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________________ ३१८ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ वा ? यद्यव्यतिरिक्तस्तदा तत्करणे स्फोट एव कृतो भवेदिति तस्याऽनित्यत्वप्रसक्तेः स्वाभ्युपगमविरोधः । अथ व्यतिरिक्तस्तदा तत्सम्बन्धानुपपत्तिस्तदनुपकारकत्वात् । तस्योपकाराभ्युपगमे व्यतिरिक्ताऽव्यतिरिक्तविकल्प: तत्रापि पूर्वोक्त एव दोषोऽनवस्थाकारी । न च व्यतिरिक्तधर्मसद्भावेऽपि स्फोटस्यानभिव्यक्तिस्वरूपव्यवस्थितस्य पूर्ववदर्थप्रतिपत्तिहेतुत्वम् तत्स्वरूपत्यागे वाऽनित्यत्वप्रसक्तिः। अथ न व्यतिरिक्तसंस्कारकृतमुपकारमपेक्ष्य 5 पूर्वरूपपरित्यागादसावर्थप्रतिपत्तिं जनयति किन्तु संस्कारसहायोऽविचलितरूप एव, एककार्यकारित्वस्यैव सहकारित्वाभ्युपगमात्। नन्वेवं वर्णानामप्यन्यकृतोपकारनिरपेक्षाणामेककार्यनिवर्त्तनलक्षणसहकारित्ववत् सहकारिसहितानामर्थप्रतिपत्तिजनने किमपरस्फोटकल्पनयाऽप्रमाणिकया कार्यम् ? । किञ्च, पूर्ववर्णैः संस्कारः स्फोटस्य क्रियमाणः किमेकदेशैः क्रियते सर्वात्मना वा ? यद्यैकदेशैः तदा ते ततोऽर्थान्तरभूताः अनर्थान्तरभूता वा ? यद्यर्थान्तरभूताः तदा तेषां तदनुपकारे सम्बन्धासिद्धिः, 10 उपकारे व्यतिरिक्ताऽव्यतिरिक्तविकल्पोक्तदोषानुषङ्गः । न च समवायाद् अनुपकारेऽपि तेषां सम्बन्धिता तस्यानभ्युपगमात्, परैरभ्युपगमे च स्वकृतान्तविरोधः। अर्थान्तरभूतत्वे चैकदेशानाम् तेभ्य एवार्थप्रतिपत्तेः धर्मरूप संस्कार स्फोट से भिन्न है या अभिन्न ? यदि अभिन्न है तो अब संस्कार का उत्पादक स्फोट का भी उत्पादक हो गया अतः स्फोट में अनित्यत्व मानने की विपदा आयेगी। तब नित्यत्व के स्वीकार के साथ विरोध होगा। यदि भिन्न मानेंगे तो स्फोट के साथ संस्कार का कोई सम्बन्ध नहीं बनेगा, 15 क्योंकि संस्कार का स्फोट पर कोई उपकार नहीं है। यदि उपकार मानेंगे तो उपकार के ऊपर भी भेदाभेद विकल्प और पूर्वोक्त अनवस्थाकारक दोष नहीं टलेगा। कदाचित् मान ले कि स्फोट से भिन्न (संस्कार या उपकार) धर्म घटित है; फिर भी अनभिव्यक्तिस्वरूपावस्थित स्फोट पूर्वावस्था में जैसे अर्थबोध हेतु नहीं था तो वर्तमानादि अवस्था में भी कैसे होगा ? यदि अनभिव्यक्तिस्वरूप का त्याग कर के अभिव्यक्त बनेगा तो अनित्यता गला पकडेगी। यदि कहें - ‘भिन्न संस्कार जनित उपकार को ले कर पूर्व स्वरूप त्याग के द्वारा स्फोट अर्थबोध उत्पन्न करे ऐसा हम नहीं मानते। किन्तु वह अर्थबोधन करता है संस्कार की सहायता से, स्वयं अचल रह कर भी। यहाँ सहकारित्व का इतना ही अर्थ है 'मिल कर एककार्यकारित्व'। अहो ! इस तरह तो वर्णों से ही अर्थबोध शक्य बन गया - देखिये, अन्यकृत उपकार से निरपेक्ष एक कार्य कारित्वरूप सहकारित्व की तरह सभी वर्ण परस्पर सहकारी बन कर अर्थबोध करा देगा। अब वर्गों 25 से अतिरिक्त नये स्फोट पदार्थ की अप्रमाणिक कल्पना का प्रयोजन क्या ? [स्फोट संस्कार पर एकदेश-सर्वात्मता विकल्प प्रहार ] और एक बातः- पूर्ववर्णों से स्फोट का जो संस्कार होगा वह एक-एक देशों से होगा या अखण्ड स्फोट सर्वात्मा से ? यदि एक देशों से, तो और दो विकल्प :- स्फोट के वे देश उस से भिन्न है या अभिन्न ? यदि भिन्न हैं तो उन देशों का स्फोट के साथ उपकार के बिना कोई सम्बन्धयोजना 30 सिद्ध नहीं होगी। कारण :- वहाँ भी सम्बन्धि का स्फोट पर उपकार भिन्न होगा या अभिन्न - इन विकल्पों के दोषों को लाँध नहीं सकेंगे। समवाय से उपकार के बिना ही स्फोटसंसर्गता को आप मानते ही नहीं है। यदि मानेंगे तो आप के सिद्धान्त के साथ विरोध आयेगा। तथा एक देशों को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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