SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड - ३, गाथा-५ ९१ अतो मुद्गरादिरहिता सामग्री अविभक्तं कार्यं सम्पादयन्ती तत्सन्निधाने विभक्तं कार्यान्तरं जनयति न तु मुद्गरादयः कारणसामर्थ्यं खण्डयन्ति, विकल्पत्रयस्याऽत्रापि पूर्वोदितस्य ( ७९-५ ) प्रसङ्गात् । अतो यदुक्तम् [ ] 'स्वभावोऽपि स तस्येत्थं येनापेक्ष ( ? ) निवर्त्तते । विरोधिनं यथान्येषां प्रवाहा मुद्गरादिकम् ।।” तदपि प्रतिक्षिप्तं दृष्टव्यम् । अथायं विकल्पः (८९-३ ) सर्वत्रगत्वादसारः । तथाहि - उत्पादेऽप्येवं शक्यते वक्तुम् - ^ स्वभावतो 5 ह्युत्पत्तिस्वभावस्य न किञ्चिदुत्पत्तिहेतुभिः, तत्स्वभावतयैव स्वयमुत्पादात् । अनुत्पत्तिस्वभावस्य तु स्वभावतो व्यर्था उत्पत्तिहेतवः तद्भावान्यथात्वस्य कर्त्तुमशक्यत्वात् इति । नैतत् सारम्, यतो यदुत्पत्तिरभूत्वा भवनलक्षणैव अन्यथा तदयोगाद् स्वभावो यस्य स तथोच्यते तदा सिद्धसाधनमेव । यस्य ह्यभूत्वा - स्वयं नष्ट होते | अतः निवृत्ति (= नाश) के लिये मुद्गरादि की अपेक्षा की गन्ध ही नहीं है । कहना है तो कह सकते हैं कि परस्पर असम्बद्ध पूर्वोत्तर क्षण ही प्रवाह है, ये प्रवाहसंज्ञक पूर्वोत्तरक्षण 10 तो अपने आप ही निवृत्त ( = नष्ट ) हो जाते हैं । अतः निवृत्ति को किसी अकिंचित्कर (मोगरादि ) की अपेक्षा होने की सम्भावना नहीं है । यह स्पष्टता सुन लो - मोगरशून्य पूर्व पूर्व क्षणसामग्री सदृश उत्तरोत्तर क्षणात्मक कार्य घटादि को निपजाती है । पुनः मोगरसंयुक्त पूर्व-पूर्व क्षण सामग्री विसदृश उत्तरोत्तर क्षणात्मक कपालादि कार्य को निपजाती है । ( इस तरह मोगर तो कपालादि कार्य का जनक है सर्वथा अकिंचित्कर नहीं) अत एव यह कहना अयुक्त है कि मोगरादि से घटादि के जनक कारणों के सामर्थ्य 15 का विनाश होता है। यदि ऐसा मानेंगे तो पूर्वोक्त तीन विकल्पों (इन्धन कुछ विकार - तुच्छ) की पुनरावृत्ति प्रसक्त होगी ( ७९-२३) । अत एव यह जो किसी ने कहा है (श्लोकार्थः) ' भाव का स्वभाव ऐसा ही है कि (किसी की अपेक्षा से ही) निवृत्त ( = नाश) होता है, जैसे अन्यों के मत में विरोधी मोगरादि से प्रवाहों की निवृत्ति होती है ।' वह भी निरस्त हो जाता है । - - Jain Educationa International - - [ नाश की तरह उत्पत्ति के विकल्पों का आपादन ] शंका :ऐसा विकल्प ( ८९ - १६) में नश्वर / अनश्वर स्वभाव के विकल्प) तो वस्तुमात्र के लिये शक्य होने से, (व्यवस्थानाशक होने से ) असार है । उदा० उत्पत्ति के लिये भी देखिये- यह कह सकते हैं कि पदार्थ स्वभावतः A उत्पत्तिशील है या B अनुत्पत्तिशील ? यदि स्वभावतः उत्पत्तिशील है तो तथास्वभाव के जरिये स्वयं उत्पन्न हो जायेंगे अतः उत्पत्ति-हेतुओं की जरूर नहीं है । B यदि 25 पदार्थ स्वभावतः अनुत्पत्तिशील है तो उत्पादक हेतु बेकार हो जायेंगे क्योंकि हेतुसामग्री में ऐसी शक्ति नहीं है कि वह स्वभाव में फेरबदल कर सके । 20 उत्तर :- यह कथन अच्छा नहीं है । कारण, उत्पत्ति क्या है अन्य कोई प्रकार न होने से अभावानन्तर भाव, यह है स्वभाव जिस का वह उत्पत्तिस्वभाव कहा जाय तो सिद्धसाधन ही होगा। जिस पदार्थ का अभावानन्तरभाव हो गया स्वभावतः हो गया, वहाँ उत्पादक हेतु का कोई योगदान न होना यह 30 हमें मान्य ही है, क्योंकि स्वतः सत् है उस का निर्माण अशक्य है । सत् का भी निर्माण स्वकालीन दूसरे सत् से मानेंगे तो कार्य-कारण का सहभाव हो जायेगा जो किसी को मान्य नहीं है । यदि उत्पत्तिस्वभाव For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003803
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy