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________________ १८४ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् पपत्तेः । तत्र न तावदेकविषयत्वं तयोः सम्भवति, विकल्प (स्य) पूर्वानन्तरप्रत्ययाऽग्राह्यतत्समानकालवस्तुविषयत्वात् । अन्यतरस्यान्यतरेण विषयीकरणमपि समानकालभाविनोरपारतन्त्र्यादनुपपन्नम् । अविषयीकृतस्यान्यस्यान्यत्राध्यारोपोऽप्यसम्भवी । ' तदनन्तरभावि ज्ञानं तौ विषयीकृत्यापरमन्यत्राध्यारोपयती'त्यपि वक्तुमशक्यम्, तयोर्विवेकेनोपलम्भप्रसंगात् । तथा च नाध्यारोपादप्येकत्वाध्यवसायः । किंच, यद्यविकल्पकं विकल्पेऽध्यारोप्य विकल्पकमविकल्पतयाऽध्यवसीयते तदा समानाकारस्य विकल्पविषयतयाऽभ्युपगतस्य न तत्र तद्रूपतयाऽध्यवसायः स्यात् विकल्पावभासस्य तद्विषयत्वेन व्यवस्थितस्य विकल्पस्वरूपवद् विकल्परूपतयाऽध्यवसितत्वात् । अथ विकल्पमविकल्पेऽध्यारोप्याऽविकल्पो विकल्परूपतयाऽध्यवसीयते तदा सुतरामस्पष्टप्रतिभास एव स्यात्, लघुवृत्तेरपि क्रमभाविनोर्विकल्पाऽविकल्पयोर्न उत्पत्ति जब होती है तब उन दोनों में ऐक्य यानी अभेद के अध्यवसाय होने से निर्विकल्प की स्पष्टावभासिता सविकल्प में लक्षित होती है । B - वादी कहता है कि प्रतिवादी की यह बात असत्य है क्योंकि यहाँ एक भी विकल्प खरा नहीं उतरता । दोनों के ऐक्य का अध्यवसाय यानी क्या A एकविषयता अथवा एक-दूसरे के ग्राह्य को विषय करना, किंवा अन्य में अन्य का अध्यारोप होना ? सविकल्प - निर्विकल्प का ऐक्याध्यवसाय यानी उन दोनों का विषय एक होना - यह सम्भवित नहीं है क्योंकि विकल्प का विषय अपने समानकालीन वस्तु होती है जो पूर्वप्रतीति या उत्तरकालीनप्रतीति का ग्राह्य नहीं होती । दूसरा विकल्प एक दूसरे के ग्राह्य को विषय करना यह भी संभवित नहीं है क्योंकि जो एककालोत्पन्न होते हैं उन में कार्य कारणभाव न होने से एक-दूसरे का पारतन्त्र्य नहीं होता है जिससे कि एक के विषय को दूसरा उद्भासित करने को बाध्य हो । जब एक दूसरे के ग्राह्य को विषय करने की बात घट नहीं सकती तब 'एक ज्ञान का अन्य ज्ञान में अध्यारोप' यह तीसरा विकल्प अधिक निरवकाश हो जाता है क्योंकि अध्यारोप तद्विषयत्व के ऊपर अवलम्बित है । यदि ऐसा कहें कि 'उन दोनों के बाद एक ऐसा ज्ञान होगा जो उन दोनों को विषय कर के एक में दूसरे को अध्यारोपित करेंगा' तो यह सम्भवित नहीं है, क्योंकि वे दोनों ज्ञान विविक्त यानी अलग अलग होने से, उत्तरकालभावि ज्ञान से उस का ग्रहण भी अलग अलग ही होगा । निष्कर्ष, अध्यारोपप्रयुक्त एकत्वाध्यवसाय की बात सम्भवित नहीं । ★ विकल्प - अविकल्प में एक-दूसरे का अध्यारोप दुर्घट★ - यह भी सोचना होगा कि अध्यारोप, विकल्प में अविकल्प का मानेंगे या अविकल्प में विकल्प का मानेंगे ? यदि ऐसा कहें कि 'विकल्प में अविकल्प के अध्यारोप के जरिये विकल्प विकल्परूप से अध्यवसित न हो कर अविकल्प रूप से अध्यवसित होता है - यही एकत्वाध्यवसाय है ।' . तो यहाँ समानाकार में विकल्पविषयता स्वीकृत होते हुए भी उसका अविकल्पाध्यवसाय में समानाकार से भान नहीं होगा । कारण, समानाकार विकल्प के विषयरूप में सुनिश्चित होते हुये भी, अविकल्परूप से अध्यवसित ज्ञान में जैसे विकल्प का स्वरूप भासित नहीं होता है वैसे वह समानाकार भी भासित नहीं हो सकेगा । दूसरा विकल्प - यदि अविकल्प में विकल्प के अध्यारोप के जरिये, अविकल्प का विकल्परूप में अध्यवसाय यही एकत्वाध्यवसाय है ऐसा मानेंगे तो विकल्पाध्यारोप के कारण अत्यन्त अस्पष्टावभास होगा जब कि आप तो स्पष्ट अवभास के लिये यहाँ कोशिश कर रहे हैं । यदि ऐसा कहें कि 'अविकल्प के बाद विकल्प उत्पन्न होता है, किन्तु इतना शीघ्र उत्पन्न होता है कि वहाँ Jain Educationa International - - For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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