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________________ द्वितीयः खण्ड:-का०-२ १२७ धान्येनान्यनिवृत्तिमेव शब्दः प्रतिपादयेत् तदैतत् स्यात् यावतार्य(?)प्रतिबिम्बकमेव शब्दः करोति, तद्तौ च सामर्थ्यादन्यनिवर्त्तनं गम्यत इति सिद्धान्तानभिज्ञतया यत्कञ्चिदभिहितम् । व्यतिरेकाऽव्यतिरेकादिविकल्पः पूर्वमेव निरस्तः ।। यदुक्तम् - 'किमयमपोहो वाच्यः' इत्यादि(७५-१); तत्रान्यापोहे 'वाच्यत्वम्' इति विकल्पो यद्यन्यापोहशब्दमधिकृत्याभिधीयते तदा विधिरूपेणैवासौ तेन शब्देन वाच्य इत्यभ्युपगमानानिष्टापत्तिः । तथाहि - किं विधिः शब्दार्थः आहोस्विदन्यापोहः' इति प्रस्तावे 'अन्यापोहः शब्दार्थः' इत्युक्ते प्रतिपत्तुर्यथोक्तप्रतिबिम्बलक्षणान्यापोहाध्यवसायी प्रत्ययः समुपजायते अर्थानु(तु) विधिरूपशब्दार्थनिषेधः । अथ घटादिशब्दमधिकृत्य, तत्रापि यथोक्तप्रतिबिम्बलक्षणोऽपोह; साक्षाद् घटादिशब्दरुपजन्यमानत्वात् वि. धिरूप एव तैः प्रतिपाद्यते, सामर्थ्यात्त्वन्यनिवृत्तेरधिगम इति नानिष्टापत्तिः। न चाप्यनवस्था दोषः (७५ के द्वारा उस का अपोह (निषेध) करने की चेष्टा करनी पडे ? - यहाँ अपोहवादी कहता है कि 'शब्द मुख्यरूप से अन्य के निषेध का ही काम करता है' - इतना ही यदि हम मानते होते तब यह प्रश्न उचित था किन्तु हम तो यह मानते हैं कि शब्द मुख्यरूप से प्रतिबिम्ब को उत्पन्न करता है, और उस प्रतिबिम्ब का भान होने पर, अर्थतः अन्यनिवृत्ति का अवबोध होता है। हमारे इस सिद्धान्त को समझे बिना आपने जो कुछ कहा है वह निरर्थक है । तथा, यह जो पहले कहा था कि गो में अगो का अपोह गो से व्यतिरिक्त (पृथक) है या अव्यतिरिक्त है... इत्यादि, इन विकल्पों का तो अभी ही निरसन कर आये हैं कि व्यतिरेकादि सब वस्तुधर्म होने से कल्पनाशिल्पी घटित अपोह में उस का प्रसंजन व्यर्थ है। ★ अपोह के वाच्यत्व - अवाच्यत्व विकल्पों का उत्तर ★ __ पहले जो यह कहा था - "अपोह वाच्य है या अवाच्य १ वाच्य है तो विधिरूप से या अन्यव्यावृत्तिरूप से". इत्यादि; यहाँ अपोहवादी कहता है - यदि 'अन्यापोह' शब्द से वाच्य अन्यापोह के बारे में वाच्यत्व का विकल्प (=प्रभ) हो तो उत्तर यह है कि यह विधिरूप से ही वाच्य है, और इस में हमें कोई अनिष्ट प्राप्ति नहीं है । देखिये - 'विधि शब्दार्थ है या अन्यापोह ?' ऐसे प्रश्न के प्रस्ताव में जब यह उत्तर करेंगे कि 'अन्यापोह शब्दार्थ है' तब श्रोता को पूर्वोक्तरीति से प्रतिबिम्ब स्वरूप अन्यापोहाध्यवसायी ज्ञान उत्पन्न होगा। इस प्रकार विधिरूप से अन्यापोह का वाच्यार्थरूप में भान होगा; दूसरी और 'अन्यापोह शब्दार्थ है' इस वाक्य के श्रवण से अर्थत: यह भी ज्ञात होगा कि वास्तविक 'कोई विधिरूप अर्थ शब्दार्थ नहीं है' । [जैसे कोई पूछे कि अश्व पशु है या पक्षी ? - उत्तरमें 'पशु है' इतना कहने पर अर्थत: 'अश्व पक्षी नहीं है' ऐसा ज्ञान हो जाता है ।] परिणामस्वरूप विधिरूपशब्दार्थ के निषेधस्वरूप अन्यव्यावृत्ति का भी अवबोध होता है। इसमें कोई आपत्ति नहीं है। ___ 'घट शब्द के अर्थरूप में अन्यापोह वाच्य है या नहीं' - ऐसा अगर विकल्प (=प्रभ) हो तो उत्तर यह है कि घटादिशब्दों के द्वारा उनके श्रवण से जो तथाविध प्रतिबिम्बस्वरूप अपोह का साक्षाद् उदय होता है उस का विधिरूप से ही घटादिशब्दों के द्वारा प्रतिपादन किया जाता है, इस प्रकार घटादि शब्दों से प्रतिबिम्बस्वरूप अपोह वाच्य होता है और वह भी विधिरूप से वाच्य होता है । दूसरी ओर, अर्थत: अघटादिव्यावृत्ति का भी पूर्वोक्त रीति से भान होता है । यहाँ कुछ भी अनिष्टापत्ति नहीं है । पहले यहाँ अनवस्था दोष का आपादन किया था वह भी निरवकाश है क्योंकि अन्यव्यावृत्ति स्वरूप अपोह का प्रतिपादन साक्षात् न होकर अर्थत: होता है, साक्षात् वाच्यरूप से उसका प्रतिपादन हम नहीं मानते हैं। इस प्रकार, वाच्यत्व विकल्प के स्वीकार में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003802
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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