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________________ 5 १४० सन्मतितर्कप्रकरण - काण्ड - १ नाप्यर्थक्रिया उत्पत्ति-क्षययोर्बाध्यत्वाऽयोगात् । न च तस्या ( अ ) भावेऽर्थस्याऽसत्त्वम् तस्यास्ततोऽन्यत्वात् । न चार्थक्रियासद्भावादर्थस्य सत्त्वम् अर्थक्रियाया अपि सत्ताऽसिद्धे ( : ) । नाप्यपरार्थक्रियाऽभावात् तस्याः सत्त्वम् अनवस्थाप्रसक्ते(ः) । नाप्यर्थजन्यत्वादर्थक्रियासत्त्वम् इतरेतराश्रयप्रसङ्गात् । न च सत्तासम्बन्धात् भावान् (i) सत्त्वम् सत्ता- तत्सम्बन्धयोर्निषेधात् । नाप्युत्पाद-व्यय- ध्रौव्ययोगात्, विरोधाद्यनेकदूषणाघ्रातत्वात् । बाधकसद्भावाद् बाध्यत्वं (चेद् भिन्नसन्तानमेकसन्तानं वा न भिन्न) सन्तानमतिप्रसङ्गात् । नाप्येकसन्तानमेककालमेक (तानैकं ? ) कालाविकल्पदर्शनद्वयाऽयोगात् । नापि भिन्नकालमेकार्थम् घटज्ञानानन्तरभाविनस (स्त) ज्ञानस्य बाधकतापत्तेः । नापि भिन्नार्थम् पटज्ञानबाधकतापत्तेः । नाप्यनुपलब्धिर्बाध्यज्ञानसमानकाला तद्बाधिका तस्या असिद्धेः । नाप्युत्तरकालभावितयान्यज्ञानैकार्थविषया एकविषयस्य तदर्थसाधकत्वेन बाधकत्वानुपपत्तेः । नापि भिन्नविषया (णा ? ) यास्तस्यास्तदानीं 10 स्वविषयसाधकत्वेन पूर्वबाध्यज्ञानविषयाभावप्रतिपादकत्वानुपपत्तेरन्यथातिप्रसक्तेः । न च दुष्टकारणप्रभवत्वे उस का असत्त्व कौन कर सकता है ? अर्थक्रिया का बाध भी नहीं हो सकता, क्योंकि न तो कोई उस की उत्पत्ति को, न विनाश को रोक सकता है । तथा, अर्थक्रिया के विरह से अर्थ सत्ता का विरह मानना अनुचित है, क्योंकि वह उस से भिन्न है । यदि अर्थक्रिया की सत्ता पर किसी की ( अर्थ की) सत्ता निर्भर होती तब तो अर्थक्रिया द्वारा अन्यअर्थक्रिया न होने से अर्थक्रिया का ही असत्त्व 15 प्रसक्त होगा । अन्य अर्थक्रिया होने पर अर्थक्रिया की सत्ता मान लेंगे तो उस की सत्ता के लिये भी और एक अर्थक्रिया के सत्त्व से अर्थ का सत्त्व, ऐसा मानेंगे तो अन्योन्याश्रय दोष लगेगा । वस्तु का सत्त्व 'सत्त्व' (जाति) के योग से भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि पहले हमने सत्ता (जाति) एवं उस के सम्बन्ध (समवाय) का निषेध कर दिखाया है । 'उत्पत्ति - स्थैर्य-विलय' के योग से भी अर्थ की सत्ता मानना उचित नहीं है क्योंकि एक वस्तु में सम काल में इन तीनों के होने में स्पष्ट ही 20 विरोध है और भी ( सांकर्यादि) अनेक दोष लग जायेंगे । [ बाधक के सामर्थ्य से बाध्यता की अनुपपत्ति ] (विज्ञान की बाध्यता की कसौटी चल रही है यह भूलना नहीं ।) बाधक की सत्ता से विज्ञान की बाध्यता नहीं घट सकती, क्योंकि विकल्प खड़े हैं भिन्नसन्तानगत बाधक से बाध होगा या एकसन्तानगत ? पहले विकल्प में समस्त विज्ञानों का भिन्नसन्तानीय बाधक से बाध अति प्रसक्त होगा । 25 एकसन्तानगत एककालीन बाधक से बाध अशक्य है क्योंकि समकाल में एकसन्तान में निर्विकल्प दो दर्शन ( बाध्य और बाधक दर्शन) का संभव नहीं । यदि भिन्नसन्तानगत भिन्नकालीन बाधक दर्शन से बाध मानेंगे तो वह भिन्नविषयक है या एकविषयक ? यदि भिन्नकालीन एकविषयक बाधक मानेंगे तो पूर्वघटदर्शन के बाद द्वितीय उत्तरकालीन घटदर्शन से पूर्वघटदर्शन का बाध प्रसक्त होगा । भिन्नविषयक भिन्नकालीन बाधक से बाध मानेंगे तो घट ज्ञान के बाद भिन्न सन्तान में भिन्नकाल में पटविषयक 30 ज्ञान से बाध प्रसक्त होगा । [ अर्थानुपलब्धि से बाध की अनुपपत्ति ] यदि बाध्यज्ञान समानकालीन अर्थानुपलब्धि से बाध Jain Educationa International मानेंगे तो वह भी शक्य नहीं क्योंकि For Personal and Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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