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________________ १८९ खण्ड-३, गाथा-६ पुनर्जन्मा(न)न्तरं भावः । न हि निर्हेतुकस्य शशविषाणादेः पदार्थोदयानन्तरभावितोपलब्धा । अथ निर्हेतुकत्चे ध्वंसस्य सर्वदा भावात् कालाद्यपेक्षाऽसम्भवतः पदार्थोदयानन्तरमेव भावः, नन्वेवं निर्हेतुकत्वे सर्वदा भावात् प्रथमे क्षणे एव भावप्रसक्तिर्नोदयानन्तरं सद्भावो ध्वंसस्य। न ह्यनपेक्षत्वाद् निर्हेतुकः क्वचित् कदाचिच्च भवति तद्भावस्य सापेक्षत्वं(?त्वे)न निर्हेतुकत्वविरोधादिति अभ्युपगतमेव एतत् सौगतैः।। ___ अथ स्वोत्पत्तिहेतुत एव पदार्था ध्वंसमासादयन्तीति। प्रथमक्षण एव तेषां प्रध्वंसे न तथा(?दा) 5 सत्तानुषङ्गः इति पदार्थाभावात् कुतः तत्प्रच्युतिलक्षणो ध्वंसः प्रथमक्षणे भवेत् ? असदेतत्, यतो यदि भावहेतुरेव तत्प्रच्युतिहेतुः तदा 'किमेकक्षणस्थायिभावहेतोस्तत्प्रच्युतिहेतुत्वम् किं वाऽनेकक्षणस्थायिभावहेतोरिति वक्तव्यम। यद्याद्यः पक्षः तदाऽसिद्धम एकक्षणस्थायिभावहेतत्वस्याप्यसिद्धेः तत्कृतकत्वं तत्प्रच्यतेरसिद्धमेव। द्वितीयपक्षे तु 'क्षणिकताऽभावः' इति प्रतिपादितं प्राक् । किञ्च यदि भावहेतुरेव तत्प्रच्युतिहेतुरभ्युपगम्यते तदा वक्तव्यम् किं भावजननादसौ प्राक् तत्प्रच्युतिं जनयति ? आहोस्विदुत्तरकालम् ? 10 उत समानकालम् ? यद्याद्यः पक्षः तदा प्रागभावः प्रच्युतिर्भवेद् न प्रध्वंसाभावः। अथ द्वितीयस्तथा सति के बाद कभी भी ध्वंस को मोगरादि की अपेक्षा नहीं करनी पडती। ध्वंस की तरह शशविषाणादि निर्हेतुक होने पर भी भावोत्पत्ति के बाद शशविषाणादि का आविर्भाव सिद्ध नहीं होता (इस तरह निर्हेतुक माने गये ध्वंस का भी भावोत्पत्ति के बाद तुरंत आविर्भाव सिद्ध नहीं हो सकता।) यदि कहा जाय - 'ध्वंस निर्हेतुक होने से (एवं भावसापेक्ष होने पर भी) कालादिअपेक्षा न होने से वह 15 सर्वकालीन होना चाहिये (किन्तु भावसापेक्ष होने के कारण भावोत्पत्ति के पहले नहीं हो सकता) अतः भावोत्पत्ति के बाद तुरंत ध्वंस प्राप्त होगा।' - अरे बन्धु ! जब ध्वंस सर्वकालीन (एवं भावसापेक्ष) । तो भावोत्पत्तिकालक्षण = प्रथमक्षण में भी ध्वंसापत्ति आयेगी. निर्हेतक होने से. न कि भावोत्पत्ति के दूसरे क्षण में ध्वंससत्ता। निरपेक्ष होने से निर्हेतुक जो होगा वह किसी एक क्षेत्र या किसी एक काल से ही सम्बद्ध हो यह नहीं बन सकता, क्योंकि तब उस वस्तु में देश-काल सापेक्षता के प्रवेश 20 से निर्हेतुकत्व के साथ विरोध प्रसक्त होगा। यह तथ्य तो बौद्धों को भी सम्मत है। [ उत्पादक की नाशकता के सभी विकल्पों में दूषण ] क्षणिकवादी :- सभी भाव अपने उत्पादक हेतुओं से ही नष्ट हो जाते है, यदि यह नाश उत्पत्ति के प्रथम क्षण में हो जाय तब तो वस्तु को सत्ताप्राप्ति नहीं होगी, जब पदार्थ ही नहीं होगा तो प्रच्यवनरूप ध्वंस पहले क्षण में कैसे प्रसक्त होगा ? स्थायित्ववादी :- यह कथन गलत है। भावोत्पादक को ही आप नाशहेतु मानते हैं तो दो प्रश्न :- १क्या एकक्षणस्थायिभाव का उत्पादक हो कर वह प्रच्युतिहेतु बनेगा या २ अनेकक्षणस्थायिभाव का उत्पादक हो कर ? प्रथम पक्ष में प्रच्युतिहेतुत्व इसलिये असिद्ध है कि पहले तो भावोत्पादक में एकक्षणस्थायिभावोत्पादकत्व ही असिद्ध है, अतः भावनाश में तत्प्रयक्तत्व भी असिद्ध हो गया। दूसरा पक्ष मानेंगे तो क्षणिकता का ही छेद हो जायेगा क्योंकि उत्पादक हेतु से जब अनेकक्षणस्थायिभाव 30 उत्पन्न होगा तो क्षणिकता कैसे टिकेगी ? - यह पहले भी कह आये हैं। दूसरी बात :- यदि जो भावोत्पादक है वही नाशोत्पादक है तो तीन प्रश्न - १ भावोत्पत्ति के पहले 25 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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