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________________ ३२६ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ तत्रैव निष्पाद्यते पटोत्पादनशक्तिर्न तु वीरणादौ तत्र तन्तुत्वाभावात्। एवं च यत् यथोपलभ्यते तत् तथैवाभ्युपगन्तव्यम्, दृष्टाऽनुमितानां नियोगप्रतिषेधानुपपत्तेः। तेन यत्रैव वर्णत्वादिकं निमित्तं तत्रैव वाचिका शक्ति संकेतेनोत्पाद्यते यत्र तु तन्नियतं निमित्तं नास्ति तत्र न वाचिका शक्तिरिति न नित्यवाच्यवाचकसम्बन्धपरिकल्पनया प्रयोजनम् । एकान्तनित्यस्य तु ज्ञानजनकत्वे सर्वदा ज्ञानोत्पत्तिः। तदजननस्वभावत्वे न कदाचिद्विज्ञानोत्पत्तिरिति प्राक् (३२४-१२) प्रतिपादितम् । समयबलेन तु शब्दाद् अर्थप्रतिपत्ती यथासंकेतं विशिष्टसामग्रीतः कार्योत्पत्तौ न कश्चिद् दोषः । __[ शाब्दं प्रमाणमनुमानभिन्नमिति प्रस्थापनम् ] अत एवानुमानात् प्रमाणान्तरं शाब्दम्। अनुमानं हि पक्षधर्मत्वान्वयव्यतिरेकवल्लिङ्गबलादुदयमासादयति, शाब्दं तु संकेतसव्यपेक्षशब्दोपलम्भात् प्रत्यक्षाऽनुमानाऽगोचरेऽर्थे प्रवर्त्तते । स्वसाध्याऽव्यभिचारित्व10 मप्यनुमानस्य त्रिरूपलिंगोद्भूतत्वेनैव निश्चीयते शाब्दस्य त्वाप्तोक्तत्वनिश्चये सति शब्दस्योत्तरकालमिति । किञ्च, शब्दो यत्र यत्रार्थे प्रतिपादकत्वेन पुरुषेण प्रयुज्यते तं तमर्थं यथासंकेतं प्रतिपादयति, न त्वेवं धूमादिकं लिंगं पुरुषेच्छावशेन जलादिकं प्रतिपादयतीत्यनुमानात् प्रमाणान्तरं सिद्धः शब्दः। जिस में तन्तुत्व होता है वस्त्रोत्पादनशक्ति भी वहाँ ही होती है, कटउत्पादक वीरणादि में नहीं। इस प्रकार प्रतिनियम ऐसा फलित होता है कि जो जैसे जहाँ उपलब्धिगोचर होता हैं उस का अस्तित्व 15 वैसे - वहाँ ही, मान्य किया जाता है। जो तथ्य अनेक विद्वानों के द्वारा दृष्ट है या अनुमित है उस के ऊपर न कोई प्रश्न करना चाहिये न तो विरोध। फलितार्थ यह है कि जिस में वर्णत्वादि निमित्त है वहाँ ही संकेत, शक्ति का उत्पादन करता है, जिस में वैसा नियत निमित्त नहीं है वहाँ वाचक शक्ति की उत्पत्ति नहीं होती। अतः शक्ति के लिये नित्य वाच्य-वाचक सम्बन्ध की कल्पना जरूरी नहीं है। एकान्तनित्य सम्बन्ध यदि ज्ञानजनक होगा तो सतत सदा ज्ञान उत्पन्न होता रहेगा। 20 यदि उस में ज्ञानजननस्वभाव नहीं है तो कभी भी ज्ञानोत्पत्ति उस से नहीं होगी। पहले यह कहा जा चुका है - (३२४-२९)। ऐसा मानना होगा कि संकेत के बल द्वारा शब्द से अर्थबोध होता है और संकेतानुसार विशिष्ट सामग्री से कार्य यानी शाब्दबोध होता है - यहाँ कोई दोष नहीं। [ शाब्द प्रमाण का अनुमान में अन्तर्भाव अशक्य ] शब्द संकेत के द्वारा अर्थबोध कारक है, अनुमान में संकेत उपयोगी नहीं होता, इसी लिये शाब्दप्रमाण 25 अनुमान से भिन्न है, अनुमान में उस का अन्तर्भाव शक्य नहीं। अनुमान तो पक्षधर्मता, अन्वय-व्यतिरेकशालि लिंग बल से उदित होता है - शाब्द तो संकेत सापेक्ष शब्द की उपलब्धि के द्वारा ऐसे परोक्ष अर्थ में प्रवृत्त होता है जहाँ प्रत्यक्ष या अनुमान की पहुँच नहीं होती। यह भी दोनों में भेद है – अनुमान का स्वसाध्याऽव्यभिचारित्व, तीनरूप (पक्षधर्मतादि) वाले लिंग से उत्पत्ति के बल से निश्चित होता है - जब कि शाब्द में स्वबोध्यार्थाव्यभिचारित्व आप्तोक्तत्व का निश्चय होने पर शब्दश्रवण के बाद 30 निश्चित होता है। तदुपरांत, जिस जिस अर्थ के प्रतिबोधकतया पुरुष शब्द का प्रयोग करता है तत्तद् अर्थ को, संकेत के अनुसार शब्द प्रदर्शित करता है। अनुमानप्रक्रिया में ऐसा नहीं है कि धूमादि लिंग पुरुषइच्छा के अनुसार जलादि का बोधन करे। इस तरह भी शब्द अनुमान से भिन्न स्वतन्त्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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