस्तु यथोक्तलक्षणयुक्तं भवेत् अतोऽर्थक्रियासामर्थ्यमेव सत्त्वमक्षणिकात् क्रम- यौगपद्यविरोधाद् व्यावर्त्तमानं क्षणिक एवावतिष्ठते इति, तदात्मतां कथमतिक्रामेत् ? तन्न विशेषलक्षणस्याप्ययोगः ( ५ / २-४ ) । तस्मात् 'यत् सत् तत् क्षणिकमेव, 5 सन्ति च द्वादशायतनानि' इति क्षणिकतायामिदमनुमानम् । अत्र च पञ्चस्य ( ? सु) रूपादिष्वध्यक्षतः सत्त्वसिद्धिः । मनो-धर्मायतनयो: स्वसंवेदनतः स्कन्धत्रयस्वभावत्व (?) धर्मायतनस्य संस्कारस्कन्धस्य च विप्रयुक्तस्याभावात् चक्षुरादि (च?) पञ्चस्वनुमित्ये(ते) स्तत्कार्यविज्ञानस्य कादाचित्कतया करणान्तरसापेक्षत्वसिद्धेः देशादिविप्रकृष्टेषु च सर्वपदार्थेषु अभ्युपगमविषयेषु प्रसङ्गमुखेन सत्तायाः क्षणिकतासाधन (म्) व्याप्यसद्भावे व्यापकस्य नियतसंनिधित्वा (त्) व्यापकाभावे च 10 समीचीन नहीं है, क्योंकि उत्पत्ति-नाश का स्थैर्य के साथ स्पष्ट विरोध है एवं एक धर्मी पदार्थ में एक साथ तीनों का अस्तित्व भी शक्य नहीं । यदि कहें कि 'जैनमत में पदार्थों में कथंचित् सापेक्षभाव से ही उत्पाद-व्यय-स्थैर्य का समावेश माना गया है, तब विरोधादि दोषसम्भव नहीं है' तो यह अयुक्त है। कारण, एक ही वस्तु में जिस प्रकार ( जिस काल में ) उत्पत्ति - नाश होते हैं उसी प्रकार ( उसी काल में) स्थैर्य का होना सम्भव नहीं ( विरोध होने से ) । एवं जिस प्रकार एक वस्तु (जिस 15 काल में) स्थैर्य रहेगा उसी प्रकार ( उस काल में विरुद्ध होने से ) उत्पत्ति - नाश नहीं रह सकते। आखिर और किसी तरह सत्त्व की व्याख्या संगत नहीं होने पर, अर्थक्रियाशक्ति को ही 'सत्त्व' मानना न्यायोचित्त है । ऐसा सत्त्व अक्षणिक में नहीं हो सकता, क्योंकि तब प्रश्न आयेगा अक्षणिक भाव क्रमशः अर्थक्रिया सम्पन्न करेगा या एक साथ ? दोनों ही पक्ष में विरोध स्पष्ट होने से आखिर अक्षणिक से पल्ला छुड़ा कर अर्थक्रियाशक्ति रूप सत्त्व को क्षणिक पदार्थ में ही विश्राम करना पडेगा । इस प्रकार, सत्त्व 20 हेतु क्षणिकतात्मकत्व (यानी क्षणिकता के साथ तादात्म्य) का अतिक्रमण कैसे करेगा ? निष्कर्ष हेतु के स्वभावादि विशेष लक्षण की भी अनुपपत्ति नहीं है । ऋजुसूत्रालम्बी बौद्ध मत में १२ पदार्थ माने गये हैं जिन्हें द्वादश आयतन कहा गया है, उन सभी में अर्थक्रियात्मकशक्तिस्वरूपसत्त्व के रहने से, 'जो सत् होता है वह क्षणिक होता है। बारह आयतन सत् है' इस प्रकार से क्षणिकता का अनुमान करना बहुत सरल है । 25 - Jain Educationa International - [ प्रत्यक्ष से क्षणिकत्वसिद्धि की चर्चा ] बौद्धदर्शन में रूपादि पाँच विषय + नेत्रादि पाँच इन्द्रिय + मन और धर्मायतन ये जो बारह आयतनों का निरूपण है, उन में से रूप - रसादि पाँच स्कन्धों में सत्त्व की सिद्धि तो प्रत्यक्षतः होती है । मनः स्कन्ध और धर्मायतन की सिद्धि स्वसंवेदन से की जा सकती है। ('स्कन्धत्रयस्वभावत्व' इतने अंश का विवरण पाठाशुद्धि के कारण शक्य नहीं ।) धर्मायतन से संस्कारस्कन्ध पृथक् न होने से एक की सिद्धि For Personal and Private Use Only — - 7. चक्खायतनं, रूपायतनं, सोतायतनं, सद्दायतनं, घानायतनं, गन्धायतनं, रसायतनं, कायायतनं, फोट्टब्बायतनं, मनायतनं, धम्मायतनं ति । । विसुद्धिमग्गो पृ. ३३४ ।। तथा पञ्चेन्द्रियाणि शब्दाद्या विषया पञ्च मानसम् । धर्मायतनमेतानि द्वादशायतनानि च ।। षड् द० समु० का० ८ ।। www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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