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________________ खण्ड-३, गाथा-२७ २९९ एव क्षणिकादर्थक्रिया व्यावर्त्तमाना स्वं व्याप्यं सत्त्वलक्षणमादाय निवर्त्तत इति यत्र सत्त्वं तत्राऽक्षणिकत्वं सिद्धिमासादयति। न च कार्यकालेऽभवतोऽपि कारणस्य प्राक्तनानन्तरक्षणभावित्वात् कारणत्वम् कार्यकाले स्वयमेवाभवतोऽकारणान्तरवत् कारणत्वाऽयोगात् कार्यस्य च कारणकाले आत्मनैवाऽभवतः कार्यान्तरवत् तत्कार्यत्वानुपपत्तेः । क्षणिकस्य च प्रमाणाऽविषयत्वान्न तत्र कार्य-कारणभावपरिकल्पना युक्तिसङ्गता। न चानुपलब्धेऽपि तत्र कार्यकारणभावव्यवस्था, अतिप्रसङ्गात्। न च क्षणक्षयमीक्षमाणोऽपि सदृशापरा- 5 परोत्पत्त्यादिविभ्रमनिमित्ताद् नोपलक्षयतीति वक्तव्यम्, यतो नाध्यक्षात् क्षणक्षयमलक्षयंस्तत्र कार्य-कारणभावं व्यवस्थापयितुं शक्नोति, नाप्यनुमानात् क्षणिकत्वं व्यवस्थापयितुं समर्थः, तस्य स्वांशमात्रावलम्बितया वस्तुविषयत्वाऽयोगात्। न च मिथ्याविकल्पेनाध्यवसितं क्षणिकत्वं वस्तुतो व्यवस्थापितं भवति । यदपि ‘अक्षणिके क्रम-योगपद्याभ्यामर्थक्रियाविरोधात्'० इत्याधुक्तम् तदपि सहकारिसन्निधानवशादक्षणिकस्य क्रमेणार्थक्रियां निवर्तयतोऽयुक्तमेव । यदप्युक्तम् 'तत्करणस्वभावश्चेदक्षणिकः प्रागेव तत्करणप्रसङ्गः 10 की दोस्ती जमती नहीं तो उस से पराङ्मुख अर्थक्रिया अपने व्याप्यभूत सत्त्व को साथ में लेकर बिदा लेती है। फलतः यही सिद्ध होता है कि जहाँ सत्त्व होगा वहाँ अक्षणिकत्व होगा। पूर्वपक्ष :- कारण भले कार्योत्पत्तिकाल में हाजिर न रहे, उस के अनन्तरपूर्वक्षण में रहे तो भी वह कारण बन सकता है। उत्तरपक्ष :- कार्योत्पत्तिकाल में जैसे कि घटोत्पत्तिकाल में पाचकादि हाजिर नहीं होते तो पाचकादि 15 घट का कारण नहीं हो सकता वैसे यदि अभिमत कारण कार्यकाल में हाजीर नहीं रहेगा तो उस में कारणता भी रह नहीं सकेगी। तथा पूर्वक्षण में जब अभिमत कारण है तब यदि कार्य खुद स्वरूपतः हाजीर नहीं है तो वह उस का कार्य बन नहीं सकता जैसे अन्य कार्य । [क्षणिक पदार्थ में कारण-कार्य भाव अनुपपत्ति ] यह भी सुन लो कि क्षणिक वस्तु प्रमाणविषय न होने से क्षणिक पदार्थों में कारण-कार्य भाव 20 की कल्पना युक्तियुक्त नहीं है। प्रमाणोपलब्ध न होने वाले क्षणिक पदार्थ में कार्य-कारणभावव्यवस्था शक्य नहीं है, अन्यथा शशशृंगादि में भी होने लगेगी। ऐसा नहीं बोलना :- क्षणक्षय का प्रत्यक्ष तो होता है किन्तु सत्वर नये नये सदृशपदार्थ के उदभव से पैदा होनेवाले विभ्रम के कारण वह क्षणक्षय को पहिचान सकता नहीं। - निषेध कारण यह है कि प्रत्यक्ष से क्षणक्षय को न पहिचाननेवाला उस में कारण-कार्यभाव की व्यवस्था भी कैसे कर सकता है ? अनुमान से भी वह क्षणिकत्व की 25 सिद्धि कर नहीं सकता। कारण :- बौद्धमतानुसार अनुमान तो सामान्यावगाहि कल्पनारूप यानी अपने ज्ञानांश का ही विषयी होने से, वस्तुविषयक न होने से। मिथ्या विकल्प से गृहीत किया जाने वाला क्षणिकत्व वस्तुतः प्रमाणसिद्ध कभी नहीं हो सकता। [ अक्षणिक में अवस्तुत्वापत्ति का निरसन ] यह जो कहा है - अक्षणिक वस्तु में क्रमशः या एक साथ अर्थक्रिया का विरोध है। वह अयुक्त 30 है क्योंकि अक्षणिक पदार्थ सहकारि के संनिधान प्रभाव से क्रमशः अर्थक्रिया जरूर कर सकता है। यह जो कहा था – अक्षणिकपदार्थ में यदि द्वितीयक्षणवृत्ति कार्य करने का स्वभाव प्रथम क्षण में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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