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खण्ड-३, गाथा-५
१४३ वाऽसावज्ञात: तद्व्यवस्थितः(तये) स्यात् परस्परस्थापक(त्वाऽ)योगात् । नानाम(?यम)पि ज्ञातः स्वसंवेदनं तत्र ज्ञान(?)सम्भवात् स्वसंविद्रूपतां बिभ्राणस्य भावस्वरूपतापत्तेः। नाप्यनुपलब्धितस्तज्ज्ञप्तिः, तस्या अप्यज्ञाताया (अ)योगाद् अन्यायो(?या) ज्ञापकत्वाऽयोगाद् । अन्यानुपलब्धेस्तुच्छरूपायास्तज्ज्ञप्तौ तत्पर्यनुयोगतोऽनवस्थाप्रसक्तेः । न च पर्युदासरूपायास्ततस्तत्सिद्धिः, भावविषयत्वेन तस्यास्तदवगमहेतुत्वाऽयोगात्। न च बहिर्बाधकविषयगोचराऽनुपलब्धिर्बाधकाभावमवगमयति, अन्यथा देवदत्तनीलज्ञानावभासिनीलगोचरा(त्) 5 प्रतिपत्तिर्नीलदृशमपाकुर्यात् तत्पीतप्रतिपत्तिर(?म)पाकुर्यात् । न च बाधकप्रत्ययो 'नास्ति' इत्युल्लेखवदभाव(नाज ?)ज्ञानं तदभावमवगमयति, वस्त्वन्तरग्रहणे प्रतियोगिस्मरणे च प्रतियोग्यभावविषयत्वेन परैस्तस्याभ्युपगमात् । उक्तं च (श्लोव्वा०अभा०श्लो० २७) -
गृहीत्वा वस्तुसद्भावं स्मृत्वा च प्रतियोगिनम्। ... इत्यादि । अन्यार्थ(भाव)सूचक है ? (दूसरे प्रश्न की चर्चा बाद में की जायेगी, अभी प्रथम प्रश्न की विस्तृत 10 चर्चा शुरु होती है -) वाधाभाव यदि तुच्छस्वरूप है तो वह अर्थसत्ता की स्थापना कर नहीं सकता, अगर अर्थसत्ता की स्थापना करेगा तो वह तुच्छरूप नहीं होगा। उपरांत बाधाभाव अज्ञात रहेगा या ज्ञात ? अज्ञात तुच्छरूप वाधाभाव कोई व्यवस्था नहीं कर सकता। अज्ञात बाधाभाव की व्यवस्था कौन करेगा ? अर्थसत्ता ? तो अन्योन्याश्रय होने से परस्परस्थापकता नहीं घट सकती। ज्ञात बाधाभाव भी स्वसंवेदन के बिना स्थापक नहीं हो सकता, और तुच्छ होने से स्वसंवेदन ज्ञान भी शक्य नहीं। 15 यदि वह स्वसंविदित माना जायेगा तो उस की अभावरूपता का भंग और भावरूपता की प्रसक्ति होगी।
अर्थसत्ता का भान बाध की अनुपलब्धि से भी शक्य नहीं। स्वयं वह अज्ञात रह कर अन्य का ज्ञापक बन नहीं सकती। अन्य किसी प्रकार बाध अनुपलब्धि से प्रस्तुत अनुपलब्धि का भान भी शक्य नहीं क्योंकि इस प्रकार अज्ञात-ज्ञात प्रश्नमाला चलने पर तुच्छ स्वरूप अन्य अन्य अनुपलब्धि 20 मानते चलेंगे तो अनवस्था दोष होगा। पर्युदासस्वरूप अनुपलब्धि से बाधाभाव का ज्ञान शक्य नहीं, क्योंकि पर्युदासस्वरूप अनुपलब्धि हर हमेश भाव विषयक होती है अभाव (बाधाभाव) उस का विषय नहीं, अतः वह उस की अवबोधक नहीं हो सकती। ___बाधकाभाव से बाधाभाव का ज्ञान मानेंगे तो पहले बाह्य बाधकविषयसम्बन्धि अनुपलब्धि के लिये प्रथम बाधक को जान कर बाद में बाधकाभाव ज्ञान करना पडेगा, किन्तु यह सम्भव नहीं, 25 क्योंकि जो बाधक को जानती है वह बाधकाभाव की बोधक कैसे होगी ? देवदत्त की नीलज्ञानावभासी नीलविषयक प्रतीति कभी नीलदर्शन का तिरस्कार नहीं कर सकती। भिन्नविषयक अनुपलब्धि भी उस का अवबोध नहीं करा सकती, अन्यथा देवदत्तीय नील प्रतीति देवदत्तीय पीतदर्शन का तिरस्कार कर देगी। _ 'नास्ति = नहीं है' इस प्रकार उल्लेखशालि अभावज्ञानरूप बाधकप्रत्यय भी अभाव के प्रकाशन में समर्थ नहीं है, क्योंकि मीमांसकादि विद्वानों का मत अभावग्रहण के बारे में इस तरह है - प्रतियोगि 30 (घटादि) से भिन्न (भूतलादि) का ग्रहण एवं प्रतियोगी का स्मरण हो तभी अनुपलब्धि प्रतियोगिअभावविषयक मानी जाती है। श्लोकवार्त्तिक (अभाव० श्लो०२७) में कहा है – वस्तु सत्ता को ग्रहण कर के एवं
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