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________________ २०० श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् अथ 'निर्हेतुकत्वाद् विनाशस्य विनाशस्वभावनियतो भावः तद्भावे भावस्यान्यानपेक्षणात् अन्त्यकारणसामग्रीविशेषवत् स्वकार्योत्पादने' इत्यादिसाधनसद्भावात् कतं नाऽविनाभावः प्रकृतसाध्य-साधनयोः ? असदेतत् तयोरविनाभावसाधनम्, अनैकान्तिकत्वात् । तथाहि - अनपेक्षाणामपि शाल्यंकुरोत्पादने यवबीजादीनां तदुत्पादनसामग्रीसन्निधानावस्थायां तद्भावनियमाभावात् ॥ अथ यवबीजादीनां तत्स्वभावाभावात् तत्स्वभावापेक्षयानपेक्षत्वमसिद्धम् तर्हि विनाशस्वभावापेक्षत्वात् कृतकानामपि केषाश्चित् तस्वभावाभावादनपेक्षत्वमसिद्धं स्यात् । अथ हेतुस्वभावभेदाभावात् सर्वसामग्रीप्रभवाणां विनाशसिद्धेस्तदनपेक्षत्वान्नानपेक्षत्वमसिद्धम् । ननु विचित्रशक्तयो हि सामग्यो दृश्यन्ते, तत्र काचित् स्यादपि सामग्री या ऽनश्वरात्मानं जनयेत् शृंगादिकेव शरादिकम् । यथा कथंचित् आप के पक्ष में कृतकत्व-अनित्यत्व में (साध्य-साधन) भेद की उपपत्ति कर ली जाय तो भी वास्तव में उन में साध्य-साधनता की उपपत्ति तो शक्य ही नहीं है क्योंकि कृतकत्व में अनित्यत्व के अविनाभाव का साधक कोई प्रमाण बौद्ध पक्ष में मौजूद नहीं। ★ विनाशस्वभावनियतत्व की सिद्धि अशक्य ★ यदि यह कहा जाय - “अनित्यत्व-कृतकत्व में अविनाभाव क्यों नहीं है ? देखिये - (उदा०) चरम कारणसामग्री अपने कार्य को त्वरित (अनन्तर क्षण में) उत्पन्न करने में ऐसी विशिष्ट होती है कि दूसरे की वहाँ अपेक्षा नहीं करनी पड़ती, जिस से कि अपेक्षणीय की विलम्बोपस्थिति से कार्योत्पत्ति में विलम्ब हो । ठीक ऐसे ही प्रत्येक पदार्थों का ऐसा विशिष्ट विनाशस्वभाव होता है कि विनाश में अन्य कोई हेतु ही नहीं होता, जिस से अन्य की अपेक्षा नहीं करनी पडती । अत एव अपेक्षणीय की विलम्बोपस्थिति में विनाश में विलम्ब की सम्भावना भी रद्द हो जाती है । अर्थात् पदार्थमात्र निरपेक्षविनाशस्वभाववाला ही उत्पन्न होता है अत: दूसरी क्षण में विनाष्ट हो जाता है। इस तरह भाव मात्र के साथ अनित्यता का अविनाभाव अनायास सिद्ध है।" - यह गलत बात है क्योंकि यहाँ यह प्रश्न है कि यदि यवबीज चरम सामग्री की संनिधान अवस्था में कार्योत्पादन में निरपेक्ष होता है तो शालि-अंकूर को क्यों उत्पन्न नहीं करता ? इस से यह फलित होता है चरमसामग्री में भी कार्याविनाभाव का नियम नहीं है। यदि कहें कि- यवबीजों में शालि अंकूर के उत्पादन के लिये तदुत्पादक स्वभाव भी होना चाहिये किन्तु यह नहीं है, इसलिये शालिअंकुर उत्पादक स्वभाव की अपेक्षा करने वाला होने से वहाँ वह निरपेक्ष ही नहीं है। - 'अहो ! तब तो भाव मात्र को विनाश के लिये विनाशस्वभाव की भी अत्यन्त अपेक्षा होती है, इस स्थिति में कुछ ऐसे भी कृतक हो सकते हैं जिन में द्वितीयक्षण में विनाश होने का स्वभाव नहीं होता तो उसका कभी विनाश नहीं होता चाहे उसको मिटा देने के लिये कितनी भी कोशिश की जाय । इस प्रकार हेतुभूत विनाशस्वभाव में कोई भेद किसी भी पदार्थ में न होने से, अन्य हेतु की अपेक्षा के अभाव में निरपेक्षता सिद्ध होती है' - तो यह भी गलत है। क्योंकि विनाश स्वभाव में भेद नहीं है यह बात कैसे मानी जाय ? सामग्रीजन्यत्व विनाशस्वभावप्रयोजक नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह दिखाई देता है कि भिन्न भिन्न प्रकार के कार्यों की सामग्री विचित्र यानी भिन्न भिन्न शक्तिधारी होती है। तो कोई ऐसी भी विचित्र सामग्री क्यों नहीं हो सकती जो कि अनश्वरस्वभाववाले पदार्थ को उत्पन्न करे ? जैसे शर (=बाण) की सामग्री गोशंग आदि ऐसी दृढ शक्तिशाली होती है कि उस से उत्पन्न बाण वर्षों तक विनष्ट नहीं होता । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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