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________________ १८८ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-१ चान्ते क्षयदर्शनाद् आदावप्यसावभ्युपगन्तव्यः, सन्तानेनानेकान्तात्। न च 'मुद्गरादिसंयोगादिकं कारणान्तरमनपेक्षमाणः (नाश:) पदार्थसत्तामात्रानुबन्धित्वात् तदुदयानन्तरमेव सत्त्वमासादयति' इति वक्तव्यम् - यतो यदि नाम भावसत्तामात्रानुबन्धिता नाशस्य तथापि न प्रतिक्षणध्वंसित्वं सिध्यति सत्ताया एव तथात्वेनाऽनिश्चयात्। तथाहि असावेकक्षणसंगता वा भवेत् bअनेकक्षणपरिगता वा ? तत्र यद्याद्यः पक्षः स न युक्तः, तस्या एकैकक्षणावस्थानाऽसिद्धेः, तदसिद्धौ च तदनुबन्धिनः प्रध्वंसस्य कथं प्रतिक्षणभावित्वं निश्चेतुं शक्यम् ? विशेषणाऽप्रतिपत्तौ तद्विशेष्यस्य प्रतिपत्तुमशक्तेः न क्षणिकसत्तामात्रानुबन्धित्वाद् नाशस्योदयानन्तरभावित्वं सिद्धिमासादयति । अर्था(?था)नेकक्षणस्थायिसत्तामात्रानुबन्धी ध्वंसः, तथा सति सत्तायाः क्षणान्तरावस्थानादक्षणिकतैव भावस्य न्यायादनुपतति । अनेकक्षणस्थितिसत्तानुबन्धे प्रध्वंसस्याऽनेकक्षणस्थितिसत्तानन्तरं भावेन नष्टव्यम् अन्यथा तथाभूत10 सत्तानुबन्धित्व()योगो ध्वंसस्येति कथं क्षणिकत्वम् ? किञ्च, उदयानन्तरमेव भावानां ध्वंस इति कुतः प्रतीयते ? किं भिन्नाभिन्नविकल्पाभ्यां ध्वंसस्याऽघटमानत्वात् आहोस्विदन्यतः प्रमाणादिति विकल्पद्वयम्। तत्र यद्याद्यः पक्षः तदा नोदयानन्तरं ध्वंस: सिद्धिमासादयति यतो भिन्नाभिन्नविकल्पाभ्यां मुद्गरादिनिरपेक्षि(क्ष)त्वं तस्य सिद्धिमासादयति न को नहीं मानते। यहाँ व्यभिचारदोष है। 15 ऐसा मत कहना कि - 'नाश मुद्गरप्रहार आदि किसी भी अन्यान्य कारणों की परवा नहीं करता, उस को तो पदार्थसत्ता मात्र से सम्बन्ध (अनुबन्धिता) है, अतः पदार्थोत्पत्ति होते ही उस का नाश अस्तित्व में आ जाता है।' - कारण, नाश यदि भावसत्तामात्रानुबन्धि है तो भी उस का प्रतिक्षणध्वंस सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि सत्ता क्षणिक ही होती है ऐसा निश्चय नहीं है। देखिये - दो विकल्प, सत्ता एकक्षण जीवित होती है या अनेकक्षणजीवी ? प्रथमपक्ष अयुक्त है, क्योंकि सत्ता की एकक्षणस्थिति 20 ही असिद्ध है। जब सत्ता की क्षणस्थिति ही असिद्ध है तो तदनुबन्धि नाश की भावोत्पत्ति के बाद तुरन्त प्राप्ति का निश्चय कैसे हो सकता है ? जब भावसत्ताक्षणिकत्वरूप विशेषण असिद्ध है तो भावसत्तानुबन्धित्व रूप विशेष्य ही गृहीत न हो सकने से, क्षणिकसत्तामात्रानुबन्धित्व के आधार पर नाश में उत्पत्तिपश्चाद्भावित्व कैसे सिद्धि प्राप्त करेगा ? दूसरा पक्ष :- bयदि ध्वंस अनेकक्षणस्थायीभाव सत्ता मात्र का अनुबन्धि है - तब तो भावसत्ता 25 में अन्यअन्यक्षणवृत्तित्व फलित होने से भाव की अक्षणिकता न्यायप्राप्त हो गयी। मतलब, जब ध्वंस में अनेकक्षण स्थायिभावसत्ता का अनुबन्ध है तब तो भाव को अनेकक्षणसत्ताभोग करने के बाद ही नाशप्राप्ति होगी, अन्यथा ध्वंस में अनेकक्षणस्थायिसत्ता का अनुबन्ध ही नहीं घटेगा, फिर कैसे क्षणिकत्व सिद्ध होगा ? बुद्धदर्शनीओं को यह एक प्रश्न है - उत्पत्ति के तुरंत बाद भावों के ध्वंस की प्रतीति किस 30 से या कैसे हुई ? क्या आपने ध्वंस भाव से भिन्न या अभिन्न, एक भी विकल्प के न घटने से कल्पना कर ली ? या अन्य किसी प्रमाण से ? ये दो विकल्प विचारने पड़ेंगे। प्रथम पक्ष मानेगें तो भाव की उत्पत्ति के बाद ध्वंस की सत्ता सिद्ध नहीं होगी, इतना ही सिद्ध होगा, कि भाव-उत्पत्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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