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________________ २३२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ सदावस्थितिरेव न भवेत्, क्षणावस्थितिनिबन्धनत्वात् क्षणान्तरादिस्थितेः। इन चोत्तरकालमभावमवगमयति अभावेन सह तस्याः प्रतिबन्धाभावात् न चाऽप्रतिबन्धविषयः शशविषाणादिवदनुमेयः। किञ्च, समानकालं वा सा साध्यं साधयेद भिन्नकालं वा ? यदि समानकालं सद्रूपं साध्यं साधयति तदा तत्समानकालभाविनः सत्तामात्रस्य सिद्धत्वात् सिद्धसाध्यता, अभावेन च प्रतिबन्धाभावाद् न ततस्तत्सिद्धिः। अथ भिन्नकालं साधयति, तत्रापि प्रतिबन्धाभावाद् न ततस्तत्सिद्धिः। न हि भिन्नकालेन विद्यमानेनाऽविद्यमानेन वा सत्तायाः कश्चिदविनाभावः, इति यत्राऽविनाभावस्तत्र विप्रतिपत्तिर्नास्ति यत्र च विप्रतिपत्तिस्तत्राविनाभावस्याभाव: इति न सत्तात: क्षणक्षयानुमानम् । ___ न च सत्त्वं वर्तमानकालभावित्वम् तच्च पूर्वापरकालसम्बन्धविकलतया क्षणिकत्वं तदात्मकतया भावानां प्रकटयति। यतो वर्त्तमानं क्षणिकमिति कुतोऽवगम्यते ? 'पूर्वापरयोस्तत्राऽदर्शनाद्' इति चेत् ? 10 न, दृश्यादर्शनस्यैवाभावव्यवहारसाधकत्वात् । अदर्शनमात्रस्य तु सत्यपि वस्तुनि सम्भवात् न तत्र प्रमाणता। न च सर्वं वस्तु सर्वदा दर्शनयोग्यम् चक्षुर्व्यापाराभावे वस्तुनोऽप्रतिभासनात् तदैव च चक्षुर्व्यापारात् सब कोई यह मानता है, नहीं मानेगा तो क्षणाधिक यानी सदा स्थैर्य ही नहीं बनेगा। क्षणाधिकस्थायित्व तो अवश्य क्षण-क्षणस्थितिमूलक ही होता है। क्षणभंगानुमान क्षणान्तर उत्तर काल में अभाव का बोध करावे - यह भी शक्य नहीं, क्योंकि अभाव के साथ सत्त्वस्वरूप अर्थक्रिया की अविनाभावसम्बन्धरूप 15 व्याप्ति नहीं है। जो प्रतिबन्ध यानी अविनाभाव का विषय (= आश्रय) नहीं है वह कभी अनुमानग्राह्य नहीं होता, उदा० शशसींग अनुमानग्राह्य नहीं होता। और एक बात :- वह अनुमानहेतुभूत अर्थक्रिया अपने समानकालीन साध्य को सिद्ध करेगी या bभिन्नकालीन ? यदि समानकालीन सत्स्वरूप साध्य सिद्ध करेगी तो हमारे लिये सिद्धसाधनता है क्योंकि अर्थक्रिया के साथ समानकालीन सत्ता रूप साध्य तो हमारे पक्ष में सिद्ध ही है। यदि क्षणानन्तर अभाव 20 रूप साध्य है तो उस के साथ व्याप्ति नहीं है, अतः क्षणक्षय की सिद्धि नहीं हो सकेगी। यदि भिन्नकालीन साध्य सिद्ध करना है तो वहाँ व्याप्ति के बिना साध्यसिद्धि अशक्य है। सत्ता को भिन्नकालीन विद्यमान या अविद्यमान साध्य के साथ किञ्चिद् भी अविनाभाव नहीं है। हाँ, जिस के साथ अविनाभाव है (सत्तामात्र के साथ) वहाँ कोई विवाद नहीं है, जहाँ (क्षणभंग के बारे मे) विवाद है वहाँ अविनाभाव नहीं है। सारांश, सत्ता हेतु से क्षणभंग का अनुमान नहीं हो सकता। [ प्रत्यक्ष/अनुमान से क्षणिकत्व की सिद्धि असंभव ] यदि कहा जाय – ‘सत्त्व की व्याख्या है वर्तमानकालभावित्व, इस ढंग का सत्त्व पूर्वापरकालसम्बद्ध न होने से, भाव वर्तमानकालीनरूप होने से, उन की क्षणिकता प्रकट करता है।' – यह ठीक नहीं है क्योंकि जो वर्तमान है वह क्षणिक ही होने का कैसे ज्ञान हुआ ? यदि पूर्वोत्तरकाल में नहीं दिखता इसलिये ? नहीं, क्योंकि दृश्यादर्शन (यानी योग्य की अनुपलब्धि) ही अभावव्यवहार का साधक 30 है। वस्तु सत् होने पर भी उस का अदर्शन हो सकता है लेकिन वह अदर्शन निषेध में प्रमाण नहीं है। नियम नहीं है कि सभी वस्तु सदा दर्शन के योग्य हो, वस्तु होने पर भी चक्षुक्रिया न होने पर वस्तु का अप्रतिभास हो सकता है। उसी काल में किसी अन्य व्यक्ति को चक्षुक्रिया से उस 25 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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