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श्री सम्मति - तर्कप्रकरणम्
तत्स्वभावसिद्धेस्तत्सिद्धिः । नन्वेवमादौ स्थितिदर्शनादन्तेऽपि स्थास्नुतासिद्धेर्विपर्ययसिद्धिप्रसंग: । अथान्ते स्थैर्यानुपलब्धेर्न विपर्ययसिद्धिः, आदौ क्षणक्षयानुपलक्षणात् क्षणक्षयसिद्धिरपि न स्यात् । ' सदृशापरापरोत्पत्तिविप्रलम्भात् क्षणक्षयस्यादावनुपलक्षणम्' इति चेत् ? स्यादेतद् यदि कुतश्चित् क्षणिकत्वं सिद्धं स्यात्, तच्चासिद्धम् तत्र साधक हेत्वभावात् । ' कृतकत्वात् तत्सिद्धि' रिति चेत् ? न साध्यसा - धनधर्मभेदा(त्?)सिद्धौ ततस्तत्सिद्धेरयोगात्, योगे वा स्वात्मनोप्यात्मना सिद्धिः स्यात् ।
न च व्यावृत्तिभेदात् कृतकत्वाऽनित्यत्वयोर्भेदः, यतस्तद्भेदः स्वतो वा, व्यवच्छेद्याद् वा, आरोपाद् वा, बुद्धिप्रतिभासभेदाद् वा भवेत् ?
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"न तावत् स्वतः, स्वतो भेदे भेदस्य वस्तुत्वम्, वस्तुत्वे च कथं न वस्तुत्वपक्षभावी दोष: ? वस्तुनश्वानेकान्तात्मनो भेदाभेदात्मकतया सिद्धेः सिद्धो नः सिद्धान्तः ।
पं०] व्यक्त कर के, हिमालयादि, कोई एक चीज नहीं है किन्तु क्षणिकपरमाणुपुञ्ज सन्तानस्वरूप होने से उस में संकेत का निषेध दिखाया था - वह भी अयुक्त ठहरता है क्योकि वस्तुमात्र अन्तर्गत हिमालयादि भी समान असमानरूपद्वय संवलित एक परिणति स्वरूप है यह बात सिद्ध हो चुकी है।
• एकान्त क्षणिकत्व युक्तिसंगत नहीं है ★
यह जो आपने कहा था - 'स्वलक्षण उत्पन्न होते ही दूसरे क्षण में नष्ट हो जाता है, उस की उत्पन्न या अनुत्पन्न किसी भी दशा में संकेतक्रिया का सम्भव नहीं ।' [पृ० १७६ पं० १९ ] यह भी असंगत है। कारण, पदार्थों के बारे में एकान्त के तौर पर ' उत्पन्न होते ही दूसरे क्षण में नष्ट होने की बात असिद्ध है । यदि ऐसा कहें कि आखिर तो किसी एक क्षण में घटादि का नाश दिखाई ही देता है अतः पूर्व-पूर्व क्षणों में भी नाशस्वभावता सिद्ध होने से, उत्पत्ति के दूसरे क्षण में भी नाश सिद्ध होता है ।' - अरे ! तब प्रथम क्षण में स्थिति के दिखाई देने से उत्तरोत्तर क्षणों में स्थितिस्वभाव सिद्ध होने पर स्थैर्य सिद्ध हो जायेगा तो आपका मत उलटा हो जायेगा । यदि कहें कि - 'आखरी क्षण में स्थैर्य का उपलम्भ न होने से हमारा मत उलटा नहीं होगा ।'- तो फिर पूर्वावस्था में नाश न दिखाई देने से क्षणभंगुरता भी कैसे सिद्ध होगी ? । यदि ऐसा आकूत हो कि - 'प्रत्येक क्षणों में नये नये तुल्य पदार्थ की उत्पत्ति का सीलसीला जारी रहने से, पूर्वावस्था में भले क्षणभंगुरता दृष्टिगोचर न होती हो, किन्तु वह होती है ।'- जब क्षणिकता दिखाई नहीं देती, तब किसी अन्य प्रमाण से उसकी सिद्धि कर दो तो वह आकूत ठीक है किन्तु जब क्षणिकता का साधक कोई हेतु ही नहीं है तब कैसे वह ठीक कहा जाय ? ' हेतु क्यों नहीं है ? कृतकत्व हेतु से हम अनित्यत्व सिद्ध करेंगे' - नहीं, अनित्यत्व साध्य और कृतकत्व हेतु इन दोनों के बीच जब तक कुछ भेद सिद्ध न हो तब तक साध्य हेतु एक हो जाने से अनित्यत्व की सिद्धि शक्य नहीं । यदि कृतकत्व और अनित्यत्व एक होने पर भी (सिर्फ नाम का फर्क है फिर भी ) कृतकत्व हेतु से अनित्यत्व की सिद्धि होना मानेंगे तब तो नाम फर्क कर देने से एक ही स्थिरता से नित्यता की अपने आप ही सिद्धि हो जायेगी ।
★ व्यावृत्तिभेद पर चार विकल्प ★
यदि ऐसा कहें कि - अकृतकव्यावृत्ति और अनित्यव्यावृत्ति में भेद होने से कृतकत्व और अनित्यत्व में भेद सिद्ध होगा – तो यहाँ चार विकल्प प्रश्न हैं- ^ उन व्यावृत्तियों का भेद स्वत: है ? या व्यवच्छेद्यप्रयुक्त
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