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________________ १६४ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् रूपतया प्रत्यक्ष प्रतिभासनात् । न च सामान्यविशेषयोराकारनानात्वेऽप्यनानात्वेऽन्यत्राप्यन्यतोऽन्यस्याऽ. न्यत्वं न स्यात् इति वक्तुं युक्तम्, सामान्य-विशेषवत् तादात्म्येनान्यत्र प्रत्यक्षतोऽग्रहणात् ग्रहणे वा भवत्येवाकारनानात्वेऽपि नानात्वाभावः । न चाकारनानात्वेऽपि सामान्यविशेषयोरमेदातिपत्तिर्मिण्या, बाधकाभावात् । न च 'स्वभावभेदात् सामान्यविशेषयोर्घट-पटादिवद् भेद एव' इत्यनुमानं नायकं प्रत्यक्षस्य, प्रत्यक्षेण बाधितत्वादत्रानुमानाप्रवृत्तेः । अथानुमानविषये न प्रमाणान्तरवाधा । नन्वेवं ध्वनेरभावणत्वेऽपि साध्ये सत्त्वादेर्ययोक्कलक्षणतया प्रमाणान्तराऽवाधितत्वेन प्रतिपत्तिः स्यात्, सपक्षे घटादौ सत्त्वाऽभावणलयोस्तादात्म्यस्याध्यक्षेणाधिगमात् । दोनों का एक ही व्यक्ति मे अवबोध होता है, यही तो भेदाभेद का ग्रहण है । इस स्थिति में न तो विरोध को अवकाश है न तो पूर्वोक्तस्वरूप (जिस आकार से भेद है उस आकार से भी यदि अन्याकार प्रयुक्त भेदाभेद होने पर) अनवस्थादि दूषण को स्थान है। अन्धकार-प्रकाश की तरह भेदाभेद में 'एक-दूसरे को छोड कर रहना' ऐसा भी नहीं है, क्योंकि सामानाधिकरण्यग्राही प्रत्यक्ष से ही यह देखा गया है कि भेद और अभेद एकदूसरे के व्यवच्छेदकारी नहीं है । यदि कहें - 'सामान्याकार और विशेषाकार में स्पष्ट ही स्वरूपभेद है, अत: वस्तु यदि सामान्याकार होगी तो विशेषाकार नहीं होगी एवं उस से उल्टा भी । ऐसी स्थिति में भी यदि आप दोनों को वस्तु से अभिन्न ही मानेंगे, तब तो दूसरी जगह भी एक वस्तु (घट) का अन्य (वस) वस्तु से अन्यत्व नहीं मान सकेंगे भले ही वहाँ दोनों के स्वरूप भिन्न भिन्न हो।' - तो यह बोलने की जरूर नहीं है । कारण, प्रस्तुत में, एक वस्तु में सामान्य-विशेष उभय का तादात्म्य जैसे प्रत्यक्ष से गृहीत होता है वैसे दूसरी जगह घट और पट का तादात्म्य प्रत्यक्ष से गृहीत नहीं होता है । अथवा यदि ऐसी कोई दो वस्तु है जैसे मिट्टी और घट, और वहाँ प्रत्यक्ष से तादात्म्य गृहीत होता है तो वहाँ आकारभेद होने पर भी हमें अभेद स्वीकार्य ही है । “सामान्य और विशेष में आकारभेद होने पर भी अगर आप अभेद की प्रतीति करेंगे तो वह मिथ्या होगी'' ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि मिथ्या सिद्ध करने के लिये आवश्यक कोई बाधक यहाँ है नहीं । यदि कहें कि - ‘स्वभावभेदरूप हेतु और घट-पटादि के उदाहरण से सामान्यविशेष में भेद का अनुमान होगा, जो आप के अभिमत अभेद-प्रत्यक्षप्रतीति का बाध करेगा' - तो यह निष्फल है, क्योंकि बलवान अभेदप्रत्यक्षप्रतीति से प्रत्युत आप का अनुमान ही बाधित हो जाने से, उस की प्रवृत्ति ही नहीं होगी। ★ अनुमान में प्रमाणान्तरबाधविरह की शंका का उत्तर ★ यदि कहें कि - "जिसका अनुमान किया जाता है उस के बारे में अन्य प्रमाण बाधक नहीं हो सकता (क्योंकि संभव है कि बाधकरूप से उपस्थापित प्रमाण स्वयं प्रमाणाभास हो और अनुमान का विषय सत्य हो ।' - तो यह ठीक नहीं क्योंकि अनुमान में प्रमाणान्तरबाध न मानने पर ध्वनि में सत्त्व हेतु और घट-उदाहरण से कोई अश्रावणत्व का अनुमान भी कर सकता है । इस अनुमान में सत्त्व हेतु प्रमाणान्तर बाधित होने पर भी आप के कथनानुसार वह अबाधित होने के कारण ध्वनि में अश्रावणत्व का बोध प्रामाणिक बन जायेगा। यहाँ घट सपक्ष है क्योंकि उस में सत्त्व हेतु और अश्रावण साध्य का सामानाधिकरण्यस्वरूप कथंचित् तादात्म्य प्रत्यक्षसिद्ध है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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