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________________ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १ वस्त्वन्तरस्य च प्रतियोगिसंसृष्टस्याध्यक्षेण ग्रहणे न ततस्तद्भा ( ? द्भा ) वसिद्धि: । असंसृष्टग्रहणे चाध्यक्षत एवाभावसिद्धेर्व्यर्थमभावाख्यं प्रमाणम् । न चाऽभावप्रमाणादेव प्रतियोग्यसंसृष्टता वस्त्वन्तरस्य प्रतीता, तस्यापि प्रतियोग्यसंसृष्टवस्त्वन्तरग्रहणमन्तरेणाऽप्रवृत्तेः, तदभ्युपगमे चानवस्थाप्रसक्तेः । तथा, प्रतियोगिनोऽपि यदि वस्त्वन्तरसंसृष्टस्य स्मरणं, कथमभावः ? अथाऽसंसृष्टग्रहणे सति प्रवर्त्तते असंसृष्टता5 ग्रहणं च यदि प्रत्यक्षादभावप्रमाणवैयर्थ्यम् । अभावप्रमाणत्वे तदपि वस्त्वन्तरसंसृष्टप्रतियोगिस्मरणे सति प्रवर्त्तते तत् स्मरणमपि तथाभूतवस्तुग्रहणे, तदप्यभावप्रमाणादित्यनवस्थाप्रसक्तिः । न चभास (? चाभाव) प्रमा णा ) दभावप्रतिपत्तावपि प्रतियोगिनो निवृत्तिसिद्धिः, अन्यप्रतिपत्तावन्यनिवृत्त्यसिद्धेः । न च तन्निवृत्तिप्रतिपत्तौ प्रतियोगिनिवृत्तिसिद्धिः, अनवस्थाप्रसक्तेः, प्रतियोगिस्वरूपा ( : ?) ऽसंस्पर्शिरूपाऽपरापरनिवृत्तिप्रतिपत्त्यपरिसमाप्तेः । न चाभावप्रत्यये प्रतियोगिस्वरूपानुवृत्तौ तत्प्रतिषेधः, तस्य १४४ 10 प्रतियोगि का स्मरण कर के... ( प्रतियोगि के अभाव का ज्ञान अनुपलब्धि से होता है ।) इत्यादि । मीमांसककथितरूप से अभावग्रहण में अनवस्थाप्रसंग ] 15 इस प्रकार से अभाव का ग्रहण करने जायेंगे तो अभावप्रमाण से अभाव की सिद्धि ही नहीं हो सकेगी, क्योंकि अन्यवस्तु (भूतलादि) तब प्रतियोगिविशिष्टरूप से गृहीत रहेगी, अथवा प्रतियोगिअविशिष्ट रूप से प्रत्यक्षतः ग्रहण होगा तो प्रत्यक्ष से अभाव गृहीत हो चुका है। यदि कहें कि 'अन्यवस्तु में प्रतियोगि अविशिष्टता का ग्रहण भी हम प्रत्यक्ष से नहीं किन्तु अभावप्रमाण से ही मानेंगे' तब तो उसके लिये पुनः प्रतियोगिअविशिष्ट अन्यवस्तु का ग्रहण अनिवार्य हो जायेगा क्योंकि उस के बिना प्रथम अभावप्रमाण की प्रतियोगिअविशिष्ट अन्य वस्तु के ग्रहण में प्रवृत्ति ही कैसे होगी ? फलतः अनवस्था गले पडेगी। तथा, यदि अन्यवस्तुविशिष्टतया प्रतियोगि का स्मरण (यानी एक प्रकार से ग्रहण) चालु है तब प्रतियोगी का उस (अन्य ) वस्तु में अभाव क्यों कर रहेगा ? यदि कहें कि 20 वस्तु प्रतियोगिअविशिष्टतया ही गृहीत होती तब अभाव प्रमाण प्रवृत्त होता है' तो दो प्रश्न, एक अविशिष्टता प्रत्यक्ष से ज्ञात होगी ? या दो अभावप्रमाण से ? प्रत्यक्ष से ज्ञात रहेगी तो प्रत्यक्ष से ही अभाव तदन्तर्गतरूप से सिद्ध हो गया, अभावप्रमाण तो बेकार रहा। यदि अभावप्रमाण से, तो उस की प्रवृत्ति के लिये पुनः अन्यवस्तु अविशिष्ट प्रतियोगी का स्मरण करना पडेगा, वह स्मरण भी प्रतियोगिअविशिष्ट अन्यवस्तु के ग्रहण होने पर ही होगा तो वह नये अभावप्रमाण से 25 ही हो सकता है, पुनश्च अनवस्थाप्रसङ्ग आ पडेगा । 'अन्य [ अभावप्रमाण से प्रतियोगिनिवृत्ति असंभव ] कदाचित् अभावप्रमाण से अभाव का ज्ञान हो भी जाय, उस से भाव की ( प्रतियोगी की ) निवृत्ति यानी निषेध शक्य नहीं है क्योंकि एक वस्तु के ज्ञान से उस वस्तु का विधान हो सकता है, अन्य का निषेध नहीं है। कारण :- जिन में प्रतियोगिस्वरूप का संस्पर्श ही नहीं ऐसी निवृत्ति के ग्रहण 30 में पुनः पुनः अन्य अन्य निवृत्तियों का भान स्वीकारने में अन्त ही नहीं होगा । हैं अभाव की प्रतीति में प्रतियोगीस्वरूप की झाँखी होती है या नहीं ? तथा, प्रश्न ये Jain Educationa International - - - For Personal and Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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