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________________ २०४ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ अथ कथं प्रत्यभिज्ञा प्रामाण्यमनुभवति ? कारणदोषाभावात् बाधारहितापूर्वार्थग्राहित्वाच्च। तदुक्तम् - (प्र०वा.भाष्य २-१५८)। तत्राऽपूर्वार्थविज्ञानं निश्चितं बाधवर्जितम्। अदुष्टकारणारब्धं प्रमाणं लोकसंमतम् ।। इति । प्रथमदर्शनानधिगतां स्थायितां प्रत्यभिज्ञानमध्यवस्यति विश्वासादिव्यवहारप्रवर्तिका चेति कथं न 5 प्रमाणम् ? न चाद्यदर्शनमेव स्थायिताध्यवसायात् उत्तरकालभाविनो नित्यताग्राहितया व्यवस्थाप्यत इति आद्यदर्शनगृहीतां नित्यतामध्यवस्यत् प्रत्यभिज्ञाज्ञानमपूर्वार्थाधिगन्तृत्वाभावान्न प्रमाणम् । यत एवमाद्यदर्शनावसेयमेव नित्यत्वमिति कथं क्षणक्षयिता भावानाम् ? न चाध्यक्षानवतारे प्रतिक्षणध्वंसितायामनुमानमपि प्रवृत्तिमासादयतीत्युक्तम्। किञ्च, स्वभावलिङ्गप्रभवमनुमानं क्षणक्षयितां भावानामवगमयति इति पराभ्युपगमः । न चाध्यक्षगृहीतं 10 प्रतिक्षणध्वंसित्वम् येन स्वभावहेतुस्तत्र व्यवहतिमुपरचयति यथा शिंशपा विशददर्शनावभासिनि तरौ वृक्षत्वव्यवहतिम् प्रत्यक्षप्रतीत एवार्थे स्वभावहेतोर्व्यवहृतिप्रदर्शनफलत्वात्। न च विद्युदादौ सत्ताक्षणिकत्वयोरध्यक्षत एव प्रतिबन्धग्रहणात् अन्यत्रापि शब्दादौ सत्तोपलभ्यमाना क्षणिकत्वमवगमयति, जातरूपे [प्रत्यभिज्ञा के प्रामाण्य की शंका का समाधान ] प्रश्न :- प्रत्यभिज्ञा प्रामाण्य-धारण कैसे कर सकती है ? उत्तर :- उस के कारणवृंद निर्दोष है, बाधमुक्त है तथा अपूर्वार्थग्राहक होती है इस लिये वह प्रमाणभूत है। आप के प्रमाणवार्त्तिक भाष्य में कहा गया है - 'निर्दोषकारणजन्य बाधमुक्त अपूर्वअर्थस्पर्शी निश्चयात्मक विज्ञान प्रमाण है जो लोकसंमत भी है।' - प्रत्यभिज्ञा पूर्वदर्शन से अज्ञात स्थायित्व का बोध करती हुई विश्वाससम्पादन आदि कार्य व्यवहार प्रवर्तिका होने से प्रमाण क्यों नहीं है ? शंका :- अगर ऐसा माने कि पूर्वदर्शन से ही स्थायित्व गृहीत हो जाता है, उत्तर काल स्थायित्वग्राही 20 प्रत्यभिज्ञारूप निश्चय तो पूर्वदर्शन को 'नित्यत्वग्राही' रूप से घोषित करता है। यहाँ पूर्वदर्शनगृहीत नित्यता का पुनर्ग्रहण करने वाली प्रत्यभिज्ञा प्रमाण नहीं हो सकती क्योंकि उस में अपूर्वार्थग्राहकत्व नहीं है। समाधान :- ऐसा मानेंगे तो आद्यदर्शन से ही नित्यता की सिद्धि हो गयी, तब भावों की क्षणभंगुरता कहाँ रह पायेगी ? जब दर्शनरूप प्रत्यक्ष नित्यताग्राही बन गया, प्रतिक्षणध्वंसावगाही न रहा, तो प्रत्यक्षमुखदर्शी अनुमान भी क्षणिकताग्रहण का साहस कैसे कर पायेगा ? कई बार यह कह दिया 25 है कि अनुमान क्षणिकता साधक नहीं हो सकता। [स्वभावलिंगक अनुमान से क्षणिकतासिद्धि अशक्य 1 और एक बात :- बौद्ध विद्वान् तो मानते हैं कि स्वभावलिंगक अनुमान भावों की क्षणिकता का बोधन करता है। अब देखो कि प्रतिक्षण ध्वंस प्रत्यक्षसिद्ध है नहीं, जिस से कि स्वभावहेतु क्षणिकता के विषय में व्यवहारकारक बन सके। उदा० स्पष्टदर्शनअवभासित वृक्ष (यानी प्रत्यक्षगृहीत वृक्ष) में 30 स्वभावहेतुस्वरूपा शिंशपा से वृक्षत्व का व्यवहार सिद्ध किया जाता है, मतलब प्रत्यक्षदृष्ट अर्थ के लिये ही स्वभा बहेतु व्यवहार सम्पादन में सफल होता है। (यहाँ क्षणिकता का प्रत्यक्ष ग्रहण है नहीं तो कैसे उस का स्वभावहेतु से (सत्त्व से) व्यवहार सिद्ध करेंगे ? यदि कहें कि - ‘बिजली आदि में सत्ता और क्षणिकत्व का प्रतिबन्ध (= अविनाभावसम्बन्ध) प्रत्यक्ष से गृहीत होता है अतः अन्यत्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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