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________________ ३३० श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् युगपत् प्रतिभासनात् कथं नित्यतालक्षणः कालाभेदः ? अथ तद्र्व्य(? तत्राप्य)व्यतिरिक्ता क्षणान्तरस्थितिः प्रतिभासते-तत्राप्याचक्षणस्थितिरूपतया वा द्वितीया प्रतिभाति, यद्वा द्वितीयक्षणस्थितिरूपतया आयक्षणस्थितिरिति कल्पनाद्वयम् । तत्राये पक्षे प्रथमक्षणस्थितिरेव प्रतिभातीति न पूर्वापरक्षणभेदः । द्वितीयेपि विकल्पे क्षणान्तरस्थितिरेव प्रतिभातीति नायक्षणस्थितिप्रतिपत्तिर्भवेत् । अथैकक्षणस्थिति वभाति सर्वदा स्थितेरवभासनात् - नन्वेकक्षणस्थितिप्रतिपत्त्यभावे कथमनेकक्षणस्थितिसंगतरूपप्रतिपत्तिरिति क्षणिके दर्शने क्षणावस्थानमेव प्रतिभातीति तदेव सदस्तु न कालान्तरस्थितिः । ___अथापि स्यात् न क्षणिकं दर्शनम् येन तद्भेदात् तद्ग्राह्यस्यापि भेदः, किन्तु तदपि कालान्तरस्थितिमत् कालान्तरानुषक्तमर्थमवगमयति । असदेतत् - यतः स्थिरं दर्शनमनेककालतां युगपदवभासयति, आहोस्वित् क्रमेणेति ? तत्र न तावद् युगपदवभासयति । तथाहि - यदा दर्शनं घटिकाद्वयारम्भपरिगतमर्थमनुभवति न तदैव तदवभासनसम्बन्धिनम्, तदनुभवे च तस्य वर्तमानतापत्तेर्न कालान्तरता । यदि च प्रथमदर्शनमेव भाविरूपतामवगच्छति तथा सति ग्रहणविरतौ किमिति न जानाति ‘पदार्थस्तिष्ठति' इति ? न च तदा ग्रहणमुपरतमिति नावगच्छति, यतः तदर्थग्रहणमुदितमिति कथमसत् ! अथ पूर्वमुदितं तदधुना प्रच्युतमिति न गृह्णाति ननु तदा ग्रहणाभावे कथं तत्कालत्वं परिगृहीतं भवति ? है इस लिये उस के फलस्वरूप कार्यपरम्परा भी अनादि सिद्ध होगी । उस में पूर्व पूर्व हेतु और अपरापर कार्य ऐसा पौर्वापर्यभाव स्वयं सिद्ध हो जायेगा। इस प्रकार हेतु-कार्यभाव पर अवलंबित अर्थ का स्वभावविशेष ही क्रम है इस लिये अतिरिक्त काल मानने की कोई आवश्यकता नहीं रहती । यदि अतिरिक्त क्षणपरम्परा रूप काल की हस्ती मानेंगे तो उन क्षणों में पौर्वापर्यस्वरूप क्रम की संगति के लिये अन्य काल मानना होगा, उस में भी क्रम की संगति के लिये अन्य काल..... इस तरह अनवस्था चलेगी । यदि कालक्षणों का क्रम स्वत: हो सकता है तो फिर पदार्थों का क्रम स्वत: क्यों नहीं हो सकता ? निष्कर्ष, जो क्रमश: उपलब्ध होता है वह अन्य अन्य स्वभाववाला होता है इसलिये क्षण क्षण के पदार्थों में स्वभावभेद सिद्ध हो सकता है । ★ अनेकक्षणस्थिति का एक-साथ प्रतिभास अशक्य★ यदि यह कहा जाय - संवेदन भले ही क्षणिक हो लेकिन उस में जो पदार्थ भासित होते हैं वह एकसाथ ही एक कालीन भासित होते हैं - कालक्रम लक्षित ही नहीं होता इसलिये कालक्रमप्रयुक्त क्षणभेद की हस्ती ही नहीं है । - तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि नित्यवाद में नित्यत्व कालाभेदस्वरूप है और कालाभेद अनेकक्षणस्थितिरूप है, यह अनेकक्षणस्थिति एकसाथ भासित नहीं होती है । क्यों ? इस लिये कि जब एक क्षणस्थिति भासित होती है तब यदि उस से विभिन्नरूप में दूसरी क्षणस्थिति भी भासित होगी - ऐसा होने पर अलग अलग दो क्षणस्थितियों का एकसाथ प्रतिभास होने से नित्यत्वस्वरूप कालाभेद का क्या होगा ? अब यदि कहेंगे कि वहाँ भी एक-दूसरे से अव्यतिरिक्त अभिन्न ही क्षणान्तरस्थिति का प्रतिभास होता है - तो यहाँ दो विकल्पप्रभ - क्या द्वितीयक्षणस्थिति आद्यक्षणस्थितिरूप से लक्षित होती है ? या आद्यक्षणस्थिति द्वितीयक्षणस्थितिरूप में लक्षित होती है ? पहले विकल्प में सार यह निकलेगा कि आद्यक्षणस्थिति का ही प्रतिभास होता है अत: पूर्व-अपर क्षणों के अभेद का प्रतिभास उत्थित ही नहीं होगा । द्वितीय विकल्प में भी ऐसा ही होगा क्योंकि वहाँ द्वितीयक्षणस्थिति का ही प्रतिभास होगा, प्रथमक्षणस्थिति का नहीं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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