SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सम्मति - तर्कप्रकरणम् धकारिणो वा शब्दस्य युगपद्विज्ञानद्वयलक्षणं फलमुपलभ्यते, नापि परस्परविरुद्धमपवादविधिज्ञानं फलं युक्तम् । यदि च गोशब्देनाऽगोनिवृत्तिर्मुख्यतः प्रतिपाद्यते तदा गोशब्दश्रवणानन्तरं प्रथमं 'अगौः' इत्येषा श्रोतुः प्रतिपत्तिर्भवेत् । यत्रैव ह्यव्यवधानेन शब्दात् प्रत्यय उपजायते स एव शाब्दोऽर्थः, न चाव्यवधानेनाऽगोव्यवच्छेदे मतिः । अतो गोबुद्धयनुत्पत्तिप्रसङ्गात् प्रथमतरमगोप्रतीतिप्रसङ्गाच्च नापोहः शब्दार्थः । अपि च अपोहलक्षणं सामान्यं वाच्यत्वेनाभिधीयमानं कदाचित् पर्युदासलक्षणं वाऽभिधीयते ● प्रसज्यलक्षणं वा ? तत्र प्रथमपक्षे सिद्धसाध्यता प्रतिज्ञादोषः अस्माभिरपि गोत्वाख्यं सामान्यं गोशब्दवाच्यमित्यभ्युपगम्यमानत्वात् यदेव ह्यगोनिवृत्तिलक्षणं सामान्यं गोशब्देनोच्यते भवता तदेवाSस्माभिर्भावलक्षणं सामान्यं तद्वाच्यमभिधीयते, अभावस्य भावान्तरात्मकत्वेन स्थितत्वात् । तदुक्तम् [लो० वा० अभाव परि० लो० २-३-४-८] क्षीरे दध्यादि यन्नास्ति प्रागभावः स उच्यते ॥ नास्तिता पयसो दधि प्रध्वंसाभावलक्षणम् । गवि योऽश्वाद्यभावश्च सोऽन्यान्योभाव उच्यते ॥ ३ ॥ पदार्थ की बुद्धि - दोनों बुद्धि का जन्म मान लेंगे अतः और किसी शब्द को नहीं ढूँढना पडेगा ।' तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि कोई एक शब्द या तो विधिकारक (यानी विधिरूप से पोझीटीवली अर्थज्ञानरूप फल का जनक) हो सकता है, या तो प्रतिषेधकारक । इसलिये वैसे कोई एक शब्द से एक साथ विधि प्रतिषेध उभयकारक बुद्धि की उत्पत्ति दीखाई नहीं देती । तथा एक ही शब्द से अपवाद (प्रतिषेध) ज्ञान और विधिज्ञान ऐसे दो परस्पर विरुद्ध ज्ञानरूप फल का जन्म भी संगत नहीं है । तथा, यदि 'गो' शब्द से अगो की निवृत्ति का बोध मुख्यरूप से मानेंगे तो यह शक्य नहीं है क्योंकि सब से पहले तो निवृत्ति के प्रतियोगीभूत गोभिन्न पदार्थ का बोध मानना पडेगा, क्योंकि प्रतियोगी के ज्ञान के विना अभाव का ज्ञान शक्य नहीं है । इसलिये यह मानना पडेगा कि गो शब्द के श्रवण के बाद सत्वर ही श्रोता को 'गोभिन्न' अर्थ का बोध होता है । अब यह नियम है कि शब्दश्रवण के बाद विना व्यवधान के जिस अर्थ का बोध उत्पन्न हो वही उस शब्द का अर्थ होता है । फलतः गो शब्द से सिर्फ गोभिन्न अर्थ की ही प्रतीति मानने की आपत्ति होगी और 'गो' की प्रतीति का तो उद्भव ही नहीं होगा ऐसे अनिष्ट का वारण करने के लिये यही मानना होगा कि शब्द अपोहकारक नहीं 1 ४४ Jain Educationa International - ★ पर्युदासरूप अपोह होने पर सिद्धसाधन दोष ★ तदुपरांत अपोहरूप सामान्य ही शब्द का वाच्यू है - ऐसा माननेवाले को ये दो प्रश्न हैं कि अपोह यानी अगोनिवृत्ति को आप पर्युदासरूप मानते हैं या प्रसज्यस्वरूप ? पर्युदास का अर्थ होगा अगो से भिन्न कोई वस्तु - यदि यह पहला पक्ष मानेंगे तो आपकी प्रतिज्ञा में सिद्धसाधन दोष आयेगा क्योंकि हम भी अगो से भिन्न गोत्वजातिरूप सामान्य को 'गो' शब्द का वाच्य मानते ही हैं । तात्पर्य यह है कि आप अगोनिवृत्तिरूप सामान्य को शब्द का वाच्य दिखाते हैं हम भी उसी को भावात्मक सामान्यरूप में शब्द का वाच्य दिखाते हैं, क्योंकि पर्युदासपक्ष में अभाव भावान्तर रूप ही होता है, निषेधरूप नहीं होता । श्लोकवार्त्तिक के अभावपरिच्छेद में कहा भी है कि "दूध में जो दहीं - मक्खन आदि का नास्तित्व है वही प्रागभाव कहा जाता है । दहीं आदि में जो For Personal and Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy