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खण्ड-३, गाथा-६
२२१ गगनारविन्दस्यापि स्यात् - इति न सत्तासम्बन्धः सत्त्वम् ।
नापि स्वरूपतः सत्त्वम् स्वप्नावस्थावगतेऽपि पदार्थात्मनि स्वरूपसद्भावात् सत्त्वप्रसक्तेः। यदि हि परिस्फुटसंवेदनावभासनं स्वरूपमुच्यते तत् स्वप्नदशायामपि पदार्थात्मनो विद्यते इति कथं न तत्सत्त्वप्रसक्तिः ? तत् पारिशेष्याद् अर्थक्रियायोगः सत्त्वम्, स च क्रम-योगपद्याभ्यां व्याप्तः, ते च न नित्ये सम्भवतः। यतो न क्रमवती अर्थक्रिया नित्ये सम्भविनी, तस्य स्वरूपमात्रेण कार्यकरणसामर्थ्य तदैव सकलकार्योत्पत्तिप्रसक्ति: 5 कालविलम्बाऽयोगात् । न हि पदार्थस्वरूपनिबन्धनं कार्यं तत्स्वरूपस्य प्रागपि संनिधाने क्रमोत्पत्तिकं युक्तम् । न च नित्यस्याऽविचलितरूपस्य सहकारिसव्यपेक्षस्य स्वकार्यकरणात् सहकारिक्रमात् कार्यक्रमः, नित्यस्य सहकार्यपेक्षाऽयोगात् । न हि स्थायिनो निरतिशयं स्वरूपं बिभ्राणस्य सहकारिणा क्रमवता कश्चिदव्यतिरिक्त उपकारः कर्तुं शक्यः । नापि व्यतिरिक्तोपकारजननात् तस्य सहकारीणि किञ्चित्कराणि भवन्ति, अतिप्रसंगात् । न चाऽकिञ्चित्कराण्यपेक्षन्ते इति युगपत् सकलकार्योदयप्रसक्तिः। न च योगपद्येनाप्यर्थक्रिया नित्यात् 10 से वह विद्यमान है। यदि अविद्यमान का - तो आकाशपुष्प का भी सम्बन्धप्रयुक्त सत्त्व क्यों नहीं होगा ? वस्तुतः सत्त्व सत्तासम्बन्ध स्वरूप नहीं है यह फलित होता है।
[नित्यपदार्थ में स्वरूप सत्त्व अघटमान- पूर्वपक्ष ] सत्तासम्बन्ध से सत्त्व का जैसे मेल नहीं बैठता, वैसे स्वरूपतः सत्त्व भी संगत नहीं होता क्योंकि स्वप्नदशा में दृष्ट पदार्थात्मा में भी स्वरूप होने से उस में सत्त्व प्रसक्त होगा। स्वरूप किस को 15 कहते हैं – स्पष्ट संवेदन के अवभास को, तो स्वप्न दशा में पदार्थात्मा के स्पष्ट संवेदन का अवभास होता ही है, तो उस में सत्त्व प्रसक्ति क्यों नहीं होगी।
जब सत्तासम्बन्ध और स्वरूप से सत्ता का मेल नहीं बैठता तो आखिर परिशेषन्याय से अर्थक्रियायोग को ही सत्त्व मान लेना अनिवार्य है। वह अर्थक्रियायोग क्रम या यौगपद्य (अन्यतर) का व्याप्य है। नित्य पदार्थ में वे संभव नहीं है क्योंकि वह न तो क्रमिक, न युगपद् अर्थक्रिया कर सकता है। 20 नित्य पदार्थ क्रमिक अर्थक्रिया कर नहीं सकता क्योंकि अपने स्वरूप मात्र से वह कार्य-करण समर्थ होगा तो पहले क्षण में ही सकल भाविकार्यों का सर्जन कर देगा, कालविलम्ब क्यों करेगा ? सिर्फ पदार्थस्वरूपमूलक ही कार्य-सर्जन है तो वह स्वरूप प्रथम क्षण में भी संनिहित होने से क्रमोत्पत्ति युक्तियुक्त नहीं है।
शंका :- नित्य पदार्थ अचल एकरूप ही होता है किन्तु सहकारियों से मिल कर अपना कार्य 25 करता ही होगा। उत्तर :- नित्य पदार्थ के साथ सहकारि-अपेक्षा घट नहीं सकती। निरतिशय स्थायि स्वरूप धारण करनेवाले नित्य पदार्थ पर क्रमिक सहकारी पृथक् उपकार करेगा या अपृथग् ? अपृथग् तो संभव नहीं क्योंकि तब नित्यत्व भंग होगा। पृथक् उपकार से नित्य पदार्थ का कोई रिश्ता न होने के कारण उस के लिये सहकारीवृंद अकिंचित्कर ही रहेगा, अन्यथा वह पृथग् उपकार वस्तुमात्र प्रति साधारण हो जाने से सभी का सहकारी बन जायेगा। यदि अकिंचित्कर होने पर भी सहकारी 30 वृंद अपेक्षित माना जायेगा तो पूर्वोक्त एक साथ सकल कार्योत्पत्ति की आपत्ति नहीं टलेगी। दूसरी और, एक साथ अर्थक्रिया-करण भी नित्य पदार्थ के लिये असम्भव है, क्योंकि प्रथम क्षण में सब
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