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________________ खण्ड-३, गाथा-५ १४१ नेन्दुद्वयावभासज्ञानस्याऽसत्यार्थविषयतया तत्प्रभवत्वं ज्ञातुमशक्ते(रती)न्द्रियत्वेन तद्गतदोषस्याप्यध्यक्षेणाऽप्रतिपत्तेः। नाप्यनुमानात् कारणदोषावगति: अध्यक्षाभावेऽनुमानस्याऽप्रवृत्तेः। न च नरान्तरस्येन्दुद्वयादेरप्रतिभासनाद् दुष्टकारणजनितविज्ञानविषयत्व(?)मस्या स)त्यत्वं वा स्वग्राहिज्ञाने परिस्फुटतया प्रतिभासनात्। न च समानसामग्रीकस्य नरान्तरस्य तदप्रतिभासः, यावत् तिमिरं तावत् तस्यावभासनात्। न च परिन्ना (?परस्य भिन्न)सामग्रीकस्यानवभासनात् तदभावः, सत्कारणानामेव तद्ग्रहणं प्रति सामर्थ्याऽविरहात् दुष्टत्व- 5 सिद्धे (:) ??] [??न च सत्यदर्शित्वात् तस्य कारणदुष्टतानुपपत्तिः, कारणाऽदुष्टत्वे सत्यार्थदर्शितत्वम् तद्दर्शित्वाच्च कारणाऽदोषः इतीतरेतराश्रयदोषापत्तेः। न च तदवभासिविज्ञानस्य मिथ्यारूपत्वात् दोषवत्कारण(?)जन्यत्वम् अत्रापीतरेतराश्रयदोषस्य तदवस्थानात् । न च विसंवादिज्ञानविषयत्वात् इन्दुद्वयादेरपारमार्थिकत्वम् बाध्य माने गये ज्ञान से जब अर्थोपलब्धि सिद्ध है तब समानकाल में अनुपलब्धि खुद ही असिद्ध 10 है। यदि भिन्न (उत्तर) कालीन एकार्थविषयक अनुपलब्धि से बाध मानेंगे तो वह सम्भव नहीं है क्योंकि उस का विषय जब एक (वही) अर्थ है तब तो वह उस की साधक बन जाने से बाधकभाव नहीं घट सकता। यदि भिन्नविषयक अनुपलब्धि को बाधक मानेंगे तो वह भी असम्भव है क्योंकि वह अनुपलब्धि तो उस समय (बाध्यज्ञानीयविषय से भिन्न) अपने विषय के ग्रहण में व्यग्र होगी, फिर वह पूर्वकालीन बाध्यज्ञान के विषय के असत्यत्व के प्रतिपादन का काम कैसे करेगी ? यदि किसी 15 तरह करेगी, तो सारे सम-विषमकालीन सभी ज्ञानविषयों का बाध होने का अतिप्रसंग शिर उठायेगा। तो क्या सदोषकारणजन्य होने से इन्दुयुगलावभासि ज्ञान की असत्यार्थविषयता घोषित करेंगे ? नहीं, क्योंकि नेत्रादि इन्द्रिय अतीन्द्रिय होने से उस के दोष का प्रत्यक्षग्रहण शक्य न होने से, सदोषकारणजन्यत्व का ज्ञान शक्य नहीं है।। अनुमान से भी नेत्रादि इन्द्रियरूप कारणों के दोष का भान शक्य नहीं है क्योंकि जिस विषय 20 का प्रत्यक्ष नहीं होता उस के ग्रहण में अनुमान साहस नहीं कर सकता। यदि कहें – 'अन्य लोगों को दो चन्द्र भासते नहीं है इस लिये दुष्टकारणजन्यविज्ञानविषयत्व रूप असत्यत्व सिद्ध होता है' - तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि (अन्य मनुष्य के नेत्र की दुर्बलतादि को दो चन्द्र अति स्पष्टरूप से भासित होते हैं। यदि वे अन्य लोग समानरूप से चन्द्रयुगलदर्शनसामग्री के धनी होंगे तो वे भी तिमिरग्रस्त होने से जब तक उन को तिमिर रहेगा, जरूर दो चन्द्र का प्रतिभास उन को भी होगा। 25 यदि वे अन्य लोग भिन्नसामग्री के धनी है और उन को दो चन्द्र नहीं दिखते, इतने मात्र से चन्द्रयुगल का बाध नहीं हो जाता, यदि उन लोगों के पास चन्द्रद्वयदर्शन सामग्री सत् होगी तो वह सामग्री चन्द्रद्वयग्रहणसामर्थ्य से वंचित भी नहीं होगी, अतः सदोषकारणजन्यत्व असिद्ध है। [ सत्यदर्शिता - कारणदोषाभाव में अन्योन्याश्रय दोष ] यदि कारण सत्यज्ञान में कारणदोषाभाव परिपूर्णसामग्रीमूलक न मानकर सत्यदर्शितामूलक ही 30 मानेंगे, तो इतरेतराश्रयदोष :- ‘कारणों की निर्दोषता होने पर सत्यदर्शिता होगी और सत्यदर्शिता सिद्ध होने पर कारणनिर्दोषता सिद्ध होगी' - होगा। एवं चन्द्रयुगलावभासि विज्ञान में मिथ्यारूपतामूलक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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