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________________ द्वितीयः खण्डः का० - २ सर्वे समुदायशब्दा एकदेशप्रतिषेधरूपेण प्रवर्त्तमानाः समुदायिव्यतिरिक्तस्यान्यस्य समुदायस्याऽनभ्युपगमादनर्थकाः प्राप्नुवन्ति । द्वयादिशब्दानां तु समुच्चयविषयत्वादेकादिप्रतिषेधे प्रतिषिध्यमानार्थानामसमुच्चयत्वादनर्थकत्वं स्यात्" [अ० २ आ० २० सू० ६७ न्या० वा० पृ० ३२९ पं० १२-२३] वायगोsपोहोऽगौर्न भवति - इति गोशब्दस्यार्थः स किञ्चिद् भावः, अथाभावः ? भावोऽपि सन् किं गौः अथाऽगौरिति ? यदि गौः नास्ति विवादः । अथाऽगौः 'गोशब्दस्यागौरर्थः ' इत्यतिशब्दार्थकौशलम् । अथाभावः तत्र युक्तम्, प्रैष- सम्प्रतिपत्त्योरविषयत्वात् । न हि शब्दश्रवणादभावे प्रैषः प्रतिपादकेन श्रोतुरर्थे विनियोगः प्रतिपादकधर्मः सम्प्रतिपत्त (त्ति)श्व श्रोतृधर्मो भवेत् । अपि च शब्दार्थः प्रतीत्या प्रतीयते, न च गोशब्दादभावं कश्चित् प्रतिपद्यते” [ न्यायवा० पृ० ३२९ पं ५-१९] किंच, “क्रियारूपत्वादपोहस्य विषयो वक्तव्यः । तत्र 'अगौर्न भवति' इत्ययमपोहः किं गोविषयः अथाऽगोविषयः ? यदि गोविषयः कथं गोर्गव्येवाभावः ? अथाऽगोविषयः कथमन्यविषयादपोहादन्यत्र अङ्गी = अंशो से भिन्न स्वतंत्र समुदाय, मान्य न होने से समुदायवाची शब्द का अपना कुछ भी अर्थ न रहेगा निरर्थक बन जायेंगे । दो-तीन अर्थों के समुच्चय के वाचक द्वि-त्रि आदि शब्दों से भी एक दो आदि अर्थों की व्यावृत्ति मानने पर द्वि आदि शब्द अर्थशून्य बन जायेंगे, क्योंकि द्विआदि समुच्चय तो असमुच्चयात्मक एक और एक मिल कर ही होता है और उन का तो असमुच्चयरूप से द्वि आदि शब्दों के द्वारा निषेध मानते हैं । - - ★ 'गौ' शब्द से अगौप्रतिषेध असंगत ★ तदुपरांत, गो शब्द का - 'अगौ नहीं' इस प्रकार जो अगोऽपोहरूप अर्थ कहते हैं वह कुछ भावरूप है या अभावरूप ? ये प्रश्न हैं । भावरूप कहें तो गो-रूप है या अगौ- रूप ? गोरूप भावात्मक गोशब्द का अर्थ कहें तो कोई विवाद नहीं रहता । अगौ- रूप भाव को गोशब्द का अर्थ मानते हैं तो आप के शब्दार्थविषयक कौशल को बहुत ही धन्यवाद । अभावात्मक शब्दार्थ मानेंगे तो वह प्रैष और सम्प्रतिपत्ति का विषय नहीं बन सकेगा । ' वक्ता के द्वारा श्रोता का किसी प्रवृत्ति में नियोग किया जाय उस को प्रैष कहते हैं । यह विनियोजन वक्ता का धर्म है । उस नियोग का भान सम्प्रतिपत्ति है जो श्रोता का धर्म है। किंतु शब्द से अभाव प्रतिपाद्य मानने पर ये दोनों सम्भव नहीं है क्योंकि अभाव में कोई नियोगादिरूप प्रवृत्ति शक्य नहीं तो उस का भान भी कैसे होगा ? दूसरी बात यह है कि शब्दजन्य प्रतीति में भासने वाला अर्थ शब्दार्थ कहलाता है । गोशब्द से किसी भी श्रोता को अभाव रूप अर्थ की प्रतीति का अनुभव नहीं होता । ★ अपोहक्रिया के विषय पर प्रश्न ★ Jain Educationa International ७३ = तथा अपोहन निराकरण रूप क्रिया ही अपोह है इस लिये 'अपोह किस का ?' उस का विषय दिखाना चाहिये । मतलब 'अगौ नहीं होता' इस अपोहक्रिया का विषय 'गो' है या अगौ - ये प्रश्न हैं । गोपिण्ड को अगोअपोह का विषय मानने पर सहज ही तर्क ऊठेगा कि गोपिण्ड के ही प्रति गो का निषेध कैसे ? यदि अगौ को अपोह का विषय मानेंगे तो यह प्रश्न ऊठेगा कि अन्यविषयक (यानी अगोविषयक) अपोह से अन्य की (गौ की) बुद्धि कैसे होगी ? ऐसा तो कभी नहीं होता कि खदिर का छेद करने पर पलाश का भी छेद हो जाय । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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