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________________ खण्ड-३, गाथा-६ २३९ इति विकल्प्य सर्वत्र दोषप्रतिपादनं कृतम् तत् क्षणिकत्वग्रहेऽपि समानम्। तथाहि- न क्षणिके ज्ञाने क्षणस्थिति-क्षणान्तरस्थित्योयुगपत् क्रमेण वा प्रतिभासे तयोर्भेदप्रतिपत्तिः परस्पराभावस्य भावग्राहिणि तत्राऽप्रतिभासनाद् भावाभावयोर्विरोधात्, तदप्रतिभासने च न तद्भेदप्रतिपत्तिः। नापि तयोरप्रतिभासने भेदावगतिः प्रतियोगिग्रहणसव्यपेक्षत्वाद् भेदप्रतिपत्तेः इति भवतैवाभिधानात्। अन्तर्बहिश्च स्थिर-स्थूराध्यक्षप्रतिभासबाधितत्वाच्च प्रकृतविकल्पानुत्थानमिति न प्रतिपदमेषां निराकरणे प्रयत्नः सफल: पिष्टपेषण- 5 रूपत्वात्। दिग्मात्रप्रदर्शनं तु विहितमेवेत्यलमतिविसारिण्या कथया। तत् क्षणक्षयप्रसाधने प्रत्यक्षादे: प्रमाणस्यानवताराद् बाधकत्वेन च तस्यैकत्वाध्यवसायिनः प्रवृत्तिप्रतिपादनात् न पर्यायास्तिकाभिमतपूर्वापरक्षणविविक्तमध्यक्षणमात्रं वस्तु किन्त्वतीतानागतपर्यायाधारमेकं द्रव्यवस्त्विति द्रव्यार्थिकनिक्षेपः सिद्धः । [ द्रव्यनिक्षेपस्य आगमोक्तस्वरूपम् ] द्रव्यं चानुभूतपर्यायम् अनुभविष्यत्पर्यायं चैकमेव तेन ‘अनुभूतपर्याय'शब्देन तत् कदाचिदभिधीयते 10 साथ (भावग्रहण के साथ) गृहीत हो जाती है या क्रमशः गृहीत होती है ? अथवा अक्षणिक ज्ञान से एक साथ या क्रमश: गृहीत होती है ? - इस प्रकार से विकल्पजाल को बुन कर सभी विकल्पों में दोषों का उद्भावन किया गया था वह सब वस्तु की अस्थायिता (= क्षणिकता) के पक्ष में तुल्य है। देखिये- क्षणिक ज्ञान में वस्तु की क्षणस्थिति और क्षणान्तरस्थिति का चाहे एक साथ प्रतिभास हो या क्रमशः, किन्तु भेदप्रतीति शक्य नहीं। (मतलब कि वस्तु में क्षणभेद से वस्तुभेद की प्रतीति 15 शक्य नहीं है।) कारण :- भावमात्रग्राहि प्रत्यक्ष में परस्परव्यावृत्ति का प्रतिभास हो नहीं सकता क्योंकि भाव और अभाव में अन्योन्य विरोध होता है। अतः किसी भी तरह से भेदप्रतिभासन होने पर भेद का स्थापन शक्य नहीं रहेगा। यदि प्रतिभास अभावग्राही मान लिया जाय तो भाव-अभाव में कोई विरोध न रहा, अतः क्षणस्थिति और क्षणान्तरस्थिति में भेदप्रतीति का सम्भव नहीं रहा। तथा, उन दोनों का जब तक प्रतिभास नहीं होगा तब तक तत्प्रतियोगिक भेद का बोध हो नहीं पायेगा, 20 क्योंकि आपने ही कहा है कि भेद का बोध प्रतियोगीसापेक्ष ही होता है। तथा, आपने जो युगपद् क्रमशः इत्यादि विकल्पों का उत्थान किया है वे सब निरर्थक हैं क्योंकि बाह्य या भीतर में स्थिर एवं स्थूल प्रत्यक्षप्रतिभास अनुभवसिद्ध होने से बाधग्रस्त हैं। अतः उन एक एक विकल्प को पकड कर उन के निरसन करने के लिये प्रयत्न करना व्यर्थ है क्योंकि वह पिष्टपेषण ही होगा, जो थोडा कुछ ऊपर कहा है वह तो दिशासूचन ही है, अति विस्तृत निरूपण बिनजरुरी है। 25 __ निष्कर्ष, क्षणभंगसिद्धि के लिये प्रत्यक्षादि एक भी प्रमाण उत्साहित नहीं है, तथा क्षणिकता में बाधक बन कर एकत्वग्राही अध्यवसाय की प्रवृत्ति होती है यह पहले कह आये हैं – इस से फलित होता है कि पर्यायास्तिकनयमान्य पूर्वापरक्षण से अस्पृष्ट मध्यवर्ती क्षणमात्र कोई वस्तु नहीं होती किन्तु भूत-भाविपर्यायों के आधारभूत एक द्रव्य ही सत्य वस्तु है - इस प्रकार द्रव्यार्थिकाश्रित निक्षेप सिद्ध है। पृ.१८३ पं. ८ से द्रव्यार्थिकनिक्षेपवादीने क्षणभंगवाद का निरसन प्रारंभ किया था वह पूरा हुआ। 30 [ द्रव्यार्थिक निक्षेपवादी के मत से द्रव्यस्वरूपवर्णन ] द्रव्यार्थिकनिक्षेपवादीने द्रव्य का समर्थन किया - अब वह द्रव्यस्वरूप दिखा रहे हैं - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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