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द्वितीयः खण्ड:-का०-२ (१) कारणे कार्यधर्मारोपाद् वा अन्यव्यावृत्तवस्तुप्राप्तिहेतुतया, (२) कार्ये वा कारणधर्मोपचाराद् अन्यविविक्तिवस्तुद्वारायाततया, (३) विजातीयापोढ(?ह)पदार्थेन सहैक्येन प्रान्तैः प्रतिपत्तृभिरध्यवसितत्वाच्चेति । अर्थस्तु विजातीयव्यावृत्तत्वाद् मुख्यतस्तद्व्यपदेशभाक् ।
प्रसज्यप्रतिषेधलक्षणस्त्वपोहः [तत्त्व० सं० का० १०१०] प्रसज्यप्रतिषेधस्तु गौरगौर्न भवत्ययम् । इति विस्पष्ट एवायमन्यापोहोऽवगम्यते ॥
तत्र य एव हि शाब्दे ज्ञाने साक्षाद् भासते स एव शब्दार्थो युक्तः । न चात्र प्रसज्यप्रतिषेधावसाय: वाच्याध्यवसितस्य बुद्ध्याकारस्य शब्दजन्यत्वात् । नापीन्द्रियज्ञानवद् वस्तुस्वलक्षणप्रतिभासः, किं तर्हि ? बाह्यार्थाध्यवसायिनी केवलशाब्दी बुद्धिरुपजायते तेन तदेवार्थप्रतिबिम्बकं शाब्दे ज्ञाने साक्षात् तदात्मतया प्रतिभासनाच्छब्दार्थो युक्त इति अपोहत्रये प्रथमोऽपोहव्यपदेशमासादयति ।
“यथापि शब्दस्यार्थेन सह वाच्यवाचकभावलक्षणसम्बन्धः प्रसिद्धो नासौ कार्यकारणभावादन्योऽवशब्द का प्रयोग होता है - (१) अन्य व्यावृत्त वस्तु (स्वलक्षण गोपिण्डादि) की प्राप्ति रूप कार्य का कारण होने से, कार्यधर्म का कारण में आरोप कर के वहाँ 'अपोह' शब्द की प्रवृत्ति होती है । (२) अन्य से व्यावृत्त वस्तु के बल से अन्यव्यावृत्त विकल्पप्रतिबिम्ब का जन्म होता है इसलिये कारणधर्म का कार्य में उपचार कर के 'अपोह' शब्द सार्थक होता है । (३) भ्रान्त ज्ञाताओं के द्वारा भ्रान्ति से, विजातीयव्यावृत्त वस्तु और अर्थप्रतिबिम्बरूप अपोह दोनों के ऐक्य का भान किया जाता है इसलिये भी उस को 'अपोह' कहा जाता है ।
अर्थ तो स्वयं विजातीयव्यावृत्त ही होता है इसलिये उस में 'अपोह' शब्दप्रयोग मुख्यता से ही हो सकता
प्रसज्यप्रतिषेधरूप अपोह का तत्त्वसंग्रह कारिका में यह लक्षण है - "गौ अगौ नहीं होता - इस प्रकार स्पष्ट रूप से जिस अन्यापोह का भान होता है यही प्रसज्य प्रतिषेधरूप अपोह है ।"
___★ अर्थ प्रतिबिम्ब ही शब्दवाच्य मुख्य अपोह है ★ तीन प्रकार के अपोह में से कौन सा शब्दवाच्य है यह समीक्षा करे तो पहले इतना जान लेना होगा कि शब्दजन्य ज्ञान में जो साक्षात् प्रतीत हो उसी को शब्दार्थ मानना युक्तियुक्त कहा जायेगा । वाच्यरूप से अध्यवसित बुद्धि आकार ही शब्दजन्य प्रतीति में भासता है, प्रसज्यप्रतिषेधरूप अपोह का शाब्द बुद्धि में साक्षात् भान नहीं होता इसलिये उसको शब्दार्थ नहीं मान सकते । इन्द्रियजन्यज्ञान में तो स्वलक्षण का स्पष्ट भान होता है किन्तु शब्दजन्य बुद्धि में नहीं होता इसलिये वह भी शब्दार्थरूप नहीं है । तो फिर शब्दार्थ क्या है ? शब्द से बाह्यार्थ का अध्यवसाय करने वाली शाब्दबुद्धि ही उत्पन्न होती है, इसलिये उस शाब्द बुद्धि में बाह्यार्थरूप से जो अर्थप्रतिबिम्ब भासित होता है वही शब्दार्थ है । फलत: तीन अपोहों में प्रथम प्रकार का अपोह ही शब्दवाच्य 'अपोह' कहा जाता है।
___ शब्द के साथ अर्थ का जो वाचक-वाच्यभावरूप संबन्ध कहा जाता है वह कार्य-कारणभाव को छोड कर दूसरा कुछ नहीं । कारण, शब्द का वाच्यार्थ अर्थप्रतिबिम्बरूप है और वह शब्द से ही उत्पन्न हो कर
* - दृष्टष्य-त० सं० श्लो० १०१२ ।
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