SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् दानस्यैवाभावात् कुतस्तद्भेदात् कार्यभेदः ? एवमपि यदि क्षणस्यैकत्रोपादानभाव एवान्यत्र सहकारिभाव इति न शक्तिभेदस्तर्हि अक्षणिकस्याप्यैकदैककार्यकारित्वमेवान्यदान्यकार्यकारित्वमिति क्रमेणानेककार्यकारिणो न स्यात् शक्तिभेदः । २०८ न च ‘पूर्वापरकार्यकारित्वयोरभेदादुत्तरकार्यकारित्वस्य प्रागेव सम्भवात् तदैवोत्तरकार्योत्पत्तिः स्यात्' इति वक्तव्यम् क्षणिकत्वेऽप्यस्य समानत्वात् । तथाहि कारणसत्ताकाले तदनन्तरभाविकार्यकारित्वस्य सद्भावात् तदैव कार्योत्पतिः स्यादिति कार्यकारणयोरेककालताप्रसक्तिः । न चोपादानभेदादेव कार्यस्य हेतु में साध्य का अव्यभिचार भी सिद्ध हो जाता है अतः अंशत: अनपेक्षत्व असिद्ध नहीं' तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि इस ढंग से तो अक्षणिकवादी भी कृतकत्व को अक्षणिकसाध्य का अव्यभिचारी सिद्ध कर सकेगा । वह भी कह सकेगा - क्षणिकपक्ष में 'क्रमशः या एक साथ', दोनों विकल्प में अर्थक्रियाकारित्व का विरोध है [ फलत: विपक्षभूत क्षणिक में अर्थक्रियाकारित्वरूप व्यापक की अनुपलब्धि से कृतकत्व हेतु की व्यावृत्ति सिद्ध होने पर अक्षणिकसाध्य के साथ कृतकत्व का अव्यभिचार सिद्ध हो जायेगा ।] क्षणिक में 'क्रमशः या एक साथ' अर्थक्रिया का विरोध कैसे है यह भी अक्षणिकवादी विस्तृत चर्चा से दिखायेगा । ★ क्षणिक पदार्थ में अर्थक्रिया विरोधनिर्देशन ★ देखिये सामग्री के विना किसी एक से कोई कार्य नहीं होता एवं एक ही कारण, एक सामग्री का अंग बन कर ( उपादान - निमित्त भेद से) एक साथ अनेक कार्य उत्पन्न करता है यह बौद्ध मानता है । अब यहाँ एककारणजन्य कार्यभेद कारणगत स्वभावभेद के विना कैसे शक्य बनेगा ? और स्वभावभेद मानेंगे तो एक कारण के अनेक भेद प्रसक्त होने की विपदा है, इस प्रकार एक क्षणिक पदार्थ एकसाथ अपने अनेक कार्यों को उत्पन्न कर दे यह तो नहीं बन सकता । कारणभेद, स्वभावभेद या शक्तिभेद के बिना भी जो उपादानभेद से कार्यभेद के चाहक हैं उन्हें शक्तिभेद को भी चाहना होगा - स्वीकारना होगा, क्योंकि एक ही क्षणिक वस्तु अनेक कार्योत्पादन में उपादानस्वभाव एवं सहकारिस्वभाव से उपयोगी बनती है - ऐसा मानते हैं, तो यहाँ उपादानशक्ति और सहकारिशक्ति के भेद से ही कार्यभेद घटा सकेंगे, अन्यथा स्वभावभेद से एक क्षण में भी क्षणभेद प्रसक्त होगा । - यदि कहें कि एक ही कारणक्षण का स्वसन्तान में उत्तरवर्त्ती क्षण के प्रति जो उपादानस्वभाव है वही अन्यसन्तान के उत्तरक्षण के प्रति सहकारिस्वभावरूप है इस लिये न तो शक्तिभेद स्वीकारेंगे न तो स्वभावभेदप्रयुक्त क्षणभेद होगा । तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर उपादान - सहकारिस्वभाव में सर्वथा अभेद होने पर दो में से एक रहेगा या तो उपादान रहेगा या सहकारी, क्योंकि सर्वथा अभिन्न में दो अलग अलग भाव नहीं रह सकते । अब यदि सिर्फ उपादान ही मानेंगे तो दूसरों के प्रति सहकारिभाव के बदले, सर्व कार्यों के प्रति उपादानभाव प्रसक्त होने से, उपादानभेद से कार्यभेद की मान्यता डूब जायेगी । यदि अकेले सहकारिभाव को मानेंगे तो उपादानभाव नहीं रहेगा, तब भी उपादानभेद से कार्यभेद की बात डूब जायेगी । इस अनिष्ट की उपेक्षा कर के भी शक्तिभेद को टालने के लिये एक ही क्षणमें एक के प्रति उपादानभाव और दूसरे कार्य के प्रति सहकारिभाव मानने का आग्रह नहीं छूटता, तो अक्षणिकवादी भी कहेगा कि हमारे पक्ष में भी शक्तिभेद नहीं मानेंगे, क्योंकि अक्षणिक वस्तु में, पूर्वकाल में जो एककार्यकारित्व है वही उत्तर काल में अन्यकार्यकारित्वरूप होता है, स्वभावभेद न होने से क्षणभेद को अवकाश नहीं होगा । Jain Educationa International - For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy