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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १ 5 किञ्च, न तावत् सतः सत्तासम्बन्धात् सत्त्वम्, सत्तासम्बन्धात् प्रागेव पदार्थस्य सत्त्वप्रसक्तेः प्राक् सत्ताभ्युपगमे च सत्तासम्बन्धवैयर्थ्यम् । नाप्यसतः तत्सम्बन्धात् सत्त्वम् शशशृंगादेरपि सत्त्वप्रसक्तेः । न च खरविषाणादेः स्वरूपविरहात् न सत्तासम्बन्धः, इतरेतराश्रयप्रसक्ते:- शशशृंगादे: स्वरूपविरहात् सत्तासम्बन्धाभावसिद्धिः तत्सिद्धौ च स्वरूपविरहसिद्धिरितीतरेतराश्रयत्वम् । यदि च शशशृंगादेः स्वरूपविरहाद् न सत्तासम्बन्धः तर्हि यत्र गोशृंगादी स्वरूपसद्भावः तत्र सत्तासम्बन्धः इति स्वरूपसत्त्वमायातम्। तथा सत्तापि यदि न स्वरूपेण सती तदाऽपरसत्तासम्बन्धात् सा सती स्यात् सापि सत्तान्यसम्बन्धात् सत्यभ्युपेयेत्यनवस्थाप्रसक्तिः । अथ सा न सती न तर्हि तत्सम्बन्धो भावसत्त्वव्यवस्थापकः । न च गगनारविन्दस्य सम्बन्धाभावाद् न तद्योगः कस्यचित् सत्त्वं व्यवस्थापयति, सत्तायास्तु सम्बन्धसद्भावात् तद्योगात् पदार्थसत्त्वम् इति वक्तव्यम्, यतः सम्बन्धोऽपि विद्यमानस्य भवेत् ? अविद्यमानस्य वा ? 10 यदि विद्यमानस्य न किञ्चित् सम्बन्धकल्पनया, तद ( ? म ) न्तरेणापि विद्यमानत्वात् । अथाविद्यमानस्य, २२० के उल्लेख करनेवाले अध्यवसाय से अधिक किसी सत्तास्वरूप का प्रकाशन नहीं होता। अतः कल्पनाबुद्धि से भी सत्ता सिद्ध नहीं हो सकती, फिर उसे वास्तव कैसे कहा जाय ? [ सत्ता का योग विवादास्पद पूर्वपक्ष चालु ] यह भी समझ क्या सत्ता के सम्बन्ध से सत् का सत्त्व होता है ? नहीं, क्योंकि सत्ता 15 के सम्बन्ध के पहले ही ( सत् होने से ) पदार्थ का सत्त्व प्रसक्त है, तब पहले ही सत्ता स्वीकृत है। पदार्थ सत् नहीं है, सत्तासम्बन्ध ऐसा मत कहना कि शशशृंगादि ऐसा कहने पर तो अन्योन्याश्रय पर सत्ता सम्बन्धाभाव की सिद्धि फिर सत्तासम्बन्ध निरर्थक हो गया। यदि सत्ता सम्बन्ध के पहले से सत्त्व होता है, तब तो शशशृंगादि में भी सत्त्व प्रसक्त होगा। स्वरूपविहीन होने से उस में सत्तासम्बन्धप्रयुक्त सत्त्व संभव नहीं दोष प्राप्त होगा । देखिये- शशसींग के स्वरूपविरह की सिद्धि होने 20 होगी, और उस की सिद्धि होने पर स्वरूपविरह की सिद्धि होगी- इस प्रकार अन्योन्याश्रय दोष होगा। यदि कहें कि शशसींग का स्वरूप विरह तो प्रसिद्ध ही है, उस सत्तासम्बन्धाभाव निर्बाध सिद्ध हो जायेगा तो जिस गोशृंग आदि में स्वरूपसद्भाव होगा उसी में सत्तासम्बन्ध मानना होगा, फलतः गोशृंग आदि में स्वरूपतः सत्त्व ही प्रसक्त हुआ ( न कि सत्तासम्बन्धमूलक सत्त्व) । इसी तरह, सत्ता भी यदि स्वरूप से सत् नहीं है तो अन्यसत्ता के सम्बन्ध से ही वह सत् बन सकेगी, वह अन्यसत्ता 25 भी अपर सत्ता सम्बन्ध से... इस तरह अनवस्था दोष प्रसक्त होगा । यदि सत्ता सम्बन्ध से भी वह सत् नहीं है, तो सत्तासम्बन्ध भावतः सत्त्व - स्थापक नहीं हो सकता। जैसे, आकाशकमल का सम्बन्ध किसी वस्तु के सत्त्व का स्थापक नहीं हो सकता । शंका :आकाशकमल का कोई सम्बन्ध ही नहीं होता ( क्योंकि वह खुद ही असत् है) अतः उस का योग किसी के सत्त्व का स्थापक नहीं बन सकता। सत्ता की बात अलग है, सत्ता का सम्बन्ध 30 वास्तव होने से, उस के योग से पदार्थ का सत्त्व हो सकता है। - Jain Educationa International उत्तर :- ऐसा कथन अयुक्त है। कारण :- सम्बन्ध किस का ? विद्यमान का या अविद्यमान का ? यदि विद्यमान का, तो सम्बन्ध कल्पना की जरूर ही नहीं है, क्योंकि उस के बिना भी पहले — For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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