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________________ २४० सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ कदाचिच्च ‘अनुभविष्यत्'पर्यायशब्देन यथा अतीतघृतसम्बन्धो घटो 'घृतघटः' इत्यभिधीयते भविष्यत्तत्सम्बन्धोऽपि तथैवाऽभिधानगोचरचारी। शुद्धतरपर्यायास्तिकेन च निराकारस्य ज्ञानस्यार्थग्राहकत्वाऽसम्भवात् साकारं ज्ञानमभ्युपगतम् तत्संवेदनमेव चार्थसंवेदनम् ज्ञानानुभवव्यतिरेकेणापरस्यार्थानुभवस्याभावात् घटोपयोग एव घटस्तन्मतेन। तत्पर्यायेण अतीतेन परिणतम् परिणंस्यद् वा द्रव्यं तच्छब्दवाच्यं द्रव्यार्थिकमतेन व्यवस्थितं 5 पूर्ववत् । अत एव घटाद्यर्थाभिज्ञः तत्र चानुपयुक्तो 'द्रव्यम्' इति प्रतिपादितः द्रव्यार्थिकनिक्षेपश्च । द्रव्यमागमे अनेकधा प्रतिपादितम् इह तु युक्तिसंस्पर्शमात्रमेव प्रदर्श्यते तदर्थत्वात् प्रयासस्य । [४ - भावनिक्षेपनिवेदनम् पर्यायार्थिकनयसमावेशश्च ] 'भवति' = विवक्षितवर्त्तमानसमयपर्यायरूपेण उत्पद्यते - इति 'भावः' 'विभाषा ग्रहः' (३-१-१४३ सिद्धान्त कौ० अं० २९०५) इत्यत्र सूत्रे कैश्चिद् ‘भवतेश्च' इति णोऽपीष्यते। अथवा भूतिः = भावः 10 अतीत पर्याय का अनुभव (धारण) जो पहले कर चुका है और भाविपर्याय का अनुभव जो करनेवाला है वह भी एक द्रव्य है। कभी कभी 'द्रव्य' का निर्देश भूतकालीन पर्याय से होता है जैसे घी खाली कर देने के बाद भी अतीत घृताश्रयतापर्याय को लेकर वह 'घृत-घट' कहा जाता है। कभी द्रव्य का निर्देश भावि पर्याय को लक्ष में ले कर किया जाता है, जैसे बजार से घी भरने की इच्छा से घडे को ले आये (अभी भरा नहीं है) उस में दो-तीन दिन के बाद घी भरा जायेगा, तब भावि 15 घृताश्रयतापर्याय को ले कर उसे 'घृत-घट' कहा जाता है। यह द्रव्यनिक्षेप विचारबाह्य घटादि वस्तु को ले कर हुआ। बाह्य की तरह एक अभ्यन्तर घट भी होता है जो अतिशुद्ध पर्यायास्तिकनयानुसार ज्ञानमय होता है और इसी ज्ञान संदर्भ में द्रव्यनिक्षेपवादी भी अन्य दो प्रकार द्रव्य का प्रदर्शित करेगा। पहले *अति शुद्धपर्यायवादी मतानुसार ज्ञानमय घट का स्वरूप ऐसा है - अर्थ (घटादि) नहीं किन्तु अर्थसंवेदन ही सत्य (घटादि) अर्थ है, संवेदन रूप ज्ञानानुभूति से पृथक् कोई अर्थानुभव नहीं होता। 20 यद्यपि ज्ञान निराकार भी कोई स्वीकारता है, किन्तु निराकार ज्ञान अर्थग्राहि नहीं हो सकता, अतः यहाँ साकारज्ञानमय घटादि अर्थ का स्वीकार किया गया है। यह तो पर्यायवादी का मत हुआ। 'द्रव्यनिक्षेपवादी कहता है कि वर्तमान में घटसंवेदनपर्याय नहीं है किन्तु भूतकाल में जिस देवदत्त ने घटसंवेदनपरिणाम संविदित किया है अथवा भविष्य में यदि (देवदत्त) संवेदनपरिणाम संविदित करनेवाला है वे दोनों ही द्रव्यशब्दवाच्य होने से द्रव्यार्थिक मत से 'द्रव्य' है। यही कारण है कि अनुयोगद्वार 25 [ सू०३३ ] आदि आगमशास्त्रों में घटादिअर्थज्ञाता किन्तु वर्तमान में घटसंवेदन से शून्य व्यक्ति को 'द्रव्य' कहा गया है, द्रव्यनिक्षेप में गिना गया है। आगमशास्त्रों में अनेक प्रकार 'द्रव्य' के दिखाये गये ह - यहाँ तो उस की उपपत्ति के लिये लेशमात्र युक्तियाँ ही दिखायी है क्योंकि निक्षेप व्याख्यान का यह प्रयास भी उसी के लिये है। [ पर्यायनयान्तर्गत भावनिक्षेपव्याख्या ] 30 मूल गाथा ६ के उत्तरार्ध में भावनिक्षेप सूचित किया गया है – यहाँ 'भाव' शब्द की व्युत्पत्ति व्याख्याकार प्रदर्शित करते हैं – विवक्षित (= कहने के लिये या स्वयंबोध के लिये अभिप्रेत) वर्तमानकालीन .. भूतस्य भाविनो वा भावस्य हि कारणं तु यल्लोके तद् द्रव्यम् । (अनु०द्वार-सू०१३-मलधारीटीकायाम्) *. आगमतो भावसुर्य जाणते उवउत्ते (अनु०द्वार-सू०४७) 7. अणुवओगो दव् - (अनु०द्वार सू०१४) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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