SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड-३, गाथा-६ १६७ यन्न)नयोर्व्यापकताम्[ मूलम् ] नामं ठवणा दविएत्ति एस दबट्ठियस्स निक्खेवो। भावो उ पज्जवट्ठिअस्स परूवणा, एस परमत्थो ।।६।। इत्यनया गाथया दर्शयत्याचार्यः। अथवा वस्तुनिबन्धनाध्यवसायनिमित्तव्यवहारमूलकारणतामनयोः प्रतिपाद्य, अधुना अध्यारोपिताऽनध्यारोपितनाम-स्थापना-द्रव्य-भावनिबन्धनव्यवहारनिबन्धनतामनयोरेव प्रतिपादयन्नाहाचार्य: नामं ठवणा इत्यादि। __ अस्याश्च समुदायार्थः – नाम स्थापना द्रव्यम् इति एष द्रव्यार्थिकस्य निक्षेपः। भावस्तु पर्यायार्थिकनिरूपणाया निक्षेपः इति एष परमार्थः । [ नामनिक्षेपः- व्याख्या-संकेत-विषयाः ] तत्र यस्य कस्यचिद् वस्तुनो व्यवहारार्थमभिधानं निमित्तसव्यपेक्षमनपेक्षं वा यत् संकेत्यते तद् नाम । संकेतकरणात् (णं तु) क्वचिदभेदेन यथा 'अयं घटः' इति, क्वचिद् भेदेन यथा “अस्य चायं 'घट'शब्दो वाचकः” इति भेदेन । एतच्च समानाऽसमानाकारपरिणत्यात्मकेऽपि वस्तुनि समानाकारप्रतिपादनायैव नियोज्यते तस्यानुगतत्वेन तत्र संकेतकरणसौकर्यात्। असमानपरिणतेष्वननुगमात् आनन्त्याच्च न तत्र 15 नय कैसे मूलव्याकरणी हैं यह छट्ठी गाथा से दिखाते हुए, उसी गाथा से द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक की व्यापकता आचार्य सिद्धसेनसूरि प्रकट करते हैं - (२) अथवा वस्तुमूलक अध्यवसाय और वस्तु निमित्तक व्यवहारों का मूल कारण उक्त दो नय हैं यह दिखा कर, अब अध्यारोपित, या वास्तव नाम-स्थापना-द्रव्य निक्षेप एवं भावनिक्षेप मूलक व्यवहार की नींव भी ये ही दो नय हैं - ऐसा आचार्य सिद्धसेनसूरि दिखा रहे हैं - ___20 गाथार्थ :- नाम-स्थापना-द्रव्य ये द्रव्यार्थिक के निक्षेप हैं, 'भाव' पर्यायार्थिक की प्ररूपणा है - यह परमार्थ है।।६।। व्याख्यार्थ :- गाथा का समुदित अर्थ है - नाम-स्थापना एवं द्रव्य ये तीन द्रव्यार्थिक के (मान्य) निक्षेप हैं, भाव तो पर्यायार्थिक निरूपण का (मान्य) निक्षेप है - यह परमार्थ है। 25 [ नामनिक्षेप के विषय-संकेत-और व्याख्या ] ___ यहाँ - जिस किसी भी वस्तु के व्यवहार को चलाने के लिये जिस अभिधान का यानी जिस शब्द के प्रयोग का संकेत यानी निर्धारण किया जाता है उस शब्द को नाम (निक्षेप) कहा जाता है, चाहे वह (गो-इत्यादि) शब्द संकेत वस्तुगत (गमनक्रियादि) निमित्त से निरपेक्ष हो या सापेक्ष । [यहाँ नाम आदि को 'निक्षेप' इस लिये कहा जाता है कि एक बार एक वस्तु के लिये जो नाम- 30 निर्धारण हुआ है, उस नाम का संकेत किसी एक ही पदार्थ में हो यह जरूरी नहीं, नाममात्र अनेकार्थक होता है। तब प्रतिनियत देश-काल-संदर्भ के अनुसार वह नाम किस अर्थ में प्रयुक्त है उस का अन्वेषण कर के नियत अर्थ के साथ उस नाम का सम्बन्धग्रहण किया जाता है - इस निर्धारण को ही निक्षेपण या निक्षेप कहा जाता है और निक्षेपण के आधारभूत (नामार्थ, स्थापना, द्रव्य भाव रूप) विषयों को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy