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________________ २०८ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ कुतोऽस्याऽप्रामाण्यप्रसक्तिः ? . न च संनिहितविषयबलोत्पत्त्याऽविचारकत्वादध्यक्षेण पूर्वकालसम्बन्धित्वं परामर्दुमशक्यम्, यतो यद्यप्यतीतकालत्वमसंनिहितं तथापि संनिहितविषयबलादुपजायमानमध्यक्षं वर्तमानवस्तुनस्तनिश्चिनोत्येवा यथा अन्त्यसंख्येयग्रहणकाले 'शतम्' इति प्रतीतिः क्रमगृहीतानपि संख्येयान् । न चैषाऽनिन्द्रियजा इन्द्रियान्वय5 व्यतिरेकानुविधानात्। नाप्यनर्थजा संनिहितान्त्यसंख्येयजन्यत्वात्। न चैकावभासिनी, एकप्रतिपत्तिसमये 'शतम्' इत्यप्रतिपत्तेः, अन्यथा प्रथमव्यक्तिप्रतिभाससमय एवैषा भवेत् । न चाऽप्रमाणमेषा बाधकाभावात् । घटाध्यक्षेण तुल्यत्वाद् नास्या विकल्पमात्रता। तस्मात् यथा अन्त्यसंख्येयप्रतिपत्तिसमये प्रागवगततदा(?या) परिच्छिद्यमानार्थोपयोगः तद्विशिष्टप्रतिपत्तौ, तथा प्रत्यभिज्ञावसेयवस्तुपरिच्छेदसमये पूर्वकालभाविताया अपि । न च विशिष्टप्रतिपत्तिकाले संख्येयानां विद्यमानता, पूर्वकालतायास्तु तद्वैपरीत्यमिति न तत्रोपयोगः । यतो 10 अयथार्थग्राहि होने से उस को अप्रमाण मानना ठीक है, किन्तु जब ऐसा है ही नहीं तब नित्यता (पूर्वकालीनतादि) ग्राहक प्रत्यक्ष में अप्रमाणता की आपत्ति कैसे दी जा सकती है ? [प्रत्यक्ष से पूर्वकालपरामर्श की अशक्यता का निरसन ] शंका :- प्रत्यक्ष निकटवर्ती विषय बल से उत्पन्न होता है, वहाँ विचार सावकाश नहीं है अतः उस से पूर्वकालसंसर्गिता का परामर्श भी अशक्य है। 15 उत्तर :- यह शंका उचित नहीं, क्योंकि यद्यपि अतीतकालता संनिहित नहीं है, फिर भी संनिहितविषयसम्पर्क से उत्पन्न होने वाले प्रत्यक्ष से वर्तमानवस्तु में अतीतकालसंसर्गिता का (मौजूद होने से) निश्चय अवश्य हो सकता है - यह तथ्य उदाहरण से स्पष्ट होगा - एक, दो, तीन... ९९, १०० इस तरह जो संख्येय मोती आदि की गिनती होती है तब प्रथम-द्वितीयादि का भी ग्रहण अन्तिम संख्येय के ग्रहण के साथ होता है जो कि पहले क्रमशः गृहीत हुए थे। ऐसा नहीं कि यह 20 ज्ञान इन्द्रियजन्य नहीं है, इन्द्रिय के अन्वय-व्यतिरेक का अनुसरण होने से तज्जन्य ही है। अर्थजन्य नहीं ऐसा भी नहीं कहना, क्योंकि, संनिहित अन्तिम संख्येय (मोती आदि) से जन्य है। शंका :एक मात्र (अन्तिम) संख्येय अर्थ का ही उस में भान होगा, पूर्व-पूर्व का नहीं। उत्तर :- नहीं, एक का भान होने पर 'सो' ऐसा संख्याबोध नहीं हो सकता, यदि एक के भान से 'सो' ऐसा संख्याबोध मानेंगे तो प्रथम व्यक्ति से भी वह हो जाने की आपत्ति होगी। यह प्रतीति अप्रमाण नहीं है क्योंकि 25 कोई बाधक नहीं है। इसको सिर्फ विकल्परूप (यानी अप्रमाण) नहीं कह देना, क्योंकि यह प्रतीति घटादिप्रत्यक्ष जैसी ही होती है। ___ अतः यह फलित होता है कि जैसे पूर्वसंख्येय विशिष्टप्रतीति में अन्तिमसंख्येय के बोधकाल में ज्ञायमान अर्थ में पूर्वसंख्येय का भी उपयोग (= भान) होता है इसी तरह प्रत्यभिज्ञा से गृह्यमाण वस्तु के बोधकाल में पूर्वकालभाविता का निर्बाध बोध होता है। शंका :- विशिष्ट बोधकाल में संख्येयों 30 की तो सत्ता होती है किन्तु पूर्वकालता (जो पूर्वकालगर्भित होने से) वर्तमान में विद्यमान नहीं है अतः तद्विषय उपयोग (= भान) संभव नहीं। उत्तर :- ऐसा नहीं होता, क्योंकि ज्ञायमान पदार्थों में तत्कालविद्यमानता का कोई महत्त्व नहीं होता, अतः जैसे चरमसंख्येयबोधकाल में पूर्वज्ञात संख्येयों का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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