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________________ खण्ड-३, गाथा-६ २०५ 15 सत्तातः शुक्लतानुमितिप्रसक्तेः। अथ हेमाकारनिर्भासिदर्शनं शुक्लताप्रसाधकमनुमानमुपहन्तीति न तत्र शुक्लतासिद्धिः। नन्वेवं स्तम्भादौ क्षणिकतामुल्लिखन्तीमनुमिति ‘स एवायम्' इत्यभेदप्रतिभासोऽपहन्तीति कुतः क्षणिकतासिद्धिः ? अथ प्रत्यभिज्ञा भिन्नेष्वप्यभेदमुल्लिखन्ती दलितपुनरुदितकररुहादिषूपलभ्यत इति नासावेकत्वे प्रमाणम् तर्हि कामलोपहतदृशां धवलिमानमाबिभ्राणेषु पदार्थेषु कनकाकारनिर्भासिदर्शनमुदेतीति तत् पीतेऽपि न प्रमाणतामासादयेत् तथा च शुक्लतानुमानस्यापि कुतो बाधाप्रसक्तिः ? 5 अथ शुक्लताप्रसाधकस्यानुमानस्यान्यथासिद्धत्वात् युक्तं प्रत्यक्षबाध्यत्वम्, तस्याऽनन्यथासिद्धत्वात् । न ह्यनुपहतेन्द्रियस्य पीतावभासि दर्शनं पीतार्थव्यतिरेकेण सम्भवति कनकादौ तु शुक्लताप्रसाधकमनुमानमन्थासिद्धत्वाद् अध्यक्षविरोधे न तद्विपरीतार्थसाधकं युक्तम् । स्तम्भादौ तु नित्यतावेदकस्याध्यक्षस्य कतश्चिद भ्रान्तिकारणादन्यथासिद्धत्वेनाऽनन्यथासिद्धानमानबाधकत्वमयक्तम। तथाहि- सति प्रतिबन्धग्रहणेऽनुमितिप्रवृत्तिः, प्रतिबन्धग्रहणं च साध्यव्यतिरेकेण साधनस्याऽभवनज्ञानम्, तदेव चाऽनन्यथासिद्धत्वं 10 शब्दादि में उपलंभगोचर सत्तारूप हेतु से क्षणिकत्व का अवबोध हो सकता है।' – अरे तब तो कर्पास या दुग्धादि में सत्ता और शुक्लवर्ण का प्रत्यक्ष से प्रतिबन्धग्रहण कर के सुवर्ण में भी सत्ता हेतु के द्वारा शुक्लता का व्यवहार या अनुमिति प्रसक्त होगी। शंका :- सुवर्णाकार अवभासकारी दर्शन शुक्लवर्णसाधक अनुमान का उपघातक होने से सुवर्ण में शुक्लतासिद्धि नहीं होगी। उत्तर :- वाह ! इसी तरह स्तम्भादि में अभेदावभासी प्रत्यक्ष भी क्षणिकता उल्लेखकारि अनुमिति का उपघातक होने से क्षणिकतासिद्धि कैसे होगी ? शंका :- भिन्न भावों में भी अभेद का उल्लेख करनेवाली, यानी काटे गये पुनरुत्पन्ननखादि में अभेदप्रदर्शक प्रत्यभिज्ञा प्रसिद्ध है अतः वह एकत्वविषय में प्रमाण नहीं है। उत्तर :- तब तो फिर पीतग्राहि दर्शनमात्र को अप्रमाण मानना पडेगा क्योंकि काचकामल बिमारीग्रस्त 20 नेत्रवालों को श्वेतताधारक शंखादि में पदार्थों में कनक (यानी पीत) आकार प्रदर्शक दर्शन उदित होता है। फिर उस से पीत पदार्थ में शुक्लता का अनुमान कैसे बाधित हो सकेगा ? [ क्षणिकवादसमर्थक दीर्घ पूर्वपक्ष ] क्षणिकतावादी :- पीत पदार्थ में शुक्लता का साधक अनुमान अन्यथासिद्ध है, मतलब कि शुक्लतारूप साध्य के बिना ही उदित हो गया है, दूसरी ओर पीतभाव का प्रत्यक्ष अन्यथासिद्ध नहीं है क्यों 25 कि पीतभाव के बिना उदित हो गया ऐसा नहीं है। अतः वह प्रत्यक्ष शुक्लतासाधक अनुमान को बाधित कर सकता है। व्याघातरहित इन्द्रिय से होनेवाला पीतभावदर्शन पीत अर्थ के बिना शक्य नहीं है। दूसरी ओर, सुवर्णादि में शुक्लतासाधक अनुमान शुक्लता के बिना भी होने से वह अन्यथासिद्ध है, उस का यद्यपि पीतग्राही प्रत्यक्ष से विरोध जरूर है किन्तु स्वयं बाधित होने से पीतविपरीत (शुक्लता) अर्थ का साधक नहीं हो सकता। (क्षणिकवादीकथन चालु है।) 30 स्तम्भादि की बात अलग है। वहाँ जो नित्यताआवेदक प्रत्यक्ष होता है वह किसी प्रकार से भ्रान्तिकारक दोष से जन्य होने से वहाँ वास्तव नित्यता के न होने पर भी उदित होता हैं अत एव यहाँ वह प्रत्यक्ष ही अन्यथासिद्ध है। अतः अनन्यथासिद्ध क्षणिकतासाधक अनुमान का वह बाधक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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