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________________ २३८ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ न ह्यनध्यवसितमुत्पाद्यते, तथा चोत्पन्ने तदुत्पादकानां प्रतिपत्तिः, यदेवोत्पादयितुमध्यवसितं तदेवोत्पादितम् यदेव चोत्पादितं तदेवाध्यवसितमित्यभेदप्रतिपत्तिः सङ्गता भवति। न चास्या अनिमित्तता अनियतनिमित्तता वा, कादाचित्कतयाऽनिमित्तत्वस्याभावात् लिङ्गादिनिमित्ताभावतः पारिशेष्यादिन्द्रियलक्षणनियतनिमित्तत्वाच्च । न चैवम्भूतप्रतिपत्तेर्मिथ्यात्वेनोपलब्धेरियमपि मिथ्या, प्रत्यक्षस्यापि कस्यचिन्मिथ्यात्वोपलब्धेः सर्वस्य मिथ्यात्वप्रसक्तेः । न च तत्र बाधकाभावात् सत्यार्थतेति वक्तव्यम्, अत्रापि समानत्वात्, बाधरहिता हि सविकल्पा प्रतिपत्ति: प्रमा नान्येत्यभ्युपगमात् । न च मनसः सर्वत्रातीते अनागते वाऽव्याहतप्रसरत्वादुत्पाद्यमाने भावे तदध्यवसायस्य मनोजन्यत्वेनाध्यक्षता युक्ता चक्षुरादेस्त्वतीतानागतयोरविषयत्वेन तत्प्रतीतेः कथमध्यक्षतेति वक्तव्यम् उक्तोत्तरत्वात्। अतीतानागतविषयस्य मानसाध्यक्षत्वेऽपि वा क्षणप्रतिभासलक्षणस्य हेतोरसिद्धता भवत्येव अबाधितमानसाध्यक्षेण भावानामेकत्वग्रहणात। 10 यदपि 'किं क्षणिकेन ज्ञानेन स्थायिता युगपत् क्रमेण वा भावानां गृह्यते, आहोस्वित् अक्षणिकेन' नहीं हो सकता। अत एव कुछ पंडितों का कहना है कि जब वस्त्र उत्पन्न हो रहा है तब बुननेवाले को जो पूरे वस्त्र का ज्ञान होता है वह इन्द्रियजन्य होने से अनागत (वस्तु) का अध्यवसाय प्रत्यक्षरूप है। जो भी उत्पन्न किया जाता है वह पहले अध्यवसित (यानी मानसप्रत्यक्ष) रूप ही होता है, जब वह उत्पन्न हो जाता है तब कर्ता को यह प्रतीति होती है कि जो पहले मैंने निर्माणार्थ निश्चित 15 किया था वही मैंने उत्पन्न किया, जो मैंने उत्पन्न किया वही पहले मैंने निर्माणार्थ निश्चित किया था - इस प्रकार जो अभेद प्रतीति होती है वह एकत्व प्रत्यक्ष से संगत होती है। यह प्रतीति निर्निमित्त नहीं है क्योंकि कादाचित्क है, कादाचित्क चीज निर्निमित्त नहीं होती। अनियत (अनिश्चय) निमित्तमूलक भी नहीं है, क्योंकि लिङ्गादि निमित्त के बिना भी होती है अतः परिशेष से इन्द्रियरूप नियतनिमित्तमूलक सिद्ध होती है। शंका :- ऐसी ऐसी प्रतीतियाँ तो कभी जूठी 20 भी होती है, उन का भरोसा नहीं कर सकते यह भी जूठी हो सकती है। उत्तर :- अरे ! अन्य अन्य अनेक प्रत्यक्ष भी जूठा होता है तो क्या आप सभी प्रत्यक्ष को जूठा मानेंगे ? ऐसा कहने की जरूर नहीं कि वहाँ बाधक के न होने पर सत्यता हो सकती है - यहाँ भी वैसा कह सकते हैं – बाधमुक्त सविकल्प प्रतीति प्रमाणभूत और अन्य (बाधयुक्त) प्रतीति अप्रमाणभूत - ऐसा मानेंगे। आशंका :- उत्पत्ति-अधीन भाव के बारे में मनोजन्य जो अध्यवसाय है उस को प्रत्यक्ष मान सकते 25 हैं क्योंकि मन तो अतीत-अनागत (और वर्तमान) सर्व काल में अस्खलितगतिप्रसरवाला होता है - किन्तु चक्षु आदि बहिरिन्द्रिय अतीत-अनागत विषय में गतिशील नहीं है, तो फिर अनाग भाव के बारे में या अतीत विषय में चक्षुजन्य प्रतीति कैसे प्रत्यक्ष मानी जा सकती है ? - उत्तर :पहले इसका प्रत्युत्तर दे दिया है, मान लो कि अतीतानागतविषयता मानसाध्यक्ष तक ही सीमित है, फिर भी क्षणिकता साधक क्षणप्रतिभासरूप हेतु तो यहाँ असिद्ध बन गया क्योंकि अब अबाधित मानस 30 प्रत्यक्ष से ही (चाक्षुष प्रत्यक्ष से न सही) भावों के एकत्व का ग्रहण सिद्ध है। [ पर्यायाधारभूत द्रव्यवस्तुसिद्धि - द्रव्यार्थिक निक्षेप पूर्ण ] यह जो कहा है - ( ) ज्ञान तो क्षणिक होता है, क्षणिक ज्ञान से भावों की स्थायिता एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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