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________________ १५२ श्री सम्मति-तर्कप्रकरणम् न च व्यक्तिदर्शनवेलायां स्वेन वपुषा बुद्धिग्राह्याकारतया प्रतिपदमवतरन्ती जाति भाति व्यक्तिव्यतिरेकेणापरस्य बहिर्लाह्यावभासस्याऽभावादिति वक्तुं शक्यम्, व्यक्त्याकारेऽप्यस्य समानत्वात् । न च बुद्धिरेव 'गौौः ' इति समानाकारा बहिः साधारणनिमित्तनिरपेक्षा प्रतिभाति, तथाभ्युपगमे प्रतिनियतदेशकालाकारतया तस्याः प्रतिभासाभावप्रसंगात् । नचाऽसाधारणा व्यक्तय एव तद्बुद्धिनिमित्तम्, व्यक्तिनां भेदरूपतयाऽविशिष्टत्वात् 'कर्कादिव्यक्तीनामपि 'गौौः' इति बुद्धिनिमित्तत्वापत्तेः । न च व्यक्तीनां भेदाविशेषेऽपि यास्वेव 'गोर्गौः' इति बुद्धिरुपजायमाना समुपलभ्यते ता एव तामुपजनयितुं प्रभवन्ति, यथा यास्वेव गडूच्याद्योषधिषु भेदाऽविशेषेऽपि ज्वरादिशमनलक्षणं कार्यमुपलभ्यते ता एव तनिमित्तं नान्या इति वक्तुं युक्तम्, साधारणनिमित्तव्यतिरेकेणापि तासूत्पत्तिप्रसक्तेर्न स्वलक्षणस्यापि व्यवस्था स्यात् । भी 'यह भी गौ है" इस ढंग से समानाकार अनुभव होता है । तब फिर स्वतंत्र सामान्य पदार्थ को वस्तुरूप क्यों न माना जाय ! * जाति की सिद्धि में अडचनों का प्रतिकार ★ अपोहवादी :- जब व्यक्ति को देखते हैं तब ऐसी कोई जाति स्फुरित नहीं होती है जो अपने बुद्धिग्राह्याकारमय शरीर से दृष्टिपथ में उतर आती हो । व्यक्ति को छोड कर और किसी बुद्धिग्राह्य पदार्थ का वहाँ अवभास ही नहीं होता है। सामान्यवादी :-ऐसा कहना शक्य नहीं है, क्योंकि ऐसा तो व्यक्तिआकार के लिये भी समान ढंग से कहा जा सकता है । जैसे: यह कह सकते हैं कि दूर से गोजाति को देखते समय ऐसी कोई शाबलेयादि व्यक्ति स्फुरित नहीं होती जो अपने बुद्धिग्राह्याकारमय शरीर से दृष्टिपथ में उतर आती हो...इत्यादि । अपोहवादी :- 'यह गौ है- गौ है' इस बुद्धि का बाह्य सामान्यात्मक निमित्त नहीं होता, किंतु अनुगतबुद्धि स्वयं ही यहाँ सामान्यरूप से समानाकार भासित होती है । ___सामान्यवादी :-यह बात ठीक नहीं, कयोंकि समानाकार बुद्धि का निमित्त बाह्यदेशवर्ती, प्रतिनियतकालवर्ती न हो कर अभ्यन्तर बुद्धिरूप होता तब जो बाह्यदेशवर्ती और अमुकप्रतिनियत कालवर्ती आकार रूप से उस का जो प्रतिभास होता है वह न होने की आपत्ति आयेगी। ___यदि कहें कि - 'असाधारणस्वरूपधारी व्यक्ति स्वयं ही अनुगताकार बुद्धि का निमित्त है' - तो यह ठीक नहीं है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति भेदात्मक यानी विशेषरूप होती है, जब गोव्यक्ति समानाकार बुद्धि का निमित्त हो सकती है तो वैसे ही असाधारण व्यक्तिरूप अश्व व्यक्ति भी अनुगताकार 'यह गौ है- गौ है' ऐसी बुद्धि का निमित्त होने की आपत्ति आयेगी, क्योंकि व्यक्तिमात्र की विशेषरूपता में कोई फर्क नहीं है। ___ अपोहवादी - व्यक्ति - व्यक्ति की विशेषरूपता में कोई फर्क नहीं होने पर भी जिन शाबलेयादि व्यक्तियों को देख कर 'यह गाय है- गाय है" ऐसी अनुगताकार बुद्धि उत्पन्न होती है उन व्यक्तियों को ही उस बुद्धि का हेतु समझना चाहिये, अश्वादि व्यक्ति से वैसी गाय की अनुगताकार बुद्धि उत्पन्न न होने से उन को उस बुद्धि का हेतु मानने की आवश्यकता नहीं है । कार्य-कारणभाव अन्वय-व्यतिरेक से निश्चित होता है। अगर आप कहें कि- 'जिन व्यक्तियों से अनुगताकार कार्य (बुद्धिरूप) होता है उनमें, अश्वादिव्यावृत्त समान धर्म न १. 'कर्क: = श्वेताश्व:' प्रमेयक टि० ५० १३७ प्र० पं० १४ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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