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________________ ३०० सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ पश्चादिव स्वभावाऽविशेषाद्' इति तदप्ययुक्तम्; यतो न वै किञ्चिदेकं जनकम् सामग्रीतः फलोत्पत्तेः। अक्षणिकश्च सामग्रीसंनिधानापेक्षया कार्यनिर्वर्तनस्वभावः केवलस्तु तदकरणस्वभावः । न च तदा भाविकार्याकरणादवस्तुत्वम्, क्षणिकेऽपि प्रथमक्षणे कार्याऽकरणादवस्तुत्वप्रसक्तेः । अत एकत्र कारणान्तरापेक्षाभ्यां जनकत्वाऽजनकत्वे अविरुद्धे । यतो न क्षणिकवाद्यभ्युपगतक्षणस्यापि सम्बन्ध्यन्तरसंनिधानाऽसंनिधाकृतः 5 स्वभावभेद: अन्यथाऽनेकसामग्रीसन्निपातिनः एकक्षणस्यैकदा विलक्षणानेककार्योत्पादनेऽनेकत्वप्रसक्तिर्भवेत् । दृश्यते च प्रदीपक्षणस्य समानजातीयक्षणान्तरकज्जलचक्षुर्विज्ञानाद्यनेककार्यनिवर्तकत्वमेकस्य नानासामग्र्युपनिपातिन इति क्रमेणाप्यक्षणिकस्य तदविरुद्धम्। यथा चैकक्षणस्य स्व-परकार्यापेक्षयैकदा जनकत्वाऽजनकत्वे अविरुद्ध तथाऽक्षणिकस्यापि सहकारिकारणसन्निधानाऽसन्निधानाभ्यां क्रमेण कार्यजनकत्वाऽजनकत्वे न विरोत्स्येते। विज्ञप्तिपरमाणुपक्षेऽपि यथैको ज्ञानपरमाणुः सम्बन्ध्यन्तरजनितस्वभावभेदेऽप्यभिन्नः अन्यथा दिक्षहोगा तो प्रथमक्षण में ही उस कार्य का करण प्रसक्त होगा क्योंकि उत्तरक्षण में जो स्वभाव है वह पूर्वक्षण में अक्षुण्ण है – इत्यादि, वह भी अयुक्त है क्योंकि हम किसी एक व्यक्ति एवं उस के तथाविध स्वभाव से ही कार्योत्पत्ति नहीं मानते किन्तु सामग्री से फलोद्भव मानते हैं। अक्षणिक पदार्थ सामग्रीसंनिधान की अपेक्षा कार्यकरणस्वभाव होता है, सामग्रीविहीन अक्षणिक पदार्थ कार्यअकरणस्वभाववाला होता है। 15 उस का यानी भाविकार्यअकरणस्वभाव होने का मतलब यह नहीं है कि वह अवस्तु है, यदि ऐसा मानेंगे तो क्षणिक पदार्थ को भी स्वप्रथमक्षण में अवस्तुत्व मानना पडेगा क्योंकि वह भी उस क्षण में कार्योत्पत्ति नहीं कर सकता। फलित यह हुआ कि एक ही वस्तु में कारणान्तर सापेक्ष जनकत्व एवं कारणान्तरनिरपेक्षतया अजनकत्व मानने में कोई विरोध नहीं। [स्वभावभेद से व्यक्तिभेद आपत्ति का निरसन 1 20 हेतु स्पष्ट है :- क्षणिकवादिमान्य क्षण में भी, अन्य अन्य सहकारी रूप संबन्धि का संनिधान और असंनिधान, दोनों के रहते हुए भी स्वभावभेद नहीं माना जाता। यदि स्वभावभेद मानेंगे तो कोई एक क्षण जब अनेककारणसामग्रीअन्तर्वत्ती है तब एकसाथ स्वभावभेद प्रयुक्त व्यक्तिभेद से विलक्षण अनेक कार्यों का उद्भव आ पडेगा, यानी क्षण के एकत्व का भंग होगा। यह तो सभी को दिखता है कि एक प्रदीप क्षण सजातीय उत्तरक्षण, काजल, चाक्षुषज्ञान आदि अनेक कार्यों को करता है फिर उस का एकत्व अक्षण्ण रहता है। तो ऐसे ही एक अक्षणिक पदार्थ जब विविध (क्रमिक) सामग्री के उपनिपात (= संनिधान) के जरिये क्रमशः अनेक कार्यकारी बने इसमें कोई विरोध नहीं है। क्षणिकवादी भी जब एक ही क्षण स्वसन्तान में उत्तरक्षणरूप कार्य करता है, परसन्तान में नहीं करता, इस तरह एकपल में जनकत्व-अजनकत्व होने में, विरोध नहीं मानते – तो इसी तरह अक्षणिक पदार्थ सहकारि कारणों के संनिधान में क्रमश: कार्य का जनक होता है, असंनिधान में अजनक होता है - यहाँ 30 कोई विरोध नहीं आयेगा। जो विज्ञानवादी विज्ञानपरमाणु की बात करता है, उस में भी जैसे एक ही ज्ञानपरमाणु अन्यअन्यसंबन्धियों के सम्बन्ध से भिन्नस्वभाववाला होने पर भी अभिन्न = एक ही होता है। यदि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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