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________________ द्वितीयः खण्डः-का०-२ २०७ भागाऽसिद्धं चानपेक्षत्वम् क्षणिकस्वभावापेक्षया कृतकानामपि केषाञ्चिदुभयात्मकत्वेन क्षणिकस्वभावाभावात् । 'विपक्षाद् व्यापकानुपलब्धावृत्तस्य हेतोरभीष्ट एव साध्याऽव्यभिचार' इति चेत् ? अक्षणिकवादिनोऽक्षणिकाऽव्यभिचारः किमेवं न स्यात् ? तेनापि शक्यमेवमभिधातुम् - क्रम-योगपद्याभ्यां क्षणिकेऽर्थक्रियाविरोधः ।। तथाहि - एकसामग्यन्तर्गतयुगपदनेककार्यकारिण एकस्य स्वभावभेदमन्तरेण कार्यस्य भेदाऽयोगात् स्वभावभेदे चाऽनेकत्वप्रसंगानैकस्य युगपदनेककार्यकारित्वम् । कारणस्वभावशक्तिभेदमन्तरेणापि कायस्योपादानभेदाद् भेदमिच्छता शक्तिभेदोऽभ्युपगत एव उपादान-सहकारिभावेनानेककार्यजन्मन्येकस्य वस्तुक्षणस्योपयोगाभ्युपगमात् उपादानसहकारिभावयोश्च परस्परं भेदात् । न चैकत्रोपादानभाव एवान्यत्र सहकारिभावः कारणक्षणस्य; तथाऽभ्युपगमे सहकार्युपादानभावयोरभेदात् तत्कारणं सहकारि उपादानं वा यतः प्रसज्येत ? यद्युपादानं न तर्युपादानभेदात् कार्यभेदः सर्वं प्रत्युपादानत्वात्, सहकारित्वे चोपासकता । अत: यह फलित होता है कि कार्यात्मक पदार्थमात्र अपने स्वभाव से ही क्षणिक = क्षणविनाशी है, उसे और किसी हेतु की अपेक्षा नहीं है यह सिद्ध होता है । जब अनपेक्षत्व सिद्ध हुआ तो अब कृतकत्व क्षणिकत्व का व्यभिचारी (परित्यागी) न होने से उन दोनों का अविनाभाव भी सिद्ध हो जाता है । स्याद्वादी : इतनी झंझट क्यों ? दीर्घ परम्परा से द्राविड प्राणायाम कर के अविनाभाव की सिद्धि करने के बदले व्यापकानुपलब्धि से ही उस की सिद्धि होने दो। कारण, आप के मतानुसार क्षणिक-अक्षणिक इन दोनों से अतिरिक्त कोई वस्तु प्रकार सम्भव नहीं हैं, अक्षणिक खपुष्पादि में कृतकत्व नहीं रहता है - उस का कारण क्या ? क्षणिकत्वरूप व्यापक की अक्षणिक में अनुपलब्धि होने से ही कृतकत्व अक्षणिक में से व्यावृत्त होता है - यह फलित होता है । और अक्षणिक से व्यावृत्त होने वाला कृतकत्वरूप सत्त्व यदि क्षणिक में नहीं रहेगा तो कहाँ जायेगा ? सद्भूत वस्तुधर्म कृतकत्व को रहने के लिये तीसरा तो कोई आप के मतानुसार स्थान नहीं है। बौद्धवादी : चलो ! बहुत अच्छा हुआ, ऐसा ही मान लेंगे। स्याद्वादी : वह भी हमारे सामने नहीं बन सकेगा, क्योंकि हमारे मत में तो 'क्षणिकाऽक्षणिक' या 'नित्याऽनित्य' ऐसा तृतीय प्रकार सम्भव है अत: अविनाभाव साधक व्यापकानुपलब्धि ही प्रसिद्ध नहीं हो सकेगी क्योंकि हम कहेंगे कि - क्षणिकत्व न होने के कारण नहीं किन्तु नित्यानित्यत्व न होने से ही कृतकत्व अक्षणिक खपुष्पादि में नहीं रहता । तब कृतकत्व की क्षणिकत्व के साथ व्याप्ति कैसे सिद्ध होगी ? ★ अनपेक्षत्व हेतु में भागासिद्धि प्रदर्शन ★ उपरांत, क्षणिकस्वभाव की अपेक्षामात्र से भाव के विनाश में जो अन्यहेतुअनपेक्षत्व दिखाया है वह भी अंशत: असिद्ध है । कारण, कृतक भाव कुछ क्षणिक होते हैं वहाँ भले अनपेक्षत्व हो किन्तु कुछ कृतक भाव उभय क्षणिकाक्षणिक स्वभाव भी होते हैं अत: ऐसे भावों के विनाश में, क्षणिकस्वभाव का अभाव होने से विनाश के लिये अन्य हेतु अपेक्षा अनिवार्य है । यदि यह कहा जाय - ‘अक्षणिक विपक्ष से अर्थक्रियाकारित्वरूप व्यापक की अनुपलब्धि से, कृतकत्व हेतु की भी व्यावृत्ति सिद्ध हो जाती है और विपक्षव्यावृत्ति सिद्ध होने पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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