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________________ १९० सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ भावप्रभववेलायां तत्प्रच्युतिर्नोत्पन्नेति न भावहेतोस्तस्या उत्पत्तिरिति न भावहेतुस्तद्धेतुः । एवं चोत्तरोत्तरकालभाविभावपरिणतिमपेक्ष्योपजायमाना तत्प्रच्युतिः कथं भावोदयानन्तरभाविनी स्यात् ? अथ तृतीयपक्षोऽभ्युपगमविषयस्तथापि भावोदयसमयभाविन्या प्रच्युत्या सह भावस्य प्रथमक्षणेऽवस्थानेनाऽविरोधाद् न तत्सद्भावेऽपि सति भावेन नंष्टव्यमिति न कदाचिद् भावाभावसद्भावः । किञ्च, यद्यप्युदयानन्तरोदयवती तत्प्रच्युतिः तथापि न तदैव मुद्गरादिव्यापारानन्तरमिव प्रतीतिपक्षमवतरति किन्तु मुद्गरादिव्यापारानन्तरमेव, ततश्च प्रागनुपलब्धा मुद्गरादिव्यापारानन्तरमुपलभ्यमाना पुनस्तदभावेऽनुपलभ्यमाना तज्जन्यतयाऽसौ व्यवस्थाप्यते अन्यत्रापि हेतु-फलभावस्यान्वयव्यतिरेकानुविधानलक्षणत्वात् । न च मुद्गरव्यापारानन्तरं न प्रच्युतेरुपलम्भः किन्तु कपालसन्ततेरिति तदुदय एव मुद्गरादेर्व्यापारः प्रच्युत्युपलब्धिस्तु विषयाभावादुपजायमाना वितथैवेति वक्तव्यम्- यतो घटादेः स्वरूपेणैवाधि(?वि)कृत10 ही भावहेतु नाश कर देगा ? या उत्तरकाल में ? या समानकाल में प्रच्युति करेगा ? पहले पक्ष में जो अभाव होगा वह ध्वंसरूप नहीं बल्कि प्रागभावरूप ही होगा, तो जो भावोत्पादक वही नाशोत्पादक कैसे हो सकेगा ? दूसरा पक्ष मानेंगे तो :- भावोत्पत्तिकाल में (यानी प्रथमक्षण में) भावविनाश उत्पन्न नहीं हुआ अतः (अन्वय व्यभिचार होने से) भावहेतु से भावनाशोत्पत्ति न होने से जो भावहेतु है वह नाशहेतु न रहा। फलतः मानना पडेगा कि भावप्रच्यवन भावोत्पादकसापेक्ष नहीं किन्तु उत्तरोत्तरकालभावी भाव (के) 15 तथास्वभाव से ही नाशोत्पत्ति होती है, तब भावोत्पत्ति के तुरंत बाद प्रच्यवन कैसे सिद्ध होगा ? (भाव का जैसा स्वभाव रहेगा, कोई दूसरे क्षण में, कोइ तीसरे.. चौथे..पाँचवे क्षण में नाश प्राप्त करे ऐसा स्वभाव होगा तो नाश भी तीसरे, चौथे, पाँचवे... क्षण में ही होगा।) तीसरा पक्ष माना जाय तो - प्रथम क्षण में अविरोधभाव से भावोत्पाद एवं भावोत्पत्तिक्षणभावि नाश दोनों बिना विरोध सहचर बनेंगे, अतः भाव की उत्पत्ति (के समकाल में भले नाश रहे किन्तु) के उत्तर काल में भाव की सत्ता होने पर भी नाश 20 कभी नहीं हो सकेगा। मतलब, भाव का अभाव कभी नहीं होगा। [अन्वय-व्यतिरेकबल से अभाव में सहेतुकत्व की प्रतिष्ठा ] और एक बात, हालाँकि भावप्रच्यति भावोत्पत्ति के तरंत बाद उदयवती होने का मान लिया जाय, फिर भी जैसे मोगरप्रहार के बाद उस की प्रतीति होती है वैसे उत्पत्ति के तुरंत बाद नहीं प्रतीत होती किन्तु मोगरप्रहार के बाद ही होती है, इस से यह निश्चय या निरूपण किया जा सकता है कि भावोत्पत्ति 25 के तुरंत बाद न दिखनेवाली, मोगरादिप्रहार के बाद दिखाई देनेवाली, पुनः मोगरप्रहार के बन्द हो जाने पर न दिखनेवाली भावप्रच्युति मोगरप्रहार का ही कार्य है, क्योंकि घट-कपालादि अन्य स्थल में भी कार्यकारणभाव अन्वय-व्यतिरेकानुसरण से ही लक्षित होता है। ऐसा बोलना मत कि - ‘मोगरप्रहार के बाद तो कपालखण्ड सन्तान की ही उपलब्धि होती है न कि भावप्रच्युति की, अतः खण्ड की उत्पत्ति के लिये ही मोगरादि का योगदान मानना चाहिये। प्रच्युति की उपलब्धि तो मिथ्या ही हैं क्योंकि वह 30 तो विषयभूतघटादिअभाव से उदित होती है।' – निषेध का हेतु यह है कि जब मोगरप्रहार का भावप्रच्युति के लिये कुछ योगदान ही नहीं, तब तो अपने अविकृतस्वरूप से घटादि वहाँ विद्यमान होने से पूर्ववत् वहाँ उस की उपलब्धि आदि प्रसक्त होगी। ऐसा नहीं कहना कि - ‘घटादि का तो वहाँ स्वयमेव अभाव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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