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________________ द्वितीयः खण्डः - का० - २ २०१ अथ विनाशित्वेनोपलब्धानां प्रतिक्षणं विनाशभावे विनाशप्रतीतिरेव न स्यात्, द्वितीयेऽपि क्षणे भावस्य स्थितौ सर्वदा स्थितिप्रसंगात् । द्विक्षणावस्थायित्वे हि द्वितीयेऽपि क्षणे क्षणद्वयस्थितिस्वभावत्वात् - अतत्स्वभावत्वे स्वभावभेदेन क्षणिकत्वप्रसङ्गात् - तृतीयेऽपि क्षणेऽवस्थानं स्यात् तदाऽपि तत्स्वभावत्वात् चतुर्थेऽपि । एवमुत्तरेष्वपि क्षणेष्ववस्थानादासंसारं भावस्य स्थितेरविनाशाद् विनाशप्रतीतिर्न स्यात् । भवति च विनाशप्रतीतिः अतः तत्प्रतीत्यन्यथाऽनुपपत्त्या प्रतिक्षणविनाशानुमानं दृश्यात्मकस्य कार्यस्य, अदृश्यात्मनोऽप्याद्ये क्षणे य: स्वभाव: 'प्रागभूत्वा भवनलक्षणः ' स एव चेत् द्वितीयेऽपि क्षणे प्रागभूत्वा भावस्य भावात् क्षणिकत्वम् । अथ प्रथमे क्षणे जन्मैव न स्थितिः, द्वितीये क्षणे स्थितिरेव ★ प्रतिक्षणविनाशसाधक बौद्ध युक्ति ★ बौद्धवादी : ' जन्यमात्र विनाशी है' यह तो आप सब मानते हैं, विनाशी भावों का प्रतिक्षण विनाश यदि नहीं मानेंगे तो कभी विनाश की प्रतीति ही नहीं होगी । मतलब ऐसा है कि द्वितीयक्षण में जो भाव स्थिर रहेगा वह सर्वदा स्थिर ही रहेगा । कारण यह है कि भाव का स्वभाव सिर्फ द्विक्षणस्थायित्व भी माना जाय तो प्रश्न यह होगा कि द्वितीयक्षण में वह स्वभाव रहेगा या नहीं ? यदि नहीं रहेगा, तब तो स्वभावभेद प्रसक्त होने पर अनायास क्षणिकत्व सिद्ध हो जायेगा; अतः द्वितीयक्षण में भी वही द्विक्षणस्थायित्वस्वभाव मानना होगा, उस के फलस्वरूप तृतीयक्षण [जो कि द्वितीयक्षण को प्रथम मानने पर द्वितीय ही है] उस में भी भाव विनष्ट नहीं होगा क्योंकि उस की पूर्वक्षण में भाव का द्विक्षणस्थायित्व स्वभाव था । तृतीय क्षण में भी वही स्वभाव रहेगा तो चतुर्थक्षण में भी वह द्विक्षणस्थायित्व स्वभावयुक्त होने से नष्ट नहीं होगा..... एवं भावी अनन्त क्षणो में यावत् संसार पर्यन्त उस की स्थिति ही बनी रहेगी, विनाश कभी होगा ही नहीं, तो विनाश की प्रतीति होगी ही नहीं । किंतु विनाश तो प्रतीत होता है । यह विनाश की प्रतीति की संगति एकाधिकक्षणस्थायित्व मानने पर नहीं होती है, क्षणिकत्व मानने पर ही हो सकती है इस लिये समग्र दृश्य कार्यों में प्रतिक्षण विनाश का अनुमान हो जायेगा । अदृश्य कार्यों में यद्यपि विनाश भी अदृश्य रहता है इस लिये उपरोक्त अनुमान से तो वहाँ क्षणिकत्व सिद्ध नहीं होगा किन्तु उन के लिये दूसरा तर्क यह है कि अदृश्य पदार्थ जिस क्षण में उत्पन्न होगा उस प्रथमक्षण में 'पूर्वक्षण में न रहते हुए ( इस क्षण में होना) ऐसा उत्पत्ति स्वभाव तो मानना ही पडेगा, अन्यथा पूर्वक्षण में भी उस की सत्ता प्रसक्त होगी । यदि यह स्वभाव दूसरे क्षण में नहीं रहेगा तो अनायास क्षणिकत्व सिद्ध हो जायेगा । यदि यह स्वभाव रहेगा तो उस के स्वभाव में 'पूर्वक्षण में न रहना' यह भी शामिल होने से सिद्ध होगा कि द्वितीय क्षण का भाव पूर्वक्षण में नहीं था, अर्थात् प्रथमक्षण के भाव से द्वितीयक्षण का भाव भिन्न हो गया तो क्षणिकत्व सिद्ध ही है । यदि कहें कि 'प्रथम क्षण में तो भाव का सिर्फ जन्म होता है स्थिति नहीं होती क्योंकि जन्म के विना स्थिति कैसे आयेगी ? अब यदि दूसरे क्षण में भाव नष्ट हो जायेगा तो उस की स्थिति कब मानेंगे ? अतः दूसरे क्षण में जन्म नहीं किन्तु स्थिति होगी । क्षणिकत्व तो न हुआ ।'ठीक है लेकिन जन्म और जन्मवान तथा स्थिति और स्थितिमान् में तो भेद नहीं है न । तब जन्मस्वभाव और स्थितिस्वभाव दोनों व्यतिरिक्त होने से प्रतिक्षण अनवस्थायिता यानी विनाश सिद्ध हो गया । उपरांत भावों को यदि आप भिन्न भिन्न काल सम्बन्धि मानेंगे तो प्रत्येकक्षण व्यतिरिक्त होने से तत्तत् क्षण के भावों में भी Jain Educationa International - For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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