SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड-३, गाथा-६ १७३ इति हेतोरसिद्धिप्रसक्तिश्च । न च यथा प्रमाणान्तरतः क्षणिकत्वप्रसिद्धेः 'अध्यक्षतोऽनुभूतमपि तन्न निश्चीयते' इति व्यपदिश्यते तथा शब्दात्मता भावानां व्यपदेशमासादयति, तत्प्रसाधकप्रमाणान्तरस्याऽप्रसिद्धेः। किं तु (च)-शब्दात्मा घटादिरूपतया परिणमन् प्रति पदार्थं भिद्यते न वेति वक्तव्यम्। यद्याद्यः पक्षः तदा शब्दब्रह्मणोऽनेकत्वप्रसक्तिः, विभिन्नानेकभावात्मकत्वात् तत्स्वरूपवत्। एकं च परैर्ब्रह्मेष्यते इत्यभ्युपगमापगमः। अथ यदि द्वितीय पक्षस्तदा एकदेश-कालाकाररूपतापत्तिर्जगत इत्येकरूप: 5 प्रतिभासो भवेत्, नीलादेरेकब्रह्मरूपाऽव्यतिरेकात्। अपि च, नित्यशब्दमयत्वे जगतः शब्दस्वरूपवत् सर्वभावानां नित्यत्वप्रसक्तिः इति तेन सहसर्वदोपलब्धेः परिणामाऽसिद्धिः कृशयति परिणामप्रतीते:(?तिम्)। तन्न परिणामकृतं शब्दमयत्वं भावानाम् । ___नापि हेतुकृतम्, (१७०-४) शब्दस्य नित्यत्वेन अविकारित्वात् ततः कार्योदयाऽसम्भवात् । नाप्यक्रमाच्छब्दब्रह्मणः क्रमवत्कार्योदयो युक्तः। कारणवैकल्याद्धि कार्याणि उदयं प्रति सविलम्बानि भवन्ति, 10 इस कथन के साथ विरोध प्रसंग आयेगा और - सर्व भाव शब्दाकारानुस्यूत है - यह स्वभाव हेतुप्रयोग है - ऐसा जो पहले आपने कहा है (१७०) वह हेतु असिद्ध हो जायेगा। यदि कहा जाय - क्षणिकत्व की सिद्धि अनुमानरूप अन्य प्रमाण से करनी पडती है तब ऐसा व्यपदेश किया जाता है कि क्षणिकत्व प्रत्यक्षदृष्ट होने पर भी निश्चयविषय नहीं बनता, उसी प्रकार भावों की शब्दात्मकता के लिये भी तथा व्यपदेश किया जाता है। - तो यह ठीक नहीं क्योंकि क्षणिकत्व जैसे प्रमाणान्तरसिद्ध है वैसे 15 भावों की शब्दात्मकता प्रमाणान्तरसिद्ध नहीं है। [शब्दात्मक घटादि में भेदाभेदभाव की अनुपपत्ति ] उपरांत, यह स्पष्ट बोल दो कि घट-पटादिरूप से परिणामों में ढलनेवाला शब्दब्रह्म व्यक्ति-व्यक्ति से यानी व्यक्तिभेद से भिन्न होता है या नहीं ? प्रथम पक्ष में, शब्दब्रह्म में अनेकता (भेद) की विपदा होगी, क्योंकि वह भिन्न भिन्न अनेक व्यक्तियों से अभेद रखता है जैसे उन व्यक्तियों का स्वरूप। 20 दूसरी ओर परपक्षी तो ब्रह्म को 'एक' ही मानता है, उस का विलोपन होगा। दूसरे पक्ष में पूरे विश्व में एकदेशीयता, समकालीनता और एकाकारता की प्राप्ति होने से प्रतिभास भी एकाकार ही प्रसक्त होगा क्योंकि नीलादि व्यक्तियों से एक ब्रह्म अभेदभाव रखता है। तथा, जैसे नित्यशब्दअभिन्न उस का स्वरूप भी नित्य होता है वैसे जगत् को नित्यशब्दमय मानने पर सभी पदार्थों में नित्यत्व का अतिप्रसंग होगा। तथा, नित्य शब्द की उपलब्धिकाल में तदभिन्न भावों की भी सदैव उपलब्धि 25 चलती रहेगी तो शब्दों से पृथक् उन के परिणामों की सिद्धि ही न होने से परिणामों की प्रतीति का भी लोप प्रसक्त होगा। निष्कर्ष, भावों में परिणामप्रेरित शब्दमयता संगत नहीं है। (मूल प्रथम विकल्प पूरा हुआ, अब हेतुकृत दूसरे विकल्प का निषेध प्रारम्भ होता है।) [ शब्द से जगत् की उत्पत्ति वाला दूसरा हेतूकृत' विकल्प ] Bशब्द से उत्पन्न होने के कारण जगत का शब्दमय होना - यह दूसरा पक्ष, (शब्दहेतुक जगत् 30 शब्दमय है) यह भी असंगत है। शब्द नित्य है, नित्य पदार्थ अविकारी होता है, अविकारी नित्य हेतु से कार्य का उदय असंभव है अतः जगत् शब्दजन्य नहीं होने से शब्दमय नहीं हो सकता। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy