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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १ २०२ न च क्षणक्षयव्यवस्थापकमनुमानमेकत्वाध्यवसायिदर्शनस्य बाधकम् अनुमितेरध्यक्षबाधकत्वेनाऽप्रवृत्तेः तस्यास्तत्पूर्वकत्वात्। यतोऽध्यक्षावगतं प्रतिबन्धमाश्रित्य पक्षधर्मतादर्शनबलादनुमितिरुदयति, अनुमानादविनाभावावगमेऽनवस्थाप्रसक्तेः । न च स्थायितादर्शनमनुमानेन बाधितत्वाद् नाध्यक्षतामनुभवतीति वाच्यम्, क्षणक्षयानुमानमध्यक्षेण बाधनाद (ना) नुमानं भवतीत्यपि पर्यनुयोगस्य तुल्यत्वात् । अतः स्थायितादर्शनं 5 क्षणक्षयग्राहिणा परेणाध्यक्षेण बाधकेना (न)ध्यक्षीकर्त्तव्यम् क्षणक्षयनिर्भासविरहेण तस्य (?) अन्यथा तेन सह विरोधाऽसिद्धेः । ततः प्रतिक्षणभेदावभास्येवाध्यक्षं नित्यताध्यवसायिदर्शनस्य बाधकं नान्यत् । न च प्रतिक्षणविशरारुतावभास्यध्यक्षमनुभूयते, स्थिर-स्थूरार्थावभासिनोऽध्यक्षप्रभवस्य संवेदनस्य सर्वदोपलक्षणत्वा(णा)त्। अथ प्रत्यक्षेऽपि बाधकेऽभ्युपगमाने द्वयोरपि दर्शनयोः परस्परप्रतिहतिद्वारेणाऽनध्यक्षता कस्माद् न भवति येनैकमेवानध्यक्षीभवति । नैतदेवम्, अतुल्यत्वात् । दुर्बलं हि बलवता प्रतिहन्यते रजतदर्शनमिव 10 शुक्तिकादर्शनेन बलवता रजतदर्शनमया ( यथा ) र्थक्रियाकारिरूपावभासि दुर्बलमनध्यक्षीक्रियते । 15 न होने पर एकत्वदर्शन में विपरीतता के बल से कोई निश्चय सिद्ध नहीं हो सकेगा । ( भूतपूर्व सम्पादकों के अभिप्राय से 'वितथत्वात् सिद्ध:' यहाँ तक पाठ अशुद्ध है ।) [ अनुमान में प्रत्यक्षबाधकता का निरसन ] क्षणिकवादी :- एकत्व ग्राहक दर्शन में बाधक है क्षणिकतासाधक अनुमान । स्थायितावादी :- नहीं, प्रत्यक्षबाध के लिये अनुमानप्रवृत्ति संभव नहीं । कारण : अनुमान प्रत्यक्षोपजीवी यानी प्रत्यक्षपूर्वक होता है, क्योंकि प्रत्यक्षगृहीत व्याप्तिसंबन्ध एवं पक्षधर्मतादर्शन के बलबूते पर अनुमान प्रवृत्त होता है, यदि व्याप्तिबोध प्रत्यक्ष के बदले अनुमान से मानेंगे तो उस अनुमान के लिये आवश्यक व्याप्तिबोध तीसरे अनुमान से... इस प्रकार अनवस्थादोष होगा । यदि कहें कि 'स्थायित्व का प्रत्यक्ष क्षणिकत्व अनुमान से बाधित होने के कारण वास्तवप्रत्यक्षता वहाँ नहीं है । ' तो समानरूप से हम कहेंगे 20 कि क्षणिकत्वानुमान स्थायित्वप्रत्यक्ष से बाधित होने से वास्तवानुमानता उस में नहीं है, प्रश्न-उत्तर तो दोनों ओर हो सकते हैं । हाँ अगर स्थायित्वप्रत्यक्ष को प्रत्यक्षाभास ठहराना है तो क्षणिकताग्राहि प्रत्यक्ष ही बाध कार्य कर सकता है। अन्यथा जब तक क्षणिकत्वनिर्भासि प्रत्यक्ष नहीं होगा तब तक व्याप्तिबोध के विरह में क्षणिकत्वानुमान भी न होने से स्थायित्वप्रत्यक्ष के साथ उस का विरोध सिद्ध नहीं होगा । सारांश, प्रतिक्षणभिन्नतावबोधक प्रत्यक्ष ही नित्यता ( = स्थायित्व ) बोधक प्रत्यक्ष का बाधक हो सकता है, 25 अन्य कोई नहीं । प्रतिक्षण भंगुरता बोधक प्रत्यक्ष अनुभव सिद्ध नहीं है । हर हमेश, स्थिर एवं स्थूल (न कि परमाणुस्वलक्षणरूप ) अर्थ भासक ही प्रत्यक्षजन्य संवेदन उपलक्षित होता है । शंका :- प्रत्यक्ष को बाधक मानने पर भी उगारा नहीं है क्योंकि विनिगमनाविरह से, दोनों प्रत्यक्ष एक-दूसरे का बाधक बन कर एक-दूसरे को प्रत्यक्षाभास सिद्ध क्यों नहीं करेगा ? तब किसी एक को ही प्रत्यक्षाभास कैसे कह सकेंगे ? ( आखिर तो अनुमान को ही बाधक मानना पडेगा यह तात्पर्य ।) 30 समाधान :- ऐसा नहीं होगा क्योंकि दोनों परस्परविरुद्ध प्रत्यक्ष तुल्यबली नहीं हो सकते, जो दुर्बल होगा वह बलवान् से बाधित होगा, जैसे बलवान् सीप-दर्शन से दुर्बल रजतप्रत्यक्ष बाधित होता है। रजतदर्शन अयथार्थक्रियाकारिरूप अवबोधक होने से दुर्बल होता है अतः वह प्रत्यक्षाभास ठहराया जाता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only - www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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