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________________ ३१८ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् एव 'अदर्शनम् अभावः' इति । अर्थक्रियाविरहोप्यभाव एव, स च परिदृश्यमानस्य 'नास्ति' इत्यदर्शनयोग्य एव विद्यते । तथा चादर्शनमेवाभावः भावाऽदर्शनस्वरूपो नाशः मुद्रादिव्यापारात् प्रागपि भावस्यास्तीति न तज्जन्यो ध्वंस इति 'अदृश्यमानोप्यस्ति' इति विरुद्धमभिहितं स्यात् । यदपि मुद्रपातानन्तरमदर्शने न पुनः केनचिद् दृश्यते घटादिः, अक्षव्यापाराभावे तु नरान्तरदर्शने प्रतिभाति तथा स्वयमप्यक्षव्यापारे पुनरुपलभ्यते, मुद्रव्यापारवेलायां तु चक्षुरुन्मीलनेऽपि न स्वयं पुरुषान्तरेण वा गृह्यत इति तदैव तस्य नाशः इति तदप्यसंगतम् - यतः पुनदर्शनं किं पूर्वदृष्टस्य उतान्यस्येति कल्पनाद्वयम् । यदि पूर्वाधिगतस्यैवोत्तरकालदर्शनम् तदा सिद्धयत्यभेदः किंतु 'तस्यैवोत्तरदर्शनम्' इत्यत्र न प्रमाणमस्ति । अथापरस्य दर्शनम् न तीभेदः । अथ यदनवरतमविच्छेदेन ग्रहणं तदेव स्थायित्वग्रहणम् । नन्वविच्छेददर्शनं नामानन्यदर्शनम् तच्चाऽसिद्धम् परस्पराऽसङ्घटितवर्त्तमानसमयहेतुक क्यों माना जाय ? ध्वंस तो उस का मोगर आदि के व्यापार के विना ही अदर्शन मात्र से सम्भवित आशंका : वर्तमान में पूर्वभाव का अदर्शन होता है, लेकिन अभाव नहीं होता, मोगर प्रहार के पश्चात् उस का सिर्फ अदर्शन ही नहीं होता अभाव भी होता है । ___ उत्तर : ऐसा नहीं है, आप अदर्शन से अभाव को अलग मानते हैं तो कहिये कि अभाव क्या होता है - ‘भाव का अस्त हो जाना' या 'अर्थक्रियाशून्य हो जाना' ? 'अस्त हो जाना' 'दर्शन न होना' और 'अभाव होना' ये तो एक ही बात है सिर्फ शब्दभेद है। 'अर्थक्रियाशून्यता' रूप जो अभाव है उस का भी यही मतलब है कि वर्तमान में दिखाई देनेवाले भाव में पूर्वकालीन अर्थक्रिया नहीं है अथवा वह अब दर्शनयोग्य नहीं है यानी अदर्शनयोग्य है । इसका भी मतलब यही हुआ कि अदर्शन ही अभाव है । ऐसा 'भाव का अदर्शन' स्वरूप जो नाश है वह तो मोगरप्रहार के पहले भी विद्यमान है इस से ही फलित होता है कि मोगरप्रहार नाशहेतु नहीं है । और जो कहा कि 'अदर्शन है किन्तु अभाव नहीं है' यह भी ठीक नहीं, क्योंकि 'दिखता नहीं फिर भी मौजूद है' ऐसा कहने में विरोध स्पष्ट है । ★ मुद्रघातादिकाल में ही नाश का अभ्युपगम अप्रामाणिक* आशंका :- अदर्शन और अभाव भित्र भिन्न हैं । मोगर प्रहार के पश्चात् घट किसी को भी नहीं दिखाई देता, जब कि अपनी दृष्टि घट के ऊपर से विंच लेने के बाद भी अन्य पुरुष को उसका दर्शन होता है तथा अपनी दृष्टि पुन: वहाँ ले जाने पर अपने को भी फिर से उसका दर्शन होता है । मोगरप्रहार हो गया तब तो दृष्टि वहाँ डालने पर भी अपने को या दूसरे किसी को उस का दर्शन नहीं होता । इस से फलित होता है कि सिर्फ अदर्शन अभाव नहीं है किन्तु मोगर-प्रहार काल में होनेवाला नाश अभाव है । उत्तर :- यह विधान असंगत है । कारण, यहाँ दो विकल्प प्रश्न हैं कि जो पुन: दृष्टि डालने पर दिखता है वह पूर्व दृष्ट ही है या अन्य है ? हाँ, यदि पूर्व में देखा था उसी को फिर से देखते हो, तब तो अभेद सिद्ध हो सकता है, किन्तु इस बात में कोई प्रमाण नहीं है कि पूर्व में देखा था उसका ही फिर से दर्शन होता है । यदि पूर्व का दर्शन न हो कर दूसरे का ही दर्शन होता है तब तो अभेदसिद्धि निरवकाश है ।। "जो निरन्तर अविच्छेदरूप से यानी बीच में कहीं दृष्टि हठाये बिना एक चीज दिखती है यही तो स्थायित्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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