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खण्ड - ३,
गाथा - ६
२३१
चार्थक्रियाकाले हेतोरदर्शनाद् सतस्तस्य कथं सत्ताऽवगम्यते ? न च 'अर्थक्रियोदयात् प्राक् कारणमासीत्' इति व्यवस्थापयितुं शक्यम्, यतो यदि स्वरूपेण पूर्वं हेतुरवगतो भवेत् तदनन्तरं चार्थक्रियोपलम्भानुभवः स्यात् ततोऽर्थक्रिया अवगतप्रतिबन्धोपलभ्यमाना प्राग् हेतुसत्ताव्यवस्थापनपटीयसी भवेत् । न चार्थक्रियामन्तरेण हेतुः स्वरूपेण कदाचिदप्युपलब्धिगोचरः स्वरूपसत्त्वप्रसक्तेः ।
किञ्च यद्यर्थक्रिया हेतुसत्ताव्यवस्थापिका तस्या अप्यपरार्थक्रिया व्यवस्थापिकेत्यनिष्ठाप्रसक्तेः न 5 हेतुसत्ताव्यवस्थितिर्भवेत्। न चार्थक्रिया अनधिगतसत्त्वस्वरूपाऽपि हेतुसत्त्वव्यवस्थापिका, शशविषाणादेरपि तत्सत्त्वव्यवस्थापकत्वप्रसक्तेः । तथाहि - हेतुसद्भावादर्थक्रिया सती तत्सत्त्वाच्च हेतोः सत्त्वमिति परिस्फुटमितरेतराश्रयत्वमिति नार्थक्रियालक्षणं सत्त्वम् ।
भवतु वाऽर्थक्रियालक्षणं सत्त्वं तथापि नातः क्षणक्षयानुमानम् यतोऽसौ भावानां क्षणस्थायितां साधयति उत ॰क्षणादूर्ध्वमभावम् ? ^ प्रथमपक्षे सिद्धसाध्यता, नित्यस्यापि भावस्य क्षणावस्थानाभ्युपगमादन्यथा 10 सत्त्व के बिना भी हो जाने से उसे निर्हेतुक मानना पडेगा । यदि सत्त्वमूलक अर्थ क्रिया मानेंगे तो अर्थक्रिया के पहले उस के विरह में भी वस्तु का सत्त्व सिद्ध होने से स्वरूपतः सत्त्व ही प्राप्त हो गया। तदुपरांत, अर्थक्रियाकरण काल द्वितीयक्षण में हेतु ( = कारण ) भूत ( पूर्वक्षणवृत्ति) वस्तु का दर्शन नहीं होता अतः असत् कारण की सत्ता का बोध कैसे होगा ? 'अर्थक्रिया के उदय के पूर्वक्षण में कारण सत् था' ऐसी व्यवस्था ( = स्थापना) नहीं कर सकते, क्योंकि यदि पूर्वक्षण में हेतु का 15 स्वरूपतः बोध होता, उस के अनन्तर क्षण में अर्थक्रिया उदय का अनुभव ( उसी व्यक्ति को ) होता तब तो ठीक है कि ज्ञात अविनाभावविशिष्ट अर्थक्रिया उपलब्ध होने पर, पूर्वक्षण में हेतु की सत्ता की स्थापना करने के लिये सक्षम होती । किन्तु समस्या यही है कि अर्थक्रिया के बिना कभी भी स्वरूपतः सत् हेतु दृष्टिगोचर नहीं होता, होगा तो स्वरूपतः सत्त्व प्रसक्त होगा ।
तथा,
उपरांत, यदि हेतु की सत्ता की व्यवस्था अर्थक्रिया करेगी तो उस की खुद की व्यवस्था किस 20 से होगी ? (यदि हेतु सत्ता से तो अन्योन्याश्रय दोष और ) अन्य अर्थक्रिया से होगी तो उस के लिये भी अन्य अर्थक्रिया.... इस तरह अनवस्था दोष होगा, अतः हेतुसत्ता की व्यवस्था नहीं हो पायेगी । जिस का सत्त्वस्वरूप अज्ञात है ऐसी अर्थक्रिया भी यदि हेतुसत्ता की व्यवस्था कर पायेगी तो वैसे शशसींग आदि भी हेतु आदि की सत्ता के व्यवस्थापक हो जाने का अतिप्रसंग होगा। ऐसा नहीं कहना कि हेतुजन्य होने से अर्थक्रिया सत् होती है न कि अन्य अर्थक्रिया के उदय से । ऐसा 25 कहेंगे तो अन्योन्याश्रय दोष होगा। देखिये के सत्त्व से हेतु की सत्ता सिद्ध होगी स्वरूप नहीं हो सकता यह सिद्ध हुआ ।
हेतु के सत्त्व से अर्थक्रिया का सत्त्व होगा, और अर्थक्रिया तो स्पष्ट ही अन्योन्याश्रय दोष होने से, सत्त्व अर्थक्रिया
[ अर्थक्रियास्वरूप सत्त्व से क्षणिकतानुमान अशक्य ] अथवा सत्त्व अर्थक्रियास्वरूप हो जाय, फिर है । कारण :- वह अनुमान क्या सिद्ध करेगा ?
पक्ष में सिद्धसाधनता दोष होगा, क्योंकि जो नित्य होता है वह क्षणस्थायी तो अवश्य होता है
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भी उस से क्षणभंग का अनुमान करना शक्य नहीं 30 क्षणस्थायिता या "क्षण के बाद अभाव ? प्रथम
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