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________________ खण्ड - ३, कारणात् कार्योत्पत्तावदृष्टतदन्तरपरिकल्पना युक्तिसंगता, अतिप्रसङ्गात् । किञ्च यद्युपलभ्यमाना वर्णा व्यस्त- समस्ता नार्थप्रतिपत्तिजननसमर्थाः स्फोटाभिव्यक्तावपि न समर्था भवेयुः । तथाहि - न समस्तास्ते स्फोटमभिव्यञ्जयन्ति सामस्त्याऽसम्भवात् । नापि प्रत्येकम् वर्णान्तरवैफल्यप्रसङ्गात् एकेनैव स्फोटाभिव्यक्तेर्जनितत्वात् । न च पूर्ववर्णैः स्फोटस्य संस्कारेऽन्त्यो वर्णस्तस्याभिव्यञ्जक इति न वर्णान्तरवैयर्थ्यम्, अभिव्यक्तिव्यतिरिक्तसंस्कारस्वरूपानवधारणात्। तथाहि - न तावत्तत्र तैर्वेगाख्यः 5 संस्कारो निर्वर्त्यते तस्य मूर्त्तेष्वेव भावात् । नापि वासनारूप:, अचेतनत्वात् स्फोटस्य, तच्चैतन्याभ्युपगमे वा स्वशास्त्रविरोधः । नापि स्थितिस्थापकः तस्यापि मूर्त्तद्रव्यवृत्तित्वात् स्फोटस्य चाऽमूर्त्तत्वाभ्युपगमात् । किञ्च, असौ संस्कारो स्फोटस्वरूपः तद्धर्मो वा ? न तावदाद्यः कल्पः, स्फोटस्य वर्णोत्पाद्यत्वप्रसक्तेः । नापि द्वितीयः, व्यतिरिक्ताऽव्यतिरिक्तविकल्पानुपपत्तेः । तथाहि-- असौ धर्मः स्फोटाद् व्यतिरिक्तः अव्यतिरिक्तो से अर्थबोध होता है यह अन्वयव्यतिरेक से निश्चित होता है, अतः स्फोट की कल्पना निरस्त हो 10 जाती है। स्फोट के बिना भी पूर्वोक्त पद्धति से अन्त्यवर्ण से अर्थबोध घट सकता है । स्फोट के बिना अर्थबोध की अनुपपत्ति हतप्रभाव बन जाती है। जब दृष्ट कारण ( अन्त्य वर्ण) से ही किसी प्रकार कार्योत्पत्ति संगत हो जाती है तब उस कार्य के लिये अन्य कारण (स्फोट) की कल्पना युक्तिसंगत नहीं है। अन्यथा, शशशृंगादि की भी कल्पना आ पडेगी । [ स्फोटवाद में संस्कार की बात अशोभनीय ] 15 और एक बात :- स्फोटवादी जो कहता है कि व्यस्त या समुदित वर्ण अर्थबोध उत्पादन में सक्षम नहीं है तो हम कहते हैं कि स्फोट - अभिव्यक्ति में भी कैसे सक्षम होंगे ? देखिये- समुदित वर्ण स्फोट का व्यक्तीकरण कर नहीं सकता, क्योंकि वर्णों का समुदाय बन नहीं सकता । प्रत्येक वर्ण से भी अभिव्यक्ति दोषग्रस्त है क्योंकि तब अन्य वर्णों की सार्थकता नष्ट होगी, क्योंकि किसी भी एक वर्ण से स्फोट - अभिव्यक्ति सम्पन्न हो जायेगी। यदि कहें 'पूर्व पूर्व वर्णों से स्फोट परिष्कृत होता 20 रहेगा फलतः अन्त्य वर्ण स्फोट का अभिव्यञ्जक बन जायेगा, अतः अन्य वर्णों की निरर्थकता नहीं होगी' तो यह निषेधार्ह है क्योंकि आप के मत में अभिव्यक्ति खुद ही संस्कार है, उस से भिन्न कौन सा संस्कार है ? देखिये वर्णों से कौन सा ( अभिव्यक्ति को छोड़ कर ) संस्कार बनेगा ? वेग, वासना या स्थितिस्थापक ? वेग संस्कार का निर्माण शक्य नहीं क्योंकि वह तो मूर्त्त द्रव्यों में ही होता है, स्फोट को तो अमूर्त्त कहा गया है । स्फोट अचेतन होने से 'वासना' भी यहाँ नहीं घटेगी 25 क्योंकि वह तो चेतनधर्म है । यदि स्फोट में चैतन्य मान लेंगे तो भवदीय शास्त्रों से विरोध होगा । तीसरा स्थितिस्थापक संस्कार तो मूर्त्तद्रव्य में ही होता है जब कि स्फोट तो मतलब, स्फोटवाद में 'संस्कार' की वार्त्ता शोभास्पद नहीं है । अमूर्त्त माना गया है। गाथा - ३२ Jain Educationa International [ स्फोटवाद में संस्कार प्रति विकल्प- असह्यता ] अथवा, संस्कार किसी भी प्रकार का हो, प्रश्न ये हैं कि वह स्फोटात्मक है या उस का धर्म ? 30 प्रथम विकल्प इस लिये अनुचित है कि संस्कार की तरह स्फोट को भी वर्णजन्य होने की आपत्ति होगी। दूसरे विकल्प में स्फोट- तद्धर्म में भेदाभेद विकल्पों की अनुपपत्ति शल्य बन जायेगी । देखिये ३१७ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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